न्याय के कार्य को करने के लिए देह-धारण किया हुआ परमेश्वर किस तरह मानव जाति के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास को और शैतान के प्रभुत्व के अंधेरे युग को समाप्त करता है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे। बहुत से देशों के लोग आएँगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएँ; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।
क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा। वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हँसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे। हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें" (यशायाह 2:2-5)।
क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा। वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हँसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे। हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें" (यशायाह 2:2-5)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर का आगमन अनुग्रह के युग के अंत को लाया है। वह मुख्य रूप से अपने वचनों को कहने, मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करने, मनुष्य को रोशन और प्रबुद्ध करने, और मनुष्य के हृदय से अज्ञात परमेश्वर के स्थान को हटाने के लिए आया है। यह कार्य का वह चरण नहीं है जो यीशु ने तब किया था जब वह आया था। जब यीशु आया, तो उसने कई चमत्कार किए, उसने बीमारों को चंगा किया और पिशाचों को निकाला, और सलीब पर चढ़ने का छुटकारे का कार्य पूर्ण किया। परिणामस्वरूप, अपनी धारणाओं में, मनुष्य विश्वास करता है कि परमेश्वर को ऐसा ही होना चाहिए। क्योंकि जब यीशु आया, तो उसने मनुष्य के हृदय से अज्ञात परमेश्वर की छवि को हटाने का कार्य नहीं किया; जब वह आया, तो उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया, उसने बीमारों को चंगा किया और पिशाचों को बाहर निकाला, और उसने स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार को फैलाया। एक विचार से, अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर का देहधारण मनुष्य की धारणाओं में अज्ञात परमेश्वर द्वारा धारण किए गए स्थान को हटाता है, ताकि मनुष्य के हृदय में अज्ञात परमेश्वर की छवि अब और नहीं रहे। अपने वास्तविक कार्य और वचनों का उपयोग करके, वह सम्पूर्ण देशों में जाता है और मनुष्यों के बीच वह जो कार्य करता है वह असाधारण रूप से वास्तविक और सामान्य होता है, इतना कि मनुष्य को परमेश्वर की सच्चाई पता लग जाती है, और मनुष्य के हृदय में अज्ञात परमेश्वर का स्थान समाप्त हो जाता है। दूसरे विचार से, परमेश्वर अपनी देह द्वारा कहे गए वचनों का उपयोग मनुष्य को पूर्ण करने, और सभी बातों को निष्पादित करने के लिए करता है। यही वह कार्य है जो परमेश्वर अंत के दिनों में निष्पादित करेगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "आज परमेश्वर के कार्य को जानना" से
यह केवल आज है, जब मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच में आकर अपने वचनों को कहता हूँ, कि मनुष्यों को मेरे बारे में अल्पज्ञान है, अपने विचारों में "मेरे" लिए स्थान को हटा रहे हैं, उसके बदले अपनी चेतना में व्यवहारिक परमेश्वर के लिए स्थान बना रहे हैं। मनुष्य की धारणाएँ हैं और उत्सुकता से भरा है; परमेश्वर को कौन नहीं देखना चाहेगा? कौन परमेश्वर का सामना नहीं करना चाहेगा? फिर भी केवल एक चीज जो मनुष्य के हृदय में एक निश्चित स्थान धारण किए हुए है वह है परमेश्वर जिसे मनुष्य महसूस करता है कि अज्ञात और अमूर्त है। यदि मैंने उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं बताया होता तो किसने इसे महसूस किया होता? किसने सच में विश्वास किया होता कि मैं वास्तव में विद्यमान हूँ? निश्चित रूप से जरा सी भी शंका के बिना? मनुष्य के हृदय में "मुझ" और वास्तविकता में "मुझ" के बीच एक बहुत ही विशाल अंतर है, और उनके बीच तुलना करने में कोई भी सक्षम नहीं है। यदि मैं देहधारी नहीं होता, तो मनुष्य ने मुझे कभी भी नहीं जाना होता, और यहाँ तक कि उसने मुझे जान भी लिया होता, तो क्या इस प्रकार का ज्ञान अभी भी एक धारणा नहीं होता? …
… क्योंकि मनुष्य को शैतान के द्वारा प्रलोभित और भ्रष्ट किया गया है, क्योंकि उस पर धारणाओं की सोच द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया है, इसलिए सम्पूर्ण मानवजाति को जीतने, मनुष्य की सम्पूर्ण धारणाओं को उजागर करने, और मनुष्य की सोच की धज्जियाँ उड़ाने के उद्देश्य से मैं देह बन गया हूँ। परिणामरूवरूप, मनुष्य मेरे सामने अब और आडंबर नहीं करता है, और अपनी स्वयं की धारणाओं का उपयोग करके मेरी सेवा अब और नहीं करता है, और इस प्रकार मनुष्य की धारणाओं में "मैं" पूरी तरह से तितर-बितर हो जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "ग्यारहवाँ कथन" से
राज्य के निर्माण में मैं प्रत्यक्ष रूप से अपनी दिव्यता में कार्य करता हूँ, और मेरे वचनों के ज्ञान के आधार पर सभी लोगों को वह जानने की अनुमति देता हूँ जो मेरे पास है और जो मैं हूँ, अंततः उन्हें मेरे बारे में जो कि देह में हूँ ज्ञान प्राप्त करने की अनुमति देता हूँ। इस प्रकार यह समस्त मानवजाति की अस्पष्ट ईश्वर की खोज का अंत करता है, और मनुष्य के हृदय में स्वर्ग के परमेश्वर के स्थान को समाप्त करता है, कहने का मतलब है, कि यह मेरी देह में मेरे कर्मों को जानने की मनुष्य को अनुमति देता है, और इसलिए पृथ्वी पर मेरे समय को समाप्त करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "आठवाँ कथन" से
क्योंकि वे सभी जो देह में जीवन बिताते हैं, उन्हें अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए अनुसरण हेतु लक्ष्यों की आवश्यकता होती है, और परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के वास्तविक कार्यों एवं वास्तविक चेहरे को को देखने की आवश्यकता होती है। दोनों को सिर्फ परमेश्वर के देहधारी शरीर के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है, और दोनों को सिर्फ साधारण एवं वास्तविक देह के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। इसी लिए देहधारण ज़रूरी है, और इसी लिए समस्त भ्रष्ट मानवजाति को इसकी आवश्यकता होती है। जबकि लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे परमेश्वर को जानें, तो अस्पष्ट एवं अलौकिक ईश्वरों की आकृतियों को उनके हृदयों से दूर हटाना जाना चाहिए, और जबकि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करें, तो उन्हें पहले अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानना होगा। यदि मनुष्य केवल लोगों के हृदयों से अस्पष्ट ईश्वरों की आकृतियों को हटाने के लिए कार्य करता है, तो वह उपयुक्त प्रभाव हासिल करने में असफल हो जाएगा। लोगों के हृदयों से अस्पष्ट ईश्वरों की आकृतियों को केवल शब्दों से उजागर, एवं दूर नहीं किया जा सकता है, या पूरी तरह से निकाला नहीं जा सकता है। ऐसा करके, अंततः गहराई से जड़ जमाई हुई चीज़ों को लोगों से हटाना अभी भी संभव नहीं होगा। केवल व्यावहारिक परमेश्वर और परमेश्वर का सच्चा स्वरूप ही इन अस्पष्ट एवं अलौकिक चीज़ों का स्थान ले सकता है ताकि लोगों को धीरे धीरे उन्हें जानने की अनुमति दी जाए, और केवल इसी रीति से उस तयशुदा प्रभाव को हासिल किया जा सकता है। मनुष्य पहचान गया है कि वह परमेश्वर जिसे वह पिछले समयों में खोजता था वह अस्पष्ट एवं अलौकिक है। जो इस प्रभाव को हासिल कर सकता है वह आत्मा की प्रत्यक्ष अगुवाई नहीं है, और किसी फलाने व्यक्ति की शिक्षाएं तो बिलकुल भी नहीं हैं, किन्तु देहधारी परमेश्वर की शिक्षाएं हैं। जब देहधारी परमेश्वर आधिकारिक रूप से अपना कार्य करता है तो मनुष्य की धारणाओं का भेद खुल जाता है, क्योंकि देहधारी परमेश्वर की साधारणता एवं वास्तविकता मनुष्य की कल्पना में अस्पष्ट एवं अलौकिक परमेश्वर के विपरीत है। मनुष्य की मूल धारणाओं को केवल देहधारी परमेश्वर से उनके अन्तर के माध्यम से ही प्रगट किया जा सकता है। देहधारी परमेश्वर से तुलना किए बगैर, मनुष्य की धारणाओं को प्रगट नहीं किया जा सकता था; दूसरे शब्दों में, वास्तविकता के अन्तर के बगैर अस्पष्ट चीज़ों को प्रगट नहीं किया जा सकता था। इस कार्य को करने के लिए कोई भी शब्दों का प्रयोग करने में सक्षम नहीं है, और कोई भी शब्दों का उपयोग करके इस कार्य को स्पष्टता से व्यक्त करने में सक्षम नहीं है। केवल स्वयं परमेश्वर ही अपना खुद का कार्य कर सकता है, और कोई अन्य उसके स्थान पर इस कार्य को नहीं कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य की भाषा कितनी समृद्ध है, वह परमेश्वर की वास्तविकता एवं साधारणता को स्पष्टता से व्यक्त करने में असमर्थ है। मनुष्य केवल और अधिक व्यावहारिकता से परमेश्वर को जान सकता है, और केवल उसे और अधिक साफ साफ देख सकता है, यदि परमेश्वर व्यक्तिगत तौर पर मनुष्य के मध्य कार्य करे और पूरी तरह से अपने स्वरूप एवं अपने अस्तित्व को प्रगट करे । यह प्रभाव किसी भी शारीरिक मनुष्य के द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता है। निश्चित रूप से, परमेश्वर का आत्मा भी इस प्रभाव को हासिल करने में असमर्थ है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" से
जब परमेश्वर अपनी देह में कार्य करता है, तो ऐसे लोग जो उसका अनुसरण करते हैं वे आगे से उन अस्पष्ट एवं संदिग्ध चीज़ों को खोजते एवं टटोलते नहीं हैं, और अस्पष्ट परमेश्वर की इच्छा का अन्दाज़ा लगाना बन्द कर देते हैं। …आत्मा मनुष्य के लिए अस्पृश्य है, और मनुष्य के लिए अदृश्य है, और आत्मा का कार्य मनुष्य के लिए परमेश्वर के कार्य के विषय में और कोई प्रमाण एवं तथ्यों को छोड़ने में असमर्थ है। मनुष्य परमेश्वर के सच्चे चेहरे को कभी नहीं देख पाएगा, और वह हमेशा ऐसे अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास करता रहेगा जो अस्तित्व में है ही नहीं। मनुष्य कभी परमेश्वर के मुख को नहीं देख पाएगा, न ही मनुष्य परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से कहे गए वचनों को कभी सुन पाएगा। मनुष्य की कल्पनाएं, आखिरकार, खोखली होती हैं, और परमेश्वर के सच्चे चेहरे का स्थान नहीं ले सकती हैं; मनुष्य के द्वारा परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव, और स्वयं परमेश्वर के कार्य की नकल (रूप धारण) नहीं की जा सकती है। स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर और उसके कार्य को केवल देहधारी परमेश्वर के द्वारा ही पृथ्वी पर लाया जा सकता है जो मनुष्य के बीच में व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है। यह सबसे आदर्श तरीका है जिसके अंतर्गत परमेश्वर मनुष्य पर प्रगट होता है, जिसके अंतर्गत मनुष्य परमेश्वर को देखता है और परमेश्वर के असली चेहरे को जानने लगता है, और इसे किसी देह रहित परमेश्वर के द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" से
जब मेरे कथनों को स्वीकार करने के बाद सभी लोगों को मेरे बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त होता है, तो यह वह समय होता है जब मेरे लोग मुझे जीते हैं, यही वह समय होता है जब देह में मेरा कार्य पूरा हो जाता है, और यही वह समय होता है जब मेरी दिव्यता पूरी तरह से देह में जीवन व्यतीत कर लेती है। इस समय, सभी लोग मुझे देह में जानने की कोशिश करेंगे, और वास्तव में कह पाएंगे कि परमेश्वर देह में प्रकट होता है, और यही फल होगा। …अंततः, परमेश्वर के लोग परमेश्वर को वह स्तुति दे पाएंगे जो कि सत्य है, मजबूरी नहीं, और जो उनके दिल से आती है। परमेश्वर के छह हज़ार सालों की प्रबंधन योजना के केंद्र में यही है। छह हज़ार सालों की प्रबंधन योजना का वास्तविकीकरण यही है: सभी लोगों को परमेश्वर के देहधारण का महत्व बताना-उन्हें व्यावहारिक रूप से बताना कि परमेश्वर ने देहधारण किया है, जिसका अर्थ है, देह में परमेश्वर का कार्य-ताकि वे अस्पष्ट परमेश्वर को अस्वीकार करें, और जानें कि आज का परमेश्वर, और बीते कल का भी, और उससे भी अधिक, आने वाले कल का परमेश्वर भी अनंत से अनंत काल तक अस्तित्व में रहा है। केवल तभी परमेश्वर विश्राम करेगा!
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "तीसरे कथन की व्याख्या" से
देह में किए गए उसके कार्य के विषय में सबसे अच्छी बात यह है कि वह सटीक वचनों एवं उपदेशों को, और मानवजाति के लिए अपनी सटीक इच्छा को उन लोगों के लिए छोड़ सकता है जो उसका अनुसरण करते हैं, ताकि बाद में उसके अनुयायी देह में किए गए उसके समस्त कार्य और समूची मानवजाति के लिए उसकी इच्छा को अत्यधिक सटीकता एवं अत्यंत ठोस रूप में उन लोगों तक पहुंचा सकते हैं जो इस मार्ग को स्वीकार करते हैं। केवल मनुष्य के बीच देह में प्रगट परमेश्वर का कार्य ही सचमुच में परमेश्वर के अस्तित्व और मनुष्य के साथ रहने के तथ्य को पूरा करता है। केवल यह कार्य ही परमेश्वर के मुख को देखने, परमेश्वर के कार्य की गवाही देने, और परमेश्वर के व्यक्तिगत वचन को सुनने हेतु मनुष्य की इच्छा को पूरा करता है। देहधारी परमेश्वर उस युग को अन्त की ओर लाता है जब सिर्फ यहोवा की पीठ ही मानवजाति को दिखाई दी थी, और साथ ही अस्पष्ट परमेश्वर में मानवजाति के विश्वास का भी समापन करता है। विशेष रूप में, अंतिम देहधारी परमेश्वर का कार्य सारी मानवजाति को एक ऐसे युग में लाता है जो और अधिक वास्तविक, और अधिक व्यावहारिक, एवं और अधिक मनोहर है। वह न केवल व्यवस्था एवं सिद्धान्त के युग का अन्त करता है; बल्कि अति महत्वपूर्ण रूप से, वह मानवजाति पर ऐसे परमेश्वर को प्रगट करता है जो वास्तविक एवं साधारण है, जो धर्मी एवं पवित्र है, जो प्रबंधकीय योजना के कार्य को चालू करता है और मानवजाति के रहस्यों एवं मंज़िल को प्रदर्शित करता है, जिसने मानवजाति को सृजा था और प्रबंधकीय कार्य को अन्त की ओर ले जाता है, और जो हज़ारों वर्षों से छिपा हुआ है। वह अस्पष्टता के युग को सम्पूर्ण अन्त की ओर ले जाता है, वह उस युग का अन्त करता है जिसमें समूची मानवजाति परमेश्वर के मुख को खोजने की इच्छा करती थी परन्तु वह ऐसा करने में असमर्थ थी, वह ऐसे युग का अन्त करता है जिसमें समूची मानवजाति शैतान की सेवा करती थी, और समस्त मानवजाति की अगुवाई पूरी तरह से एक नए विशेष काल (युग) में करता है। यह सब परमेश्वर के आत्मा के बजाए देह में प्रगट परमेश्वर के कार्य का परिणाम है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" से
परमेश्वर आज मनुष्यों के विचारों और उनके आत्माओं को, और साथ ही उनके दिलों में हजारों सालों से रही परमेश्वर की छवि को, बदलने के उद्देश्य से उनके बीच आता है। इस अवसर के माध्यम से, वह मनुष्य को पूर्ण बनाएगा। अर्थात, वह मनुष्यों के ज्ञान के माध्यम से, वे जिस तरह से उसके बारे में जानकारी पाते हैं और उसके प्रति उनका जो दृष्टिकोण है, उन्हें बदल देगा, ताकि परमेश्वर के बारे में उनका ज्ञान एक नए सिरे से शुरू हो सके, और उनके दिल इसके माध्यम से नवीकृत और परिवर्तित हो सकें। निपटना और अनुशासन साधन हैं, जबकि विजय और नवीकरण लक्ष्य हैं। मनुष्य ने एक अस्पष्ट परमेश्वर के बारे में जिन अंधविश्वासी विचारों को पकड़ रखा है, उन्हें दूर करना हमेशा परमेश्वर का इरादा रहा है, और हाल ही में उसके लिए यह एक तात्कालिक आवश्यकता का मुद्दा बन गया है। मुझे आशा है कि सभी लोग इस पर आगे चिंतन करेंगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "कार्य और प्रवेश (7)" से
परमेश्वर देह में मुख्यतः इसलिए आता है कि मनुष्य परमेश्वर के असली कार्यों को देख सके, निराकार आत्मा को देह में अहसास कर सके, और वह मनुष्य के द्वारा स्पर्श किया और देखा जा सके। इस तरह से, जिन्हें वह पूर्ण बनाता है वह ही उसे जी पाएँगे, उसके द्वारा लाभ हासिल कर पाएँगे, और वह उसके हृदय के अनुसार हो पाएँगे। यदि परमेश्वर केवल स्वर्ग में ही बोलते, और वास्तव में पृथ्वी पर नहीं आते, तो मनुष्य अब भी परमेश्वर को जानने के अयोग्य होता; परमेश्वर के कार्यों का उपदेश सिर्फ़ खोखले सिद्धांत से दे पाते, और उसके पास परमेश्वर के वचन वास्तविकता के रूप में नहीं होते। परमेश्वर पृथ्वी पर मुख्यतः इसलिए आता है कि उनके लिए जिन्हें उससे लाभ प्राप्त होगा वे एक आदर्श और नमूना बन सके। सिर्फ़ इसी ढंग से मनुष्य व्यावहारिक रूप से परमेश्वर को जान, स्पर्श, और देख सकता है; और केवल इसी ढंग से मनुष्य सचमुच में परमेश्वर के द्वारा लाभ प्राप्त कर सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "तुम्हें पता होना चाहिए कि व्यावहारिक परमेश्वर ही स्वयं परमेश्वर है" से
जब मनुष्य को परिष्कृत कर दिया जाता है उसके पश्चात् ही वह पापपूर्ण स्वभाव से रहित होगा, क्योंकि परमेश्वर ने शैतान को पराजित कर दिया होगा, जिसका अर्थ यह है कि विरोधी ताकतों के द्वारा कोई अतिक्रमण नहीं होगा, और कोई विरोधी ताकतें मनुष्य के शरीर पर आक्रमण नहीं कर सकती हैं। और इस प्रकार मनुष्य स्वतन्त्र एवं पवित्र होगा - वह अनन्तकाल में प्रवेश कर चुका होगा। जब अन्धकार की विरोधी ताकतों को बांध दिया जाता है केवल तभी मनुष्य जहाँ कहीं जाता है वहाँ वह स्वतन्त्र होगा, और विद्रोहीपन या विरोध से रहित होगा। मनुष्य की सलामती के लिए शैतान को बस बांधना है; आज, वह सही सलामत नहीं है क्योंकि[क] शैतान पृथ्वी पर अभी भी हर जगह समस्याएं खड़ी करता है, और क्योंकि परमेश्वर के प्रबधंन का समूचा कार्य अभी तक समाप्ति पर नहीं पहुंचा है। जब एक बार शैतान को पराजित कर दिया जाता है, तो मनुष्य पूरी तरह से स्वतन्त्र हो जाएगा; जब मनुष्य परमेश्वर को प्राप्त करता है और शैतान के प्रभुत्व से बाहर निकल आता है, तब वह धार्मिकता के सूर्य को देखेगा। वह जीवन जिसे सामान्य मानव को प्राप्त करना है उसे पुनः प्राप्त कर लिया जाएगा; वह सब कुछ जिसे एक सामान्य मनुष्य के द्वारा धारण किया जाना चाहिए - जैसे भले एवं बुरे को परखने की योग्यता, और एक समझ कि किस प्रकार भोजन करना है और स्वयं को वस्त्र से ढंकना है, और सामान्य जीवन व्यतीत करने की क्षमता - यह सब कुछ पुनः प्राप्त कर लिया जाएगा। भले ही हव्वा को सांप के द्वारा प्रलोभन नहीं दिया गया होता, फिर भी शुरुआत में मनुष्य की सृष्टि के बाद उसके पास ऐसा ही सामान्य जीवन होना चाहिए था। उसे पृथ्वी पर भोजन करना, और कपड़े पहनना, और सामान्य मनुष्य का जीवन जीना चाहिए था। फिर भी जब मनुष्य भ्रष्ट हो गया उसके बाद, यह जीवन कभी साकार न होनेवाला एक स्वप्न बन गया था, और यहाँ तक कि आज भी मनुष्य ऐसी चीज़ों की कल्पना करने का साहस नहीं करता है। वास्तव में, यह सुन्दर जीवन जिसकी मनुष्य अभिलाषा करता है वह एक आवश्यकता हैः यदि मनुष्य ऐसे मंज़िल से रहित होता, तो पृथ्वी पर उसका भ्रष्ट जीवन कभी समाप्त नहीं होता, और यदि ऐसा कोई सुन्दर जीवन न होता, तो शैतान की नियति या उस युग का कोई अन्त नहीं होता जिसके अंतर्गत शैतान पृथ्वी पर अपने प्रभुत्व को कायम रखता है। मनुष्य को ऐसे आयाम में पहुंचना होगा जहाँ अंधकार की शक्तियों के द्वारा पहुंचा नहीं जा सकता है, और जब मनुष्य वहाँ पहुंच जाता है, तो यह प्रमाणित करेगा कि शैतान को पराजित कर दिया गया है। इस रीति से, जब एक बार शैतान के द्वारा कोई व्यवधान नहीं होता है, तो स्वयं परमेश्वर मानवजाति को नियन्त्रित करेगा, और वह मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन के लिए आदेश देगा और उसे नियन्त्रित करेगा; केवल इसे ही शैतान की पराजय के रूप में गिना जाएगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना" से
मेरे वचनों के पूर्ण होने के बाद, राज्य धीरे-धीरे पृथ्वी पर आकार लेने लगता है और मनुष्य धीरे-धीरे सामान्य हो जाता, और इस प्रकार पृथ्वी पर मेरे हृदय में राज्य स्थापित हो जाता है। उस राज्य में, परमेश्वर के सभी लोगों को सामान्य मनुष्य का जीवन वापस मिल जाता है। बर्फीली शीत ऋतु चली गई है, उसका स्थान जल के सोतों के बहरों में संसार ने ले लिया है, जहाँ वे साल भर प्रस्फुटित होते रहते हैं। लोग आगे से मनुष्य के उदास और अभागे संसार का सामना नहीं करते हैं, और न ही वे आगे से मनुष्य के शांत ठण्डे संसार को सहते हैं। लोग एक दूसरे से लड़ाई नहीं करते हैं। एक दूसरे के विरूद्ध युद्ध नहीं करते हैं, वहाँ अब कोई नरसंहार नहीं होता है और न ही नरसंहार से लहू बहता है; पूरी ज़मीं प्रसन्नता से भर जाती है, और यह हर जगह मनुष्यों के बीच उत्साह को बढ़ाता है। मैं पूरे संसार में घूमता हूँ, मैं ऊपर सिंहासन से आनन्दित होता हूँ, और मैं सितारों के मध्य रहता हूँ। और स्वर्गदूत मेरे लिए नए नए गीत गाते और नए नए नृत्य करते हैं। अब उनके चेहरों से उनकी स्वयं की क्षणभंगुरता के कारण आँसू नहीं ढलकते हैं। मैं अब अपने सामने स्वर्गदूतों के रोने की आवाज़ नहीं सुनता हूँ, और अब कोई मुझ से किसी कठिनाई की शिकायत नहीं करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से
जब संसार के सभी राष्ट्र और लोग मेरे सिंहासन के सामने लौटते हैं, तो उसके बाद मैं स्वर्ग के सारी उपहारों को लेकर उन्हें मानवीय संसार को दे दूँगा, ताकि, मेरे कारण, वह बेजोड़ उपहारों से लबालब भर जाएगा। किन्तु जब तक पुराना संसार निरन्तर बना रहता है, मैं सारे विश्व में खुले तौर पर अपनी प्रशासनिक आज्ञाओं की घोषणा करते हुए, अपने प्रचण्ड प्रकोप को इनके राष्ट्रों के ऊपर तेजी से फेंकूँगा, और जो कोई उनका उल्लंघन करता है उनको ताड़ना दूँगा:
जैसे ही मैं बोलने के लिए विश्व की तरफ अपने चेहरे को घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ को सुनती है, और उसके बाद उन सभी कार्यों को देखती है जिसे मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध जाते हैं, अर्थात्, जो मनुष्य के कार्यों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन नीचे गिर जाएँगे। मैं स्वर्ग के असंख्य तारों को लूँगा और उन्हें फिर से नया कर दूँगा, और मेरे कारण सूर्य और चन्द्रमा को नया बना दिया जाएगा-आकाश अब और वैसा नहीं रहेगा जैसा वह था; पृथ्वी पर बेशुमार चीज़ों को फिर से नया बना दिया जाएगा। मेरे वचनों के माध्यम से सभी पूर्ण हो जाएँगे। विश्व के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से विभक्त कर दिया जाएगा और मेरे राष्ट्र के द्वारा बदल दिया जाएगा, जिसकी वजह से पृथ्वी के राष्ट्र हमेशा हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राष्ट्र बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता हो; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा, और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। विश्व के भीतर मनुष्यों में, वे सभी जो शैतान से संबंध रखते हैं उनका सर्वनाश कर दिया जाएगा; वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें जलती हुई आग के द्वारा नीचा दिखाया जाएगा-अर्थात्, उनको छोड़कर जो अभी इस धारा के अन्तर्गत हैं, बाकियों को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो, भिन्न-भिन्न अंशों में, धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीत लिए जा कर मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। समस्त मानवता अपने-अपने स्वभाव का अनुसरण करेगी, और जो कुछ उसने किया है उससे भिन्न-भिन्न ताड़नाएँ प्राप्त करेगी। वे जो मेरे विरूद्ध खड़े हुए हैं सभी नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कार्यों में मुझे शामिल नहीं किया है, वे, क्योंकि उन्होंने जिस प्रकार अपने आपको दोषमुक्त किया है, पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर बने रहेंगे। मैं अपने महान कार्य की समाप्ति की घोषणा करने के लिए पृथ्वी पर अपनी ध्वनि आगे करते हुए अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बीसवाँ कथन" से "छब्बीसवाँ कथन" से
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