13.1.18

बाइबल के विषय में (4)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
बहुत से लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल को समझना और उसकी व्याख्या करने में समर्थ होना सच्चे मार्ग की खोज करने के समान है—परन्तु वास्तव में, क्या ये चीज़ें इतनी सरल हैं? बाइबल की सच्चाई को कोई नहीं जानता हैः कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख, और परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ नहीं देता है।
जिस किसी ने भी बाइबल को पढ़ा है वह जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को प्रलेखित करता है। पुराना विधान इस्राएल के इतिहास और सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के अंत तक यहोवा के कार्य का कालक्रम से अभिलेखन करता है। नया विधान पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और साथ की पौलुस के कार्य को भी अभिलिखित करता है; क्या वे ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? आज अतीत की चीज़ों को सामने लाने से वे इतिहास बन जाती हैं, और इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे तब भी इतिहास होती हैं—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता है। क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास को नहीं देखता है! और इसलिए, यदि तुम केवल बाइबल को ही समझते हो, और उस कार्य को नहीं समझते हो जिसे परमेश्वर आज करने का इरादा करता है, और यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो और पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते हो, तो तुम यह नहीं समझते हो कि परमेश्वर को खोजने का आशय क्या है? यदि तुम इस्राएल के इतिहास का अध्ययन करने एवं समस्त आकाश और पृथ्वी की सृष्टि के इतिहास की खोज करने के लिए बाइबल को पढ़ते हैं, तो तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हो। किन्तु आज, चूँकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, और जीवन का अनुसरण करते हो, चूँकि तुम परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करते हो, और मृत शब्दों और सिद्धांतों, या इतिहास की समझ का अनुसरण नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की आज की इच्छा को अवश्य खोजना चाहिए, और पवित्र आत्मा के कार्य के निर्देश की तलाश अवश्य करनी चाहिए। यदि तुम एक पुरातत्त्ववेत्ता होते तो तुम बाइबल को पढ़ सकते थे—लेकिन तुम नहीं हो, तुम उन में से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, और तुम्हारे लिए यह सब से अच्छा होगा कि तुम परमेश्वर की आज की इच्छा को खोजो। बाइबल को पढ़ कर, तुम अधिक से अधिक इस्राएल के इतिहास को थोड़ा बहुत समझ जाओगे, तुम इब्राहीम, दाऊद और मूसा के जीवनों के बारे में जानोगे, तुम पाओगे कि वे किस प्रकार यहोवा का आदर करते थे, यहोवा ने किस प्रकार उन्हें जला दिया था जो उसका विरोध करते थे, और वह उस युग के लोगों से किस प्रकार बात करता था। तुम केवल अतीत में किए गए परमेश्वर के कार्य के बारे में जानोगे। बाइबल के अभिलेख इस बात से सम्बन्धित हैं कि इस्राएल के प्राचीन लोग किस प्रकार यहोवा का आदर करते थे और यहोवा के मार्गदर्शन के अधीन रहते थे। क्योंकि इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग थे, इसलिए पुराने विधान में तुम यहोवा के प्रति इस्राएल के सभी लोगों की वफादारी को देख सकते हो, यह देख सकते हो कि सभी लोग जो यहोवा की आज्ञा मानते थे उस के द्वारा किस प्रकार उनकी देखभाल की जाती थी और उन्हें धन्य किया जाता था, तुम जान सकते हो कि जब परमेश्वर ने इस्राएल में कार्य किया तब वह दया और करूणा से भरपूर था, और साथ सी उसमें भस्म करनेवाली आग की लपटें थीं, और यह कि, सबसे दीन-हीन से लेकर पराक्रमी तक, सभी इस्राएली यहोवा का आदर करते थे, और इसलिए सारे देश पर परमेश्वर का आशीर्वाद था। पुराने विधान में अभिलिखत इस्राएल का इतिहास ऐसा ही है।
बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है, और प्राचीन नबीयों की अनेक भविष्यवाणियों और साथ ही उस समय उसके कार्य में यहोवा के कुछ कथनों को प्रलेखित करती है। इस प्रकार, सभी लोग इस पुस्तक को “पवित्र” (क्योंकि परमेश्वर पवित्र और महान है) मानते हैं। वास्तव में, यह सब यहोवा के लिए उनके आदर और परमेश्वर के लिए उनकी श्रद्धा का परिणाम है। लोग केवल इसलिए इस रीति से इस पुस्तक की ओर संकेत करते हैं क्योंकि परमेश्वर के जीवधारी अपने सृष्टिकर्ता के प्रति बहुत श्रद्धावान हैं, और ऐसे लोग भी हैं जो इस पुस्तक को एक “स्वर्गीय पुस्तक” कहते हैं। वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा द्वारा व्यक्तिगतरूप से इसका नाम नहीं रखा गया था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना कामार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का ग्रन्थकार परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। “पवित्र” बाइबल ही केवल वह सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य के द्वारा दिया गया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि इस पुस्तक को यहोवा के द्वारा नहीं लिखा गया था, और यीशु के द्वारा तो कदापि नहीं। इसके बजाए, यह अनेक प्राचीन नबीयों, प्रेरितों और पैगंबरों का लेखा-जोखा है, जिन्हें बाद की पीढ़ियों के द्वारा प्राचीन लेखों की एक ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया गया था जो, लोगों को, विशेष रूप से पवित्र दिखाई देती है, एक ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गम्भीर रहस्य हैं जो भविष्य की पीढ़ियों के द्वारा प्रकट किए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं। वैसे तो, लोग यह विश्वास करने में और भी अधिक उतारू हो गए कि यह पुस्तक एक “दिव्य पुस्तक” है। चार सुसमाचारों और प्रकाशित वाक्य की पुस्तक के शामिल होने के साथ ही, इसके प्रति लोगों की प्रवृत्ति किसी भी अन्य पुस्तक से विशेष रूप से भिन्न है, और इस प्रकार कोई भी इस “दिव्य पुस्तक” को चीरफाड़ करने की हिम्मत नहीं करता है—क्योंकि यह बहुत ही अधिक “पवित्र” है।
लोग, जैसे ही बाइबल पढ़ते हैं, तो इसमें अभ्यास करने के लिए एक उचित मार्ग को खोजने में सक्षम क्यों हो जाते हैं? वे इतना कुछ प्राप्त करने में सक्षम क्यों होते हैं जो उनकी समझ से बाहर है? आज, मैं इस रीति से बाइबल की चीरफाड़ कर रहा हूँ और इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इस से नफरत करता हूँ, या सन्दर्भ के लिए इसके मूल्य को नकारता हूँ। अंधकार में रखे जाने से तुम्हें रोकने के लिए मैं तुम्हारे लिए बाइबल के अंतर्निहित मूल्यों और इसकी उत्पत्ति की व्याख्या कर रहा हूँ। क्योंकि बाइबल के बारे में लोगों के अनेक दृष्टिकोण हैं, और उनमें से अधिकांश ग़लत हैं; इस तरह से बाइबल पढ़ना न केवल उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से रोकता है जो उन्हें प्राप्त करनी चाहिए, बल्कि, अधिक महत्वपूर्ण यह है, कि यह उस कार्य में भी बाधा डालता है जिसे करने का मैं इरादा करता हूँ। यह भविष्य के कार्य के लिए एक बहुत ही जबर्दस्त उपद्रव है, और केवल कमियाँ प्रदान करता है, लाभ नहीं। इस प्रकार, जो मैं तुम्हें शिक्षा दे रहा हूँ वह केवल बाइबल के मुख्य तत्व और उसके भीतर की कहानी है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम बाइबल मत पढ़ो, या तुम आस-पास जाकर यह घोषणा करो कि यह पूर्णतः मूल्य विहीन है, बल्कि यह कि तुम्हारे पास बाइबल का सही ज्ञान और दृष्टिकोण हो। बहुत अधिक एक तरफा न बनो! यद्यपि बाइबल इतिहास की एक पुस्तक है जो मनुष्यों के द्वारा लिखी गई थी, फिर भी यह बहुत से सिद्धांतों को जिनके द्वारा प्राचीन संतों और नबीयों ने परमेश्वर की सेवा की, और साथ ही परमेश्वर की सेवा में हाल ही के प्रेरितों के अनुभवों को भी प्रलेखित करती —इन लोगों के द्वारा इन सभी चीज़ों को वास्तव में देखा और जाना गया था, और सच्चे मार्ग का अनुसरण करने में वे इस युग के लोगों के लिए एक सन्दर्भ के रूप में कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार, बाइबल को पढ़ने से लोग जीवन के अनेक मार्गों को भी प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें अन्य पुस्तकों में नहीं पाया जा सकता है। ये मार्ग पवित्र आत्मा के कार्य के जीवन के मार्ग हैं जिनका अनुभव नबीयों और प्रेरितों के द्वारा बीते युगों में किया गया था, और बहुत से वचन बहुमूल्य हैं, और वह प्रदान कर सकते हैं जिसकी लोगों को आवश्यकता है। इस प्रकार, सभी लोग बाइबल को पढ़ना चाहते हैं। क्योंकि बाइबल में इतना कुछ छिपा हुआ है, इसके प्रति लोगों का नज़रिया महान आध्यात्मिक हस्तियों के लेखों से प्रति नज़रिए से भिन्न है। बाइबल ऐसे लोगों के अनुभवों एवं ज्ञान का अभिलेख एवं संकलन है जिन्होंने पुराने एवं नए युग में यहोवा और यीशु की सेवा की, और इस लिए बाद की पीढ़ियाँ इससे अधिक मात्रा में ज्ञानोदय, अलौकिक प्रकाश, और अनुशीलन करने हेतु मार्गों को प्राप्त कर पाने में सक्षम रही हैं। बाइबल किसी भी महान आध्यात्मिक हस्ती के लेखों से उच्चतर है उसका कारण है क्योंकि उसके समस्त लेख बाइबल में से ही लिए गए हैं, एवं उसके समस्त अनुभव बाइबल में से ही आए हैं, और वे सभी बाइबल का ही वर्णन करते हैं। और इस प्रकार, यद्यपि लोग किसी भी महान आध्यात्मिक हस्ती की किताबों से प्रावधान प्राप्त कर सकते हैं, फिर भी वे बाइबल की ही आराधना करते हैं, क्योंकि यह उनको इतनी ऊँची और गम्भीर दिखाई देती है! यद्यपि बाइबल जीवन के वचनों की कुछ पुस्तकों को एक साथ मिलाती है, जैसे कि पौलुस के धर्मपत्र और पतरस के धर्मपत्र, और यद्यपि इन पुस्तकों के द्वारा लोगों की आवश्यकताओं को प्रदान किया जा सकता है और उनकी सहायता की जा सकती है, फिर भी ये पुस्तकें अप्रचिलत हैं, और ये अभी भी पुराने युग से सम्बन्धित हैं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे कितनी अच्छी हैं, वे केवल एक युग के लिए ही उचित हैं, और चिरस्थायी नहीं हैं। क्योंकि परमेश्वर का कार्य निरन्तर विकसित हो रहा है, और यह केवल पौलुस और पतरस के समय में ही नहीं रूक सकता है, या हमेशा अनुग्रह के युग में बना नहीं रह सकता है जिस में यीशु को सलीब पर चढ़ाया गया था। और इसलिए, ये पुस्तकें केवल अनुग्रह के युग के लिए उचित हैं, अंत के दिनों के राज्य के युग के लिए नहीं। ये केवल अनुग्रह के युग के विश्वासियों की जरूरतों को प्रदान कर सकती हैं, राज्य के युग के संतों की नहीं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी अच्छी हैं, वे तब भी पुरानी हैं। यहोवा की सृष्टि के कार्य या इस्राएल में उसके काम के साथ भी ऐसा ही हैः इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह कार्य कितना बड़ा था, यह अभी भी पुराना था, और वह समय अब भी आएगा जब यह ख़त्म हो जाएगा। परमेश्वर का काम भी ऐसा ही हैः यह महान है, किन्तु एक ऐसा समय आएगा जब यह समाप्त हो जाएगा; यह न तो सृष्टि के कार्य के बीच, और न ही सलीब पर चढ़ने के कार्य के बीच, हमेशा बना रह सकता है। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सलीब पर चढ़ने का कार्य कितना विश्वास दिलाने वाला था, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि शैतान को हराने में यह कितना असरदार था, कार्य, आख़िरकार, तब भी कार्य ही है, और युग, आख़िरकार, तब भी युग ही हैं; कार्य हमेशा उसी नींव पर टिका नहीं रह सकता है, और न ही समय ऐसे होते हैं जो कभी नहीं बदल सकते हैं, क्योंकि सृष्टि हुई थी और अंत के दिन भी अवश्य होने चाहिए। यह अवश्यम्भावी है! इस प्रकार, आज नये विधान में जीवन के वचन—प्रेरितों के धर्मपत्र, और चार सुसमाचार—ऐतिहासिक पुस्तकें बन ए हैं, वे पुराने पंचांग बन गए हैं, और पुराने पंचांग लोगों को एक नए युग में लेकर कैसे जा सकते हैं? इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोगों को जीवन प्रदान करने के लिए ये पंचांग कितने समर्थ हैं, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सलीब तक लोगों की अगुवाई करने में वे कितने सक्षम हैं, क्या वे पुराने नहीं हो गए हैं? क्या वे मूल्य-विहीन नहीं हैं? इसलिए, मैं कहता हूँ कि तुम्हें आँख बंद करके इन पंचांगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। वे अत्यधिक पुराने हैं, वे तुम्हें नए कार्य में नहीं पहुँचा सकते हैं, वे केवल तुम पर भार डाल सकते हैं। न केवल वे तुम्हें नए कार्य में, और नए प्रवेश में नहीं ले जा सकते हैं, बल्कि वे तुम्हें पुरानी धार्मिक कलीसियाओं के भीतर ले जाते हैं—और यदि ऐसा होता है, तो क्या तुम परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में पीछे नहीं हट रहे हो?
बाइबल इस्राएल के मामलों और उस समय उसके चुने हुए लोगों के कार्यों को प्रलेखित करती है। दूसरे शब्दों में, यह यहोवा के मामलों का लेखा जोखा है, एक ऐसा जिसके लिए पवित्र आत्मा कोई दोषारोपण नहीं करती है। भले ही समावेश करने और हटाने के लिए अंशों को चुना गया था, यद्यपि पवित्र आत्मा मंजूरी नहीं देती है, तब भी वह कोई दोषारोपण नहीं करती है। बाइबल इस्राएल के इतिहास और परमेश्वर के कार्य से बढ़कर और कुछ नहीं है। वे लोग, मामले, और चीज़ें जिनका यह अभिलेख करती है, वे सभी यथार्थ थे, और उनके बारे में कुछ भी भविष्य का संकेत नहीं था—निस्सन्देह, यशायाह और दानिय्येल की भविष्यवाणियों, या यूहन्ना की दर्शन की पुस्तकों के अलावा। इस्राएल के प्राचीन लोग ज्ञानी और सुसंस्कृत थे, और उनका प्राचीन ज्ञान और उनकी संस्कृति स्पष्ट रूप से उन्नत थी, और इसलिए उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह आज के लोगों से उच्चतर था। परिणामस्वरूप, कि वे इन पुस्तकों को लिख सके इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि यहोवा ने उनके बीच बहुत अधिक कार्य किया था, और उन्होंने बहुत अधिक देखा था। दाऊद ने अपनी आँखों से यहोवा के कार्यों को देखा था, उसने व्यक्तिगत रूप से उनका स्वाद चखा था, और बहुत से संकेतों और चमत्कारों को देखा था, और इसलिए उसने यहोवा के कार्यों की प्रशंसा में उन सभी भजनों को लिखा। यह कि वे अपनी परिस्थितियों की वजह से इन पुस्तकों को लिख पाए थे, इसलिए नहीं कि वे “दिव्य” थे। उन्होंने यहोवा की प्रशंसा की क्योंकि उन्होंने उसे देखा था। यदि तुमने यहोवा के बारे में कुछ भी नहीं देखा है, और तुम उसके अस्तित्व के विषय में अनजान हो, तो तुम उसकी प्रशंसा कैसे कर सकते हो? यदि तुमने यहोवा को नहीं देखा है, तो तुम उसकी स्तुति करना नहीं जानोगे, न ही उसकी आराधना करना जानोगे, और उसका गुणगान करने वाले गीतों को लिखने के योग्य तो बिलकुल भी नहीं होगे, और यहाँ तक कि यदि तुम्हें यहोवा के कुछ कार्यों की खोज करने को कहा जाए तब भी तुम ऐसा करने में समर्थ नहीं होगे। यह कि. आज तुम परमेश्वर की प्रशंसा कर सकते हो और उस से प्रेम कर सकते हो, यह इसलिए है क्योंकि तुमने उसे देखा है, और उसके कार्य का अनुभव भी किया है - और यदि तुम्हारी क्षमता बढ़ती है, तो क्या तुम भी दाऊद के समान परमेश्वर की स्तुति में कविताएँ लिखने योग्य नहीं हो सकोगे?
बाइबल को समझना, इतिहास को समझना, परन्तु उसे न समझना जो पवित्र आत्मा आज कर रहा है—यह ग़लत है! इतिहास का अध्ययन करके तुमने अच्छा किया है, और तुमने एक ज़बर्दस्त काम किया है, परन्तु तुम उस कार्य के बारे में कुछ नहीं जानते हो जो आज पवित्र आत्मा करता है। क्या यह मूर्खता नहीं है? अन्य लोग तुम से पूछते हैं: “आज परमेश्वर क्या कर रहा है? आज तुम्हें किस बात में शामिल होना चाहिए?” तुम्हारी जीवन की खोज किस प्रकार चल रही है? क्या तुम परमेश्वर की इच्छा को समझते हो? जो कुछ वे पूछते हैं उनके लिए तुम्हारे पास कोई उत्तर नहीं होगा—अतः तुम क्या जानते हो? तुम कहोगेः मैं केवल यह जानता हूँ कि मुझे देह की ओर अपनी पीठ करनी है और अपने आप को जानना है। और तब यदि वे पूछते हैं “तुम और क्या जानते हो?” तो तुम कहोगे कि तुम परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं का पालन करना भी जानते हो, और बाइबल के इतिहास को थोड़ा बहुत समझते हो, और बस इतना ही। क्या इन सारे वर्षों में परमेश्वर पर विश्वास करके तुमने बस यही सब कुछ प्राप्त किया है? यदि तुम बस यही सब कुछ समझते हो, तो तुम में बहुत कुछ का अभाव है। इस प्रकार, आज तुम्हारी कद-काठी तुमसे मेरी अपेक्षाऑओं को पूरा करने में बुनियादी तौर पर अक्षम है, और विभेदन करने की तुम्हारी सामर्थ्य और ऐसी सच्चाईयाँ जिन्हें तुम समझते हो अत्यल्प हैं—जिसका मतलब है, कि तुम्हारा विश्वास बहुत ही सतही है! तुम्हें और अधिक सच्चाईयों से सज्जित अवश्य होना चाहिए, तुम्हें और अधिक ज्ञान की आवश्यकता है, तुम्हें और अधिक अवश्य देखना चाहिए, और केवल तभी तुम सुसमाचार को फैलाने के योग्य हो सकोगे, क्योंकि यह वही है जिसे तुम्हें हासिल करना है!

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