अध्याय 3 तुम्हें परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की सच्चाईयों के बारे में अवश्य जानना चाहिए?
2. तुम्हें परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के लक्ष्य को अवश्य जानना चाहिए।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
कार्य के तीन चरणों का उद्देश्य समस्त मानवजाति का उद्धार है—जिसका अर्थ है शैतान के अधिकार क्षेत्र से मनुष्य का पूर्ण उद्धार। यद्यपि कार्य के इन तीन चरणों में से प्रत्येक का एक भिन्न उद्देश्य और महत्व है, किन्तु प्रत्येक मानवजाति को बचाने के कार्य का हिस्सा है, और उद्धार का एक भिन्न कार्य है जो मानवजाति की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।जब परमेश्वर के प्रबंधन का सम्पूर्ण कार्य समाप्ति के निकट होगा, तो परमेश्वर प्रत्येक वस्तुओं को उनके प्रकार के आधार पर श्रेणीबद्ध करेगा। मनुष्य रचयिता के हाथों से रचा गया था, और अंत में उसे मनुष्य को पूरी तरह से अपने प्रभुत्व के अधीन अवश्य लौटा देना चाहिए; कार्य के तीन चरणों का यही निष्कर्ष है।
जब कार्य के तीन चरण समाप्ति पर पहुँचेंगे, तो ऐसे लोगों का समूह बनेगा जो परमेश्वर के प्रति गवाही देते हैं, ऐसे लोगों का एक समूह जो परमेश्वर को जानते हैं। ये सभी लोग परमेश्वर को जानेंगे और सत्य को व्यवहार में लाने में समर्थ होंगे। वे मानवता और समझ को धारण करेंगे और परमेश्वर के उद्धार के कार्य के तीनों चरणों को जानेंगे। यही कार्य अंत में निष्पादित होगा, और यही लोग 6000 साल के प्रबंधन के कार्य का सघन रूप हैं, और शैतान की अंतिम पराजय की सबसे शक्तिशाली गवाही हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है" से
मेरी सम्पूर्ण प्रबन्धन योजना, जो छः हज़ार सालों तक फैली हुई है, तीन चरणों या तीन युगों को शामिल करती हैः पहला, व्यवस्था का युग; दूसरा, अनुग्रह का युग (जो छुटकारे का युग भी है); और अंत में राज्य का युग। प्रत्येक युग की प्रकृति के अनुसार मेरा कार्य इन तीनों युगों में अलग-अलग है, परन्तु प्रत्येक अवस्था में यह मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है—या बल्कि, यह उन छलकपटों के अनुसार बदलता है जो शैतान मुझ से युद्ध करने के लिए काम में लाता है। मेरे कार्य का उद्धेश्य शैतान को हराना है, मेरी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को प्रदर्शित करना, शैतान के सभी छलकपटों को उजागर करना और उसके द्वारा समस्त मानवता को बचाना है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के अधीन जीवन जीती है। यह मेरी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता को दिखाने के लिए है जबकि उसके साथ-साथ ही शैतान की भयानकता को प्रकट करने के लिए भी है। इसके अतिरिक्त, यह मेरी रचनाओं को अच्छे और बुरे के बीच में अन्तर करना सिखाने के लिए है, यह पहचानना सिखाने के लिए है कि मैं सभी चीज़ों का शासक हूँ, यह देखना सिखाने के लिए है कि शैतान मानवता का दुश्मन है, और अधम से भी अधम है, दुष्ट है, और अच्छे एवं बुरे, सत्य एवं झूठ, पवित्रता एवं गन्दगी, महानता एवं नीचता के बीच दिन के समान स्पष्ट अंतर करना सिखाने के लिए है। इस तरह, अज्ञानी मानवता मेरी गवाही दे सकती है कि वह मैं नहीं हूँ जो मानवता को भ्रष्ट करता है, और केवल मैं – सृष्टिकर्ता—ही मानवता को बचा सकता हूँ, और उन्हें आनन्द की वस्तुएँ प्रदान कर सकता हूँ; और वे जान सकते हैं कि मैं सभी चीज़ों का शासक हूँ और शैतान मेरे द्वारा रचना की गई चीज़ों में से मात्र एक है, जो बाद में मेरे विरूद्ध हो गया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "छुटकारे के युग में कार्य से सम्बन्धित सत्य" से
क्योंकि परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य का केन्द्रीय भाग मानवजाति के उद्धार के लिए है। एकदम आरंभ में मानवजाति परमेश्वर के हाथों में थी, परन्तु शैतान के प्रलोभन एवं भ्रष्टता की वजह से, मनुष्य को शैतान के द्वारा बांधा गया था और वह उस दुष्ट जन के हाथों में पड़ गया था। इस प्रकार, शैतान वह लक्ष्य बन गया था जिसे परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य में पराजित किया जाना था। क्योंकि शैतान ने मनुष्य पर कब्ज़ा कर लिया था, और क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के सम्पूर्ण प्रबंधन की पूंजी (सम्पदा) है, यदि मनुष्य का उद्धार करना है, तो उसे शैतान के हाथों से वापस छीनना होगा, कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य को शैतान के द्वारा बन्दी बना लिए जाने के बाद उसे वापस लेना होगा। मनुष्य के पुराने स्वभाव में बदलावों के माध्यम से शैतान को पराजित किया जाता है जो उसके मूल एहसास को पुनः स्थापित करता है, और इस रीति से मनुष्य को, जिसे बन्दी बना लिया गया था, शैतान के हाथों से वापस छीना जा सकता है। यदि मनुष्य को शैतान के प्रभाव एवं दासता से स्वतन्त्र किया जाता है, तो शैतान शर्मिन्दा होगा, मनुष्य को अंततः वापस ले लिया जाएगा और शैतान को हरा दिया जाएगा। और क्योंकि मनुष्य को शैतान के अंधकारमय प्रभाव से स्वतन्त्र किया गया है, इसलिए मनुष्य इस सम्पूर्ण युद्ध का लूट का सामान बन जाएगा, और जब एक बार यह युद्ध समाप्त हो जाता है तो शैतान वह लक्ष्य बन जाएगा जिसे दण्डित किया जाएगा, जिसके पश्चात् मनुष्य के उद्धार के सम्पूर्ण कार्य को पूरा कर लिया जाएगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना" से
परमेश्वर का प्रबंधन इस प्रकार से है: मानवजाति को शैतान की अधीनता में देना - एक ऐसी मानवजाति जो नहीं जानती कि परमेश्वर क्या है, रचयिता क्या है, परमेश्वर की आराधना किस प्रकार की जानी है, और परमेश्वर के अधीन होना क्यों आवश्यक है - और शैतान की भ्रष्टता को उन्मुक्त लगाम देना। और फिर कदम दर कदम, परमेश्वर शैतान के हाथों से मनुष्य को बचाता है, जब तक कि मनुष्य को पूरी तरह से परमेश्वर की आराधना करना न सीख जाए और शैतान को अस्वीकार न कर दे। यही परमेश्वर का प्रबंधन है। यह सब कुछ एक मिथककथा लगती है; और यह सब कुछ हैरान कर देने वाला लगता है। लोगों को लगता है कि ये एक मिथक कथा है, और ऐसा इसलिए होताहै क्योंकि उन्हें इसका भान नहीं है कि पिछले हज़ारों सालों में लोगों के साथ कितना कुछ हुआ है, और इस बात को तो वे बिल्कुल नहीं जानते कि इस ब्रह्मांड के विस्तार में अब तक कितनी कहानियां घट चुकी हैं। इसके अलावा, ऐसा इसलिए कि वे इस बात को नहीं समझ सकते कि भौतिक संसार के परे एकअधिक आश्चर्यजनक अधिक भययुक्त संसार का अस्तित्व है, परन्तु उनकी नश्वर आंखें देखने से उन्हें वंचित करती हैं। इंसान को वह अबोधगम्य लगाती है,और ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य को मानवजाति के लिए परमेश्वर के द्वारा किए गए उद्धार के कार्य की महत्ता और परमेश्वर के प्रबंधकारणीय कार्य की महत्ता की समझ नहीं है, और वह यह नहीं समझता कि परमेश्वर अंततः मनुष्य को कैसा बनते देखना चाहता है। क्या शैतान के दोष से रहित आदम और हव्वा के समान नहीं! परमेश्वर का प्रबंधन लोगों के एक ऐसे समूह को प्राप्त करना है जो उसकी आराधना करे और उसके अधीन रहे।ये मानवजाति शैतान के द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी थी, परन्तु अब शैतान को पिता के तौर पर नहीं देखती; वह शैतान के बुरे चेहरे को पहचानता है और उसे अस्वीकार करता है और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के लिये उसके सामने आता है। वह जानता है कि क्या बुरा है, और जो पवित्र है उसके विपरीत वह कैसा दिखता है, और वह परमेश्वर की महानता को पहचानता हैऔर शैतान की दुष्टता को भी समझता है। इस प्रकार की मानवजाति अब शैतान के लिए कार्य नहीं करती है, या उसकी आराधना नहीं करती है, या शैतान को प्रतिष्ठित नहीं करती है। इसका कारण यह है कि यह एक ऐसे लोगों का समूह है जो वास्तव में परमेश्वर को प्राप्त हो गए हैं। यही परमेश्वर की मानवजाति के प्रबंधन की महत्ता है।
परमेश्वर का प्रेम और दया उसके प्रबंधकारणीय कार्य के हर ब्यौरे में व्याप्त होती है और इससे निरपेक्ष कि लोग परमेश्वर की भली मंशा को समझ पा रहे हैं या नहीं, वह अभी भी अथक रूप से अपने कार्य में लगा हुआ है जो वह पूरा करना चाहता है। इस बात की अपेक्षा किए बिना कि परमेश्वर के प्रबंधन को लोग कितना समझ रहे हैं, परमेश्वर जो कार्य कर रहा है,उसके लाभ और सहायता को हर व्यक्ति भलीभाँति समझ सकता है। भले ही आज तुम परमेश्वर के द्वारा प्रदत्त प्रेम या जीवन को महसूस नहीं कर पा रहे हो, परन्तु जब तक तुम परमेश्वर को न छोड़ो, और सत्य को खोजने के अपने इरादों को न छोड़ो, तो एक न एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब परमेश्वर की मुस्कान तुम पर प्रगट होगी। क्योंकि परमेश्वर के प्रबंधकारणीय कार्य का लक्ष्य शैतान के चंगुल में फंसी हुई मानवजाति को उबारना है, न कि मानवजाति को छोड़ना है जो शैतान के द्वारा भ्रष्ट हो चुकी है और परमेश्वर के विरूद्ध खड़ी हुई है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" से
परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, उसे पृथ्वी पर रखा, और उसकी आज के दिन तक अगुआई की। उसने तब मानवजाति को बचाया और मानवजाति के लिये पापबली के रूप में कार्य किया। अंत में उसे अभी भी अवश्य मानवजाति को जीतना चाहिए, मानवजाति को पूर्णतः बचाना चाहिए और उसे उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना चाहिए। यही वह कार्य है जिसमें वह आरंभ से लेकर अंत तक संलग्न रहा है—मनुष्य को उसकी मूल छवि में और उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना। वह अपना राज्य स्थापित करेगा और मनुष्य की मूल समानता पुनर्स्थापित करेगा, जिसका अर्थ है कि वह पृथ्वी पर अपने अधिकार को पुनर्स्थापित करेगा, और समस्त प्राणियों के बीच अपने अधिकार को पुर्नस्थापित करेगा। शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जाने पर मनुष्य ने, परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी शत्रु बनते हुए, अपना धर्मभीरू हृदय गँवा दिया है और उस प्रकार्य को गँवा दिया जो परमेश्वर के सृजित प्राणियों में से एक के पास होना चाहिए। मनुष्य शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहा और उसने उसके आदेशों का पालन किया; इस प्रकार, मनुष्य के बीच कार्य करने का परमेश्वर के पास कोई मार्ग नहीं था, और तो और अपने प्राणियों से परमेश्वर का भय प्राप्त करने में असमर्थ था। मनुष्य परमेश्वर के द्वारा सृजन किया गया था, और उसे परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए थी, परंतु मनुष्य ने वास्तव में परमेश्वर की ओर पीठ फेर दी और शैतान की आराधना की। शैतान मनुष्य के हृदय में प्रतिमा बन गया। इस प्रकार, परमेश्वर ने मनुष्य के हृदय में अपना स्थान खो दिया, जिसका मतलब है कि उसने मनुष्य के सृजन के अपने अर्थ को खो दिया, और इसलिए मनुष्य के सृजन के अपने अर्थ को पुनर्स्थापित करने के लिए उसे अवश्य मनुष्य की मूल समानता को पुनर्स्थापित करना चाहिए, और मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुड़ाना चाहिए। शैतान से मनुष्य को वापस प्राप्त करने के लिए, उसे अवश्य मनुष्य को पाप से बचाना चाहिए। केवल इसी तरह से वह धीरे-धीरे मनुष्य की मूल समानता को पुनर्स्थापित कर सकता है और मनुष्य के मूल प्रकार्य को पुनर्स्थापित कर सकता है, और अंत अपने राज्य को पुनर्स्थापित कर सकता है। अवज्ञा के उन पुत्रों को अंतिम रूप से इसलिए भी नष्ट किया जाएगा ताकि मनुष्य को बेहतर ढंग से परमेश्वर की आराधना करने दी जाए और पृथ्वी पर बेहतर ढंग से जीने दिया जाए। चूँकि परमेश्वर ने मानवों का सृजन किया है, इसलिए वह मनुष्य से अपनी आराधना करवाएगा; चूँकि वह मनुष्य के मूल प्रकार्य को पुनर्स्थापित करना चाहता है, इसलिए वह उसे पूर्ण रूप से और बिना किसी मिलावट के पुनर्स्थापित करेगा। अपना अधिकार पुनर्स्थापित करने का अर्थ है, मनुष्य से अपनी आराधना करवाना और मनुष्य से अपना आज्ञापालन करवाना; इसका अर्थ है कि वह अपनी वजह से मनुष्य को जीवित रखवाएगा, और अपने अधिकार की वजह से अपने शत्रुओं को नष्ट करवाएगा; इसका अर्थ है कि वह अपने हर अंतिम भाग को मानवजाति के बीच और मनुष्य द्वारा किसी भी प्रतिरोध के बिना बनाए रखेगा। जो राज्य वह स्थापित करना चाहता है, वह उसका स्वयं का राज्य है। जिस मानवजाति की वह इच्छा करता है वह है जो उसकी आराधना करती है, जो पूर्णतः उसकी आज्ञा का पालन करती है और उसकी महिमा रखती है। यदि वह भ्रष्ट मानवजाति को नहीं बचाता है, तो मनुष्य का सृजन करने का उसका अर्थ व्यर्थ हो जाएगा; मनुष्यों के बीच उसका अब और अधिकार नहीं रहेगा, और पृथ्वी पर उसके राज्य का अस्तित्व अब और नहीं रह पाएगा। यदि वह उन शत्रुओं का नाश नहीं करता है जो उसके प्रति अवज्ञाकारी हैं, तो वह अपनी संपूर्ण महिमा को प्राप्त करने में असमर्थ होगा, न ही वह पृथ्वी पर अपने राज्य की स्थापना करने में समर्थ होगा। ये परमेश्वर का कार्य पूरा होने के प्रतीक हैं और उसकी महान उपलब्धियों की पूर्णता के प्रतीक हैं: मानवजाति में से उन सबको सर्वथा नष्ट करना जो उसके प्रति अवज्ञाकारी हैं, और जो पूर्ण किए जा चुके हैं उन्हें विश्राम में लाना। जब मनुष्यजाति को उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित कर दिया जाता है, जब मानवजाति अपने संबंधित कर्तव्यों को पूरा कर सकती है, अपने स्वयं के स्थान को सुरक्षित रख सकती है और परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं का पालन कर सकती है, तो परमेश्वर पृथ्वी पर लोगों के एक समूह को प्राप्त कर चुका होगा जो उसकी आराधना करते हैं, वह पृथ्वी पर एक राज्य स्थापित कर चुका होगा जो उसकी आराधना करता है। उसके पास पृथ्वी पर अनंत विजय होगी, और जो उसके विरोध में है वे अनंतकाल के लिए नष्ट हो जाएँगे। इससे मनुष्य का सृजन करने का उसका मूल अभिप्राय पुनर्स्थापित हो जाएगा; इससे सब चीजों के सृजन का उसका मूल अभिप्राय पुनर्स्थापित हो जाएगा, और इससे पृथ्वी पर उसका अधिकार, सभी चीजों के बीच उसका अधिकार और उसके शत्रुओं के बीच उसका अधिकार भी पुनर्स्थापित हो जाएगा। ये उसकी संपूर्ण विजय के प्रतीक हैं। इसके बाद से मानवजाति विश्राम में प्रवेश करेगी और ऐसे जीवन में प्रवेश करेगी जो सही मार्ग का अनुसरण करता है। मनुष्य के साथ परमेश्वर भी अनंत विश्राम में प्रवेश करेगा, और एक अनंत जीवन में प्रवेश करेगा जो परमेश्वर और मनुष्य द्वारा साझा किया जाता है। पृथ्वी पर से गंदगी और अवज्ञा ग़ायब हो जाएगी, वैसे ही पृथ्वी पर से विलाप ग़ायब हो जाएगा। उन सभी का अस्तित्व पृथ्वी पर नहीं रहेगा जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। केवल परमेश्वर और वे जिन्हें उसने बचाया है ही शेष बचेंगे; केवल उसकी सृष्टि ही बचेगी।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" से
जब मनुष्य अनंत मंज़िल में प्रवेश करता है, तो मनुष्य सृष्टिकर्ता की आराधना करेगा, और क्योंकि मनुष्य ने उद्धार को प्राप्त किया है और अनंतकाल में प्रवेश किया है, तो मनुष्य किसी उद्देश्य का पीछा नहीं करेगा, इसके अतिरिक्त, न ही उसे इस बात की चिंता होगी कि उसे शैतान के द्वारा घेर लिया गया है। इस समय, मनुष्य अपने स्थान को जानेगा, और अपने कर्तव्य को निभाएगा, और भले ही उन्हें ताड़ना नहीं दी जाती है या उनका न्याय नहीं किया जाता है, फिर भी प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने कर्तव्य को निभाएगा। उस समय, मनुष्य पहचान एवं रुतबे दोनों में महज एक प्राणी ही होगा। आगे से ऊँच एवं नीच में कोई अन्तर नहीं होगा; प्रत्येक व्यक्ति बस अलग अलग कार्य करेगा। फिर भी मनुष्य तब भी मानवजाति के व्यवस्थित एवं उपयुक्त मंज़िल में जीवन बिताएगा, मनुष्य सृष्टिकर्ता की आराधना करने के लिए अपने कर्तव्य को निभाएगा, और इस प्रकार की मानवजाति ही अनंतकाल की मानवजाति होगी। उस समय, मनुष्य ऐसे जीवन को प्राप्त कर चुका होगा जिसे परमेश्वर के द्वारा प्रकाशित किया गया है, ऐसा जीवन जो परमेश्वर की देखरेख एवं संरक्षण के अधीन है, और ऐसा जीवन जो परमेश्वर के साथ है। मानवजाति पृथ्वी पर एक सामान्य जीवन को जीएगी, और सम्पूर्ण मानवजाति सही मार्ग में प्रवेश करेगी। 6000 सालों की प्रबंधकीय योजना ने शैतान को पूरी तरह से पराजित कर दिया होगा, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर ने अपनी सृष्टि के बाद मनुष्य की मूल छवि को पुनः प्राप्त कर लिया होगा, और ऐसे ही, परमेश्वर के मूल इरादे को पूरा कर लिया गया होगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना" से
मनुष्य का प्रबंध करना मेरा कार्य है, और जब मैंने संसार को बनाया मेरे द्वारा उसे जीत लिया जाना, उस से भी अधिक पूर्व निर्धारित था। लोग नहीं जानते हैं कि अंतिम दिनों में मैं उन्हें पूरी तरह से जीत लूँगा, और वे इसके बारे में भी अनजान हैं कि मानव जाति के अवज्ञाकारी सदस्यों को जीत लेना ही शैतान को मेरे द्वारा हराने का प्रमाण है। परन्तु मैंने अपने शत्रु को पहले से ही बता दिया था जब उसने मेरे साथ संघर्ष किया कि मैं उन सभी का जीतने वाला बनूँगा जो शैतान के द्वारा ले लिए गए थे और बहुत पहले उसकी संतान बन गए थे, और उसके वफादार सेवक उसके घर की निगरानी करने लगे थे।…मानव जाति, जो बहुत पहले से शैतान के पैर के नीचे रौंदी गयी, शैतान के स्वरुप में कार्य करती रही है-यहाँ तक की उसकी मूर्त रूप रही है। वे "साफतौर पर शैतान के गवाह" होने के सबूत हैं। ऐसी मानव जाति, ऐसे बेकार लोग, या इस भ्रष्ट मानव परिवार की ऐसी संतान, कैसे वे परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं? मेरी महिमा कहाँ से आती है? मेरे गवाह कहाँ हैं? वह शत्रु जो मेरे विरोध में खड़ा होता है और मानव जाति को भ्रष्ट करता है, उसने पहले से ही मानव जातिको, मेरी उस सृष्टि को दूषित कर दिया है, मेरी महिमा और मेरे जीवन से लबालब है। उसने मेरी महिमा को चुरा लिया है, और मनुष्य को शैतान की कुरूपता के ज़हर से, और अच्छाई और बुराई के ज्ञान के वृक्ष के फल के रस से बुरी तरह से रंग दिया है।…मैं मनुष्यों से अपनी महिमा को वापिस ले लूंगा, अपनी गवाही को वापिस ले लूंगा और वह सब जो कभी मेरा था, जो मैंने बहुत पहले मानव जाति को दे दिया था- पूरी तरह से मानव जाति को जीत लूंगा। लेकिन तुम्हें यह जानना चाहिए कि वे मनुष्य जिनकी मैंने रचना की, जिनमें मेरा स्वरूप और महिमा थी,वे पवित्र लोग थे। वे मूल रूप में शैतान के नहीं थे, न ही वे कुचले गये थे, परन्तु पूर्ण रूप से मेरा ही प्रकटीकरण थे, उसका ज़रा सा भी ज़हर उनमें नहीं था। इस प्रकार, हर एक पर मैं यह ज़ाहिर करता हूँ, मैं सिर्फ़ इतना चाहता हूँ कि जो मेरे हाथों द्वारा बनाये गये थे, जो मेरे प्रिय पवित्र जन थे, वे कभी भी किसी और के न हों। इससे अलावा, मैं उनमें आनंद लूंगा और उन्हें अपनी महिमा के रूप में देखूंगा। तथापि, मैं जिसे चाहता हूँ यह वह मानवजाति नहीं है जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है, यह वह नहीं है जो आज शैतान है, यह मेरी मेरी मूल रचना नहीं है। क्योंकि मैं अपनी महिमा मानव संसार में वापिस लेना चाहता हूं, मैं शैतान पर अपनी विजय की महिमा के प्रमाण के तौर पर, मानव जाति के बचे हुए उत्तरजीवियों पर पूरी तरह से, जीत हासिल करूंगा। मैं सिर्फ़ अपनी गवाही को, अपने आनंद की वस्तु के रूप में क्रिस्टलीकरण के तौर पर लूंगा। ऐसा मेरा इरादा है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "एक वास्तविक मनुष्य का क्या अर्थ है" से
आज के दिन तक, लगभग 6000 वर्षों से अपना काम करते हुए परमेश्वर ने अपने बहुत से कामों को पहले ही प्रकट किया है, मुख्य रूप से शैतान को पराजित करने और समस्त मानवजाति का उद्धार करने का कार्य। वह इस अवसर का उपयोग करके स्वर्ग के प्रत्येक प्राणी, पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी और समुद्र के प्रत्येक प्राणी और पृथ्वी पर परमेश्वर की सृष्टि के अंतिम प्राणी या वस्तु तक को यह अवसर प्रदान करता है ताकि वे परमेश्वर की सर्वसामर्थ्य और सभी कामों को देखें। वह शैतान को पराजित करने के अवसर का लाभ उठाकर मनुष्यों पर अपने सभी कार्य प्रकट करता है, ताकि वे उसकी स्तुति कर सकें और शैतान को पराजित करने वाली उसकी बुद्धि को ऊंचा उठा सके। पृथ्वी पर और स्वर्ग में, और समुद्र की प्रत्येक वस्तु उसे महिमा देती है, और उसके सर्वशक्तिमान होने यशगान करती है, उसके सभी कामों का गुणगान करती है, और उसके पवित्र नाम की जय-जयकार करती है। यह उसके द्वारा शैतान को परास्त करने का प्रमाण है, यह उसके द्वारा शैतान पर जय पाने का प्रमाण है, और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह उसके द्वारा मानवजाति केउद्धार का भी प्रमाण है। परमेश्वर की समस्त सृष्टि परमेश्वर को महिमामंडित करती है, अपने शत्रु को पराजित करके, विजयी होकर लौटने के लिये उसकी स्तुति करती है, और एक जयवंत और महान् राजा के रूप में वे उसकी प्रशंसा करते हैं। उसका उद्देश्य केवल शैतान को पराजित करना ही नहीं है, इस कारण उसके कार्य को चलते हुये 6000 वर्ष हो चुके हैं। वह शैतान की पराजय को मानवजाति के उद्धार के लिए उपयोग करता है, वह शैतान की पराजय के द्वारा अपने सभी कामों और अपनी सारी महिमा को प्रकट करता है। वह महिमा पायेगा, और स्वर्गदूतों की समस्त सेना भी उसकी महिमा देखेगी। स्वर्ग में संदेशवाहक, पृथ्वी पर मनुष्य, और पृथ्वी की सभी सृष्टि सृजनकर्ता की महिमा को देखेगी। यही वह काम है जो वह करता है। स्वर्ग में उसकी सृष्टि और पृथ्वी पर उसकी सृष्टि, सभी उसकी महिमा को देखेंगे। और वह शैतान को पराजित करने के बाद विजय के उल्लास के साथ वापस लौटेगा, और समस्त मानव जाति को अपनी प्रशंसा करने का अवसर देगा। वह सफलतापूर्वक इन दोनों पहलुओं को प्राप्त करेगा। अंत में समस्त मानवजाति उसके द्वारा जीत ली जायेगी और वह उन सबका सर्वनाश कर देगा जो उसका विरोध करते हैं या विद्रोह करते हैं, अर्थात् वे लोग जो शैतान के साथ हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "आपको जानना चाहिये कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई" से
मनुष्य सभी चीज़ों का स्वामी है, परन्तु ऐसे लोग जिन्हें हासिल किया जाता है वे शैतान के साथ सारी लड़ाइयों के फल परिणाम बन जाएंगे। शैतान सभी चीज़ों को भ्रष्ट करनेवाला है, सारी लड़ाइयों के अन्त में वह हारा हुआ शख्स है, और साथ ही वह ऐसा है जिसे इन लड़ाइयों के बाद दण्ड दिया जाएगा। परमेश्वर, मनुष्य एवं शैतान के बीच में, केवल शैतान ही वह है जिससे घृणा की जाएगी और जिसे ठुकरा दिया जाएगा। ऐसे लोग जिन्हें शैतान के द्वारा प्राप्त किया गया था किन्तु उन्हें परमेश्वर के द्वारा वापस नहीं लिया गया है, इसी बीच, वे ऐसे लोग बन जाते हैं जो शैतान के स्थान पर सज़ा प्राप्त करेंगे। इन तीनों में से, सभी प्राणियों के द्वारा केवल परमेश्वर की ही आराधना की जानी चाहिए। ऐसे लोग जिन्हें शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था परन्तु जिन्हें परमेश्वर के द्वारा वापस ले लिया गया है और जो परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हैं, इसी बीच, वे ऐसे लोग बन जाते हैं जो परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करेंगे और परमेश्वर के लिए दुष्ट लोगों का न्याय करेंगे। परमेश्वर निश्चित रूप से विजयी होगा और शैतान निश्चित रूप से पराजित होगा, परन्तु मनुष्य के मध्य ऐसे लोग हैं जो जीतेंगे और ऐसे लोग हैं जो हारेंगे। ऐसे लोग जो विजय प्राप्त करेंगे वे विजेता के हैं; और ऐसे लोग जो हारेंगे वे हारे हुए शख्स के हैं; यह किस्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का वर्गीकरण है, यह परमेश्वर के सम्पूर्ण कार्य का अंतिम परिणाम है, साथ ही यह परमेश्वर के सम्पूर्ण कार्य का लक्ष्य भी है, और यह कभी नहीं बदलेगा। परमेश्वर की प्रबधंकीय योजना के मुख्य कार्य के केन्द्रीय भाग को मानवजाति के उद्धार पर केन्द्रित किया गया है, और परमेश्वर मुख्यतः अपने केन्द्रीय भाग के लिए, इस कार्य के लिए, और शैतान को पराजित करने के लिए देहधारण करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना" से
सभी लोगों को पृथ्वी पर मेरे कार्य को समझने की आवश्यकता है, अर्थात्, मेरे कार्य का अंतिम उद्देश्य और इससे पहले कि इसे पूरा किया जा सके कौन सा स्तर मुझे इस कार्य में प्राप्त अवश्य करना चाहिए। यदि लोग, आज के दिन तक मेरे साथ चल रहे लोग, यह नहीं समझते हैं कि मेरा समस्त कार्य किस बारे में है, तो क्या वे मेरे साथ व्यर्थ में नहीं चल रहे हैं? जो लोग मेरा अनुसरण करते हैं उन्हें मेरी इच्छा जाननी चाहिए। मैं हज़ारों सालों से पृथ्वी पर कार्य करता आ रहा हूँ, और मैं अभी भी ऐसा ही कर रहा हूँ। यद्यपि मेरे कार्य में विशेष रूप से अनगिनत चीजें शामिल हैं फिर भी इसका उद्देश्य अपरिवर्तनीय बना रहता है। उदाहरण के लिए, यद्यपि मैं मनुष्य के प्रति न्याय और ताड़ना से भरपूर हूँ, फिर भी यह उसे बचाने के लिए है, मेरे सुसमाचार को बेहतर ढंग से फैलाने के लिए है और एक बार मुनष्य को पूर्ण बना देने पर अन्यजाति देशों के मध्य मेरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए है। अतः अब, एक ऐसे समय में जब कई लोग पहले ही बहुतायत से आशा खो चुके हैं, मैं निरन्तर अपना कार्य कर रहा हूँ, और निरन्तर उस कार्य को कर रहा हूँ जो मनुष्य का न्याय और उसकी ताड़ना करने के लिए मुझे अवश्य करना चाहिए। इस तथ्य के बावजूद कि जो कुछ मैं कहता हूँ मनुष्य उस से उकता गया है और इस तथ्य की परवाह किए बिना कि उसे मेरे कार्य की परवाह करने की कोई इच्छा नहीं है, मैं तब भी अपना कर्तव्य कर रहा हूँ क्योंकि मेरे कार्य का उद्देश्य अपरिवर्तनीय रहता है और मेरी मूल योजना नहीं तोड़ी जाएगी। मेरे न्याय का प्रकार्य मनुष्य से मेरी आज्ञाओं का बेहतर ढंग से पालन करवाना है, और मेरी ताड़नाओं का प्रकार्य मनुष्य को एक बेहतर रूपान्तरण की अनुमति देना है। यद्यपि जो मैं करता हूँ वह मेरे प्रबन्धन के वास्ते है, किन्तु मैंने कभी भी कुछ ऐसा नहीं किया है जो मनुष्य के लिए अलाभप्रद हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं इस्राएल से बाहर के सभी देशों को ठीक इस्राएलियों के समान ही आज्ञाकारी बनाना चाहता हूँ और उन्हें एक वास्तविक मनुष्य बनाना चाहता हूँ, ताकि इस्राएल के बाहर की भूमियों पर मेरे लिए पैर रखने की जगह हो। यह मेरा प्रबन्धन हैः यह वह कार्य है जिसे मैं अन्यजातियों की भूमि पर पूर्ण कर रहा हूँ। अभी भी, बहुत से लोग मेरे प्रबन्धन को नहीं समझते हैं क्योंकि वे इसके बारे में चिंतित नहीं है, इसके बजाए वे बस अपने भविष्य और मंज़िलों के बारे में सोचते हैं। इस बात की परवाह किए बिना कि मैं क्या कहता हूँ, लोग मेरे कार्य के प्रति उदासीन हैं, बस अपनी कल की मंज़िलों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। इसलिए यदि यह जारी रहता है, तो मेरा कार्य कैसे फैलाया जा सकता है? मेरा सुसमाचार सारे संसार तक कैसे फैलाया जा सकता है? तुम लोगों को अवश्य जान लेना चाहिए कि जब मेरा कार्य फैलता है, तो मैं तुम्हें तितर-बितर करूँगा, और तुम लोगों को उसी तरह मारूँगा जैसे यहोवा ने इस्राएल के कबीलों को मारा था। यह सब कुछ इसलिए किया जाएगा ताकि मेरा सुसमाचार सारे संसार के ऊपर फैल सके, ताकि मेरा कार्य अन्यजाति देशों तक फैल जाए। इस प्रकार, जवानों और बच्चों के द्वारा एक समान रूप से मेरे नाम को बढ़ाया जाएगा और मेरे पवित्र नाम को सभी कबीलों और देशों के लोगों के मुँह से गौरवान्वित किया जाएगा। अंतिम युग में, मैं अपने नाम को अन्यजाति देशों के बीच गौरवान्वित करवाऊँगा, और अपने कर्मों को अन्यजाति देशों के सामने दिखवाऊँगा जिस से वे मुझे सर्वशक्तिमान कहेंगे, और मेरे वचनों को शीघ्रता से पूरा होने का कारण बनेंगे। मैं सभी लोगों को ज्ञात करवाऊँगा कि मैं केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर नहीं हूँ, बल्कि सभी अन्यजाति देशों का भी, यहाँ तक कि उन देशों का भी परमेश्वर हूँ जिन्हें मैंने शाप दिया था। मैं सभी लोगों को यह देखने दूँगा कि मैं समस्त सृष्टि का परमेश्वर हूँ। यह मेरा सबसे बड़ा कार्य है, अंत के दिनों के लिए मेरी कार्य योजना का उद्देश्य है, और अंत के दिनों में पूरा किया जाने वाला एकमात्र कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्यों को बचाने का कार्य भी है" से
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