अध्याय 1 तुम्हें अवश्य जानना चाहिए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही एक सच्चा परमेश्वर है जिसने आकाश और पृथ्वी और वह सब कुछ बनाया है जो कुछ उन में है।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर चीन की मुख्य भूमि में देहधारण किया है, जिसे हांगकांग और ताइवान में हमवतन के लोग अंतर्देशीय कहते हैं। जब परमेश्वर ऊपर से पृथ्वी पर आया, तो स्वर्ग और पृथ्वी में कोई भी इसके बारे में नहीं जानता था, क्योंकि यही परमेश्वर का एक गुप्त अवस्था में लौटने का वास्तविक अर्थ है। वह लंबे समय तक देह में कार्य करता और रहता रहा है, फिर भी इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है। आज के दिन तक भी, कोई इसे पहचानता नहीं है। शायद यह एक शाश्वत पहेली रहेगा। इस बार परमेश्वर का देह में आना कुछ ऐसा नहीं है जिसके बारे कोई भी जानने में सक्षम नहीं है। इस बात की परवाह किए बिना कि पवित्रात्मा का कार्य कितने बड़े-पैमाने का और कितना शक्तिशाली है, परमेश्वर हमेशा शांतचित्त बना रहता है, कभी भी स्वयं का भेद नहीं खोलता है।
कोई कह सकता है कि यह ऐसा है मानो कि उसके कार्य का यह चरण स्वर्ग के क्षेत्र में हो रहा है। यद्यपि यह हर एक के लिए बिल्कुल स्पष्ट है, किन्तु कोई भी इसे पहचानता नहीं है। जब परमेश्वर अपने कार्य के इस चरण को समाप्त कर लेगा, तो हर कोई अपने लंबे सपने से जाग जाएगा और अपनी पिछली प्रवृत्ति को उलट देगा।[1] मुझे परमेश्वर का एक बार यह कहना याद है, "इस बार देह में आना शेर की माँद में गिरने जैसा है।" इसका अर्थ यह है कि क्योंकि परमेश्वर के कार्य का यह चक्र परमेश्वर का देह में आना है और बड़े लाल अजगर के निवास स्थान में पैदा होना है, इसलिए इस बार उसके पृथ्वी पर आने के साथ-साथ और भी अधिक चरम ख़तरे हैं। जिसका वह सामना करता है वे हैं चाकू और बंदूकें और लाठियाँ; जिसका वह सामना करता है वह है प्रलोभन; जिसका वह सामना करता है वह हत्यारी दिखाई देने वाली भीड़। वह किसी भी समय मारे जाने का जोख़िम लेता है। परमेश्वर कोप के साथ आया। हालाँकि, वह पूर्णता का कार्य करने के लिए आया, जिसका अर्थ है कि कार्य का दूसरा भाग करने के लिए जो छुटकारे के कार्य के बाद जारी रहता है। अपने कार्य के इस चरण के वास्ते, परमेश्वर ने अत्यंत विचार और ध्यान समर्पित किया है और, स्वयं को विनम्रतापूर्वक छिपाते हुए और अपनी पहचान का कभी भी घमण्ड नहीं करते हुए, प्रलोभन के हमले से बचने के लिए हर कल्पनीय साधन का उपयोग कर रहा है। सलीब से आदमी को बचाने में, यीशु केवल छुटकारे का कार्य पूरा कर रहा था; वह पूर्णता का कार्य नहीं कर रहा था। इस प्रकार परमेश्वर का केवल आधा कार्य ही किया जा रहा था, परिष्करण और छुटकारे का कार्य उसकी संपूर्ण योजना का केवल आधा ही था। चूँकि नया युग शुरू होने ही वाला था और पुराना युग पीछे हटने ही वाला था, इसलिए परमपिता परमेश्वर ने अपने कार्य के दूसरे हिस्से पर विवेचन करना शुरू किया और इसके लिए तैयारी करनी शुरू कर दी। अतीत में, कदाचित अंत के दिनों में इस देहधारण की भविष्यवाणी नहीं की गई हो, और इसलिए उसने इस बार परमेश्वर के देह में आने के आस-पास बढ़ी हुई गोपनीयता की नींव रखी। उषाकाल में, किसी को भी बताए बिना, परमेश्वर पृथ्वी पर आया और देह में अपना जीवन शुरू किया। लोग इस क्षण से अनभिज्ञ थे। कदाचित वे सब घोर निद्रा में थे, कदाचित बहुत से लोग जो सतर्कतापूर्वक जागे हुए थे वे प्रतीक्षा कर रहे थे, और कदाचित कई लोग स्वर्ग के परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना कर रहे थे। फिर भी इन सभी कई लोगों के बीच, कोई नहीं जानता था कि परमेश्वर पहले से ही पृथ्वी पर आ चुका है। परमेश्वर ने अपने कार्य को अधिक सुचारू रूप से पूरा करने और बेहतर परिणामों को प्राप्त करने के लिए इस तरह से कार्य किया, और यह अधिक प्रलोभनों से बचने के लिए भी था। जब मनुष्य की वसंत की नींद टूटेगी, तब तक परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही समाप्त हो गया होगा और वह पृथ्वी पर भटकने और अस्थायी निवास के अपने जीवन को समाप्त करते हुए चला जाएगा। क्योंकि परमेश्वर का कार्य परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से कार्य करना और बोलना आवश्यक बनाता है, और क्योंकि मनुष्य के लिए सहायता करने का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए परमेश्वर ने स्वयं कार्य करने हेतु पृथ्वी पर आने के लिए अत्यधिक पीड़ा सही है। मनुष्य परमेश्वर के कार्य का स्थान लेने में समर्थ है। इसलिए परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना स्वयं का कार्य करने, अपनी समस्त सोच और देखरेख को दरिद्र लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने पर रखने, खाद के ढेर से सने लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने हेतु, उस स्थान पर आने के लिए जहाँ बड़ा लाल अजगर निवास करता है, अनुग्रह के युग के दौरान के ख़तरों की अपेक्षा कई हजार गुना अधिक ख़तरों का जोखिम लिया है। यद्यपि कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में नहीं जानता है, तब भी परमेश्वर परेशान नहीं है क्योंकि इससे परमेश्वर के कार्य को काफी लाभ मिलता है। हर कोई नृशंस रूप से बुरा है, इसलिए कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? यही कारण है कि पृथ्वी पर परमेश्वर हमेशा चुप रहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य कितना अधिक क्रूर है, परमेश्वर इसमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता है, बल्कि उस कार्य को करता रहता है जिसे करने की उसे आवश्यकता है ताकि उस बड़े कार्यभार को पूरा किया जाए जो स्वर्गिक परमपिता ने उसे दिया। तुम लोगों में से किसने परमेश्वर की मनोरमता को पहचाना है? कौन परमपिता परमेश्वर के लिए उसके पुत्र की तुलना में अधिक महत्व दर्शाता है? कौन परमपिता परमेश्वर की इच्छा को समझने में सक्षम है? स्वर्ग में परमपिता का आत्मा अक्सर परेशान होता है, और पृथ्वी पर उसका पुत्र, उसके हृदय को चिंता से टुकड़े-टुकड़े करते हुए, परमपिता की इच्छा से बारंबार प्रार्थना करता है। क्या कोई है जो परमपिता परमेश्वर के अपने बेटे के लिए प्यार को जानता हो? क्या कोई है जो जानता हो कि कैसे प्यारा पुत्र परमपिता परमेश्वर को कैसे याद करता है? स्वर्ग और पृथ्वी के बीच विदीर्ण हुए, दोनों दूर से एक दूसरे की ओर, पवित्रात्मा में साथ-साथ, लगातार निहार रहे हैं। हे मानवजाति! तुम लोग परमेश्वर के हृदय के बारे में कब विचारशील बनोगे? कब तुम लोग परमेश्वर के अभिप्राय को समझोगे? परमपिता और पुत्र हमेशा एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं। फिर क्यों उन्हें पृथक किया जाना चाहिए, एक ऊपर स्वर्ग में और एक नीचे पृथ्वी पर? परमपिता अपने पुत्र को उतना ही प्यार करता है जितना पुत्र अपने पिता को प्यार करता है। तो फिर उसे इतनी उत्कंठा के साथ और इतने लंबे समय तक इतनी व्यग्रता के साथ प्रतीक्षा क्यों करनी चाहिए? यद्यपि वे लंबे समय से पृथक नहीं हुए हैं, क्या किसी को पता है कि परमपिता पहले से ही इतने दिनों और रातों से उद्वेग से तड़प रहा है और लंबे समय से अपने प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी की प्रतीक्षा कर रहा है? वह देखता है, वह मौन में बैठता है, वह प्रतीक्षा करता है। यह सब उनके प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी के लिए है। वह कब पुनः पुत्र के साथ होगा जो पृथ्वी पर भटक रहा है? यद्यपि एक बार एक साथ हो जाएँ, तो वे अनंत काल के लिए एक साथ होंगे, किन्तु वह हजारों दिनों और रातों के विरह को कैसे सहन कर सकता है, एक ऊपर स्वर्ग में एक और एक नीचे पृथ्वी पर? पृथ्वी पर दसियों वर्ष स्वर्ग में हजारों वर्षों के जैसे हैं। कैसे परमपिता परमेश्वर चिंता नहीं कर सकता है? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह मानव दुनिया के बहुत से उतार-चढ़ावों का वैसे ही अनुभव करता है जैसे मनुष्य करता है। परमेश्वर स्वयं भोला-भाला है, तो क्यों परमेश्वर वही दर्द सहे जो आदमी सहता है? कोई आश्चर्य नहीं कि परमपिता परमेश्वर अपने पुत्र के लिए इतनी तीव्र इच्छा से तरसता है; कौन परमेश्वर के हृदय को समझ सकता है? परमेश्वर मनुष्य को बहुत अधिक देता है; कैसे मनुष्य परमेश्वर के हृदय को पर्याप्त रूप से चुका सकता है? फिर भी मनुष्य परमेश्वर को बहुत कम देता है; परमेश्वर इसलिए चिंता क्यों नहीं कर सकता है?
कोई कह सकता है कि यह ऐसा है मानो कि उसके कार्य का यह चरण स्वर्ग के क्षेत्र में हो रहा है। यद्यपि यह हर एक के लिए बिल्कुल स्पष्ट है, किन्तु कोई भी इसे पहचानता नहीं है। जब परमेश्वर अपने कार्य के इस चरण को समाप्त कर लेगा, तो हर कोई अपने लंबे सपने से जाग जाएगा और अपनी पिछली प्रवृत्ति को उलट देगा।[1] मुझे परमेश्वर का एक बार यह कहना याद है, "इस बार देह में आना शेर की माँद में गिरने जैसा है।" इसका अर्थ यह है कि क्योंकि परमेश्वर के कार्य का यह चक्र परमेश्वर का देह में आना है और बड़े लाल अजगर के निवास स्थान में पैदा होना है, इसलिए इस बार उसके पृथ्वी पर आने के साथ-साथ और भी अधिक चरम ख़तरे हैं। जिसका वह सामना करता है वे हैं चाकू और बंदूकें और लाठियाँ; जिसका वह सामना करता है वह है प्रलोभन; जिसका वह सामना करता है वह हत्यारी दिखाई देने वाली भीड़। वह किसी भी समय मारे जाने का जोख़िम लेता है। परमेश्वर कोप के साथ आया। हालाँकि, वह पूर्णता का कार्य करने के लिए आया, जिसका अर्थ है कि कार्य का दूसरा भाग करने के लिए जो छुटकारे के कार्य के बाद जारी रहता है। अपने कार्य के इस चरण के वास्ते, परमेश्वर ने अत्यंत विचार और ध्यान समर्पित किया है और, स्वयं को विनम्रतापूर्वक छिपाते हुए और अपनी पहचान का कभी भी घमण्ड नहीं करते हुए, प्रलोभन के हमले से बचने के लिए हर कल्पनीय साधन का उपयोग कर रहा है। सलीब से आदमी को बचाने में, यीशु केवल छुटकारे का कार्य पूरा कर रहा था; वह पूर्णता का कार्य नहीं कर रहा था। इस प्रकार परमेश्वर का केवल आधा कार्य ही किया जा रहा था, परिष्करण और छुटकारे का कार्य उसकी संपूर्ण योजना का केवल आधा ही था। चूँकि नया युग शुरू होने ही वाला था और पुराना युग पीछे हटने ही वाला था, इसलिए परमपिता परमेश्वर ने अपने कार्य के दूसरे हिस्से पर विवेचन करना शुरू किया और इसके लिए तैयारी करनी शुरू कर दी। अतीत में, कदाचित अंत के दिनों में इस देहधारण की भविष्यवाणी नहीं की गई हो, और इसलिए उसने इस बार परमेश्वर के देह में आने के आस-पास बढ़ी हुई गोपनीयता की नींव रखी। उषाकाल में, किसी को भी बताए बिना, परमेश्वर पृथ्वी पर आया और देह में अपना जीवन शुरू किया। लोग इस क्षण से अनभिज्ञ थे। कदाचित वे सब घोर निद्रा में थे, कदाचित बहुत से लोग जो सतर्कतापूर्वक जागे हुए थे वे प्रतीक्षा कर रहे थे, और कदाचित कई लोग स्वर्ग के परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना कर रहे थे। फिर भी इन सभी कई लोगों के बीच, कोई नहीं जानता था कि परमेश्वर पहले से ही पृथ्वी पर आ चुका है। परमेश्वर ने अपने कार्य को अधिक सुचारू रूप से पूरा करने और बेहतर परिणामों को प्राप्त करने के लिए इस तरह से कार्य किया, और यह अधिक प्रलोभनों से बचने के लिए भी था। जब मनुष्य की वसंत की नींद टूटेगी, तब तक परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही समाप्त हो गया होगा और वह पृथ्वी पर भटकने और अस्थायी निवास के अपने जीवन को समाप्त करते हुए चला जाएगा। क्योंकि परमेश्वर का कार्य परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से कार्य करना और बोलना आवश्यक बनाता है, और क्योंकि मनुष्य के लिए सहायता करने का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए परमेश्वर ने स्वयं कार्य करने हेतु पृथ्वी पर आने के लिए अत्यधिक पीड़ा सही है। मनुष्य परमेश्वर के कार्य का स्थान लेने में समर्थ है। इसलिए परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना स्वयं का कार्य करने, अपनी समस्त सोच और देखरेख को दरिद्र लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने पर रखने, खाद के ढेर से सने लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने हेतु, उस स्थान पर आने के लिए जहाँ बड़ा लाल अजगर निवास करता है, अनुग्रह के युग के दौरान के ख़तरों की अपेक्षा कई हजार गुना अधिक ख़तरों का जोखिम लिया है। यद्यपि कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में नहीं जानता है, तब भी परमेश्वर परेशान नहीं है क्योंकि इससे परमेश्वर के कार्य को काफी लाभ मिलता है। हर कोई नृशंस रूप से बुरा है, इसलिए कोई भी परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? यही कारण है कि पृथ्वी पर परमेश्वर हमेशा चुप रहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि मनुष्य कितना अधिक क्रूर है, परमेश्वर इसमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता है, बल्कि उस कार्य को करता रहता है जिसे करने की उसे आवश्यकता है ताकि उस बड़े कार्यभार को पूरा किया जाए जो स्वर्गिक परमपिता ने उसे दिया। तुम लोगों में से किसने परमेश्वर की मनोरमता को पहचाना है? कौन परमपिता परमेश्वर के लिए उसके पुत्र की तुलना में अधिक महत्व दर्शाता है? कौन परमपिता परमेश्वर की इच्छा को समझने में सक्षम है? स्वर्ग में परमपिता का आत्मा अक्सर परेशान होता है, और पृथ्वी पर उसका पुत्र, उसके हृदय को चिंता से टुकड़े-टुकड़े करते हुए, परमपिता की इच्छा से बारंबार प्रार्थना करता है। क्या कोई है जो परमपिता परमेश्वर के अपने बेटे के लिए प्यार को जानता हो? क्या कोई है जो जानता हो कि कैसे प्यारा पुत्र परमपिता परमेश्वर को कैसे याद करता है? स्वर्ग और पृथ्वी के बीच विदीर्ण हुए, दोनों दूर से एक दूसरे की ओर, पवित्रात्मा में साथ-साथ, लगातार निहार रहे हैं। हे मानवजाति! तुम लोग परमेश्वर के हृदय के बारे में कब विचारशील बनोगे? कब तुम लोग परमेश्वर के अभिप्राय को समझोगे? परमपिता और पुत्र हमेशा एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं। फिर क्यों उन्हें पृथक किया जाना चाहिए, एक ऊपर स्वर्ग में और एक नीचे पृथ्वी पर? परमपिता अपने पुत्र को उतना ही प्यार करता है जितना पुत्र अपने पिता को प्यार करता है। तो फिर उसे इतनी उत्कंठा के साथ और इतने लंबे समय तक इतनी व्यग्रता के साथ प्रतीक्षा क्यों करनी चाहिए? यद्यपि वे लंबे समय से पृथक नहीं हुए हैं, क्या किसी को पता है कि परमपिता पहले से ही इतने दिनों और रातों से उद्वेग से तड़प रहा है और लंबे समय से अपने प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी की प्रतीक्षा कर रहा है? वह देखता है, वह मौन में बैठता है, वह प्रतीक्षा करता है। यह सब उनके प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी के लिए है। वह कब पुनः पुत्र के साथ होगा जो पृथ्वी पर भटक रहा है? यद्यपि एक बार एक साथ हो जाएँ, तो वे अनंत काल के लिए एक साथ होंगे, किन्तु वह हजारों दिनों और रातों के विरह को कैसे सहन कर सकता है, एक ऊपर स्वर्ग में एक और एक नीचे पृथ्वी पर? पृथ्वी पर दसियों वर्ष स्वर्ग में हजारों वर्षों के जैसे हैं। कैसे परमपिता परमेश्वर चिंता नहीं कर सकता है? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह मानव दुनिया के बहुत से उतार-चढ़ावों का वैसे ही अनुभव करता है जैसे मनुष्य करता है। परमेश्वर स्वयं भोला-भाला है, तो क्यों परमेश्वर वही दर्द सहे जो आदमी सहता है? कोई आश्चर्य नहीं कि परमपिता परमेश्वर अपने पुत्र के लिए इतनी तीव्र इच्छा से तरसता है; कौन परमेश्वर के हृदय को समझ सकता है? परमेश्वर मनुष्य को बहुत अधिक देता है; कैसे मनुष्य परमेश्वर के हृदय को पर्याप्त रूप से चुका सकता है? फिर भी मनुष्य परमेश्वर को बहुत कम देता है; परमेश्वर इसलिए चिंता क्यों नहीं कर सकता है?
पुरुषों के बीच में शायद ही कोई परमेश्वर के हृदय की तीव्र इच्छा को समझता है क्योंकि लोगों की क्षमता बहुत कम है और उनकी आध्यात्मिक संवेदनशीलता काफी सुस्त है, और क्योंकि वे सभी न तो देखते हैं और न ही ध्यान देते हैं कि परमेश्वर क्या कर रहा है। इसलिए परमेश्वर मनुष्य के बारे में चिंता करता रहता है, मानो कि मनुष्य की पाशविक प्रकृति किसी भी क्षण बाहर आ सकती हो। यह आगे दर्शाता है कि परमेश्वर का पृथ्वी पर आना बड़े प्रलोभनों के साथ-साथ है। किन्तु लोगों के एक समूह को पूरा करने के वास्ते, महिमा से लदे हुए, परमेश्वर ने मनुष्य को अपने हर अभिप्राय के बारे, कुछ भी नहीं छिपाते हुए, बता दिया। उसने लोगों के इस समूह को पूरा करने के लिए दृढ़ता से संकल्प किया है। इसलिए, कठिनाई आए या प्रलोभन, वह नज़र फेर लेता है और इस सभी को अनदेखा करता है। वह केवल चुपचाप अपना स्वयं का कार्य करता है, और दृढ़ता से यह विश्वास करता है कि एक दिन जब परमेश्वर महिमा प्राप्त लेगा, तो आदमी परमेश्वर को जान लेगा, और यह विश्वास करता है कि जब मनुष्य परमेश्वर के द्वारा पूरा कर लिया जाएगा, तो वह परमेश्वर के हृदय को पूरी तरह से समझ जाएगा। अभी ऐसे लोग हो सकते हैं जो परमेश्वर को प्रलोभित कर सकते हैं या परमेश्वर को गलत समझ सकते हैं या परमेश्वर को दोष दे सकते हैं; परमेश्वर उसमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता है। जब परमेश्वर महिमा में अवरोहण करेगा, तो सभी लोग समझ जाएँगे कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह मानव जाति के कल्याण के लिए है, और सभी लोग समझ जाएँगे कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह इसलिए है ताकि मानव जाति बेहतर ढंग से जीवित रह सके। परमेश्वर का आगमन प्रलोभनों के साथ-साथ है, और परमेश्वर प्रताप और कोप के साथ भी आता है। जब तक परमेश्वर मनुष्यों को छोड़ कर जाएगा, तब तक उसने पहले ही महिमा प्राप्त कर ली होगी, और वह पूरी तरह से महिमा भरा हुआ और वापसी की खुशी के साथ चला जाएगा। इस बात की परवाह किए बिना कि लोग उसे कैसे अस्वीकार करते हैं, पृथ्वी पर कार्य करते हुए परमेश्वर चीजों को गंभीरता से नहीं लेता है। वह केवल अपना कार्य कर रहा है। परमेश्वर का विश्व का सृजन हजारों वर्षों पहले से चल रहा है, वह पृथ्वी पर एक असीमित मात्रा में कार्य करने के लिए आया है, और उसने मानव दुनिया के अस्वीकरण और अपयश का पूरी तरह से अनुभव किया है। कोई भी परमेश्वर के आगमन का स्वागत नहीं करता है; हर कोई मात्र एक भावशून्य नज़र से उसका सम्मान करता है। इन हजारों वर्षों की कठिनाइयों के दौरान, मनुष्य के व्यवहार ने बहुत पहले से ही परमेश्वर के हृदय को चूर-चूर कर दिया है। वह लोगों के विद्रोह पर अब और ध्यान नहीं देता है, बल्कि इसके बजाय मनुष्य को रूपांतरित करने और स्वच्छ बनाने के लिए एक अलग योजना बना रहा है। उपहास, अपयश, उत्पीड़न, दारूण दुःख, सलीब पर चढ़ने की पीड़ा, मनुष्य द्वारा अपवर्जन इत्यादि जिसे परमेश्वर ने देह में अनुभव किया है—परमेश्वर ने इन्हें पर्याप्त रूप से झेला है। परमेश्वर ने देह में मानव दुनिया के दुःखों को पूरी तरह से भुगता है। स्वर्ग के परमपिता परमेश्वर के आत्मा ने बहुत समय पहले ही ऐसे दृश्यों का असहनीय होना जान लिया था और अपने प्यारे पुत्र की वापसी के लिए इंतजार करते हुए, अपना सिर पीछे कर लिया था और अपनी आँखें बंद कर लीं थी। वह केवल इतना ही चाहता है कि सभी लोग सुनें और पालन करें, उसकी देह के सामने अत्यधिक शर्मिंदगी महसूस करने में समर्थ हों, और उसके ख़िलाफ विद्रोह नहीं करें। वह केवल इतनी ही इच्छा करता है कि सभी लोग विश्वास करें कि परमेश्वर मौज़ूद है। उसने बहुत समय पहले ही मनुष्य से अधिक माँगे करनी बंद कर दी क्योंकि परमेश्वर ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, फिर भी परमेश्वर के कार्य को गंभीरता से नहीं लेते हुए मनुष्य चैन से सो रहा है।[2]
"वचन देह में प्रकट होता है" से "कार्य और प्रवेश (4)" से
पहली बार जब परमेश्वर देह बना तो यह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण के माध्यम से था, और यह उस कार्य से संबंधित था जिसे करने का वह इरादा रखता था। यीशु के नाम ने अनुग्रह के युग की शुरुआत को प्रख्यात किया। जब यीशु ने अपनी सेवकाई आरंभ की, तो पवित्र आत्मा ने यीशु के नाम की गवाही देनी आरंभ कर दी, और यहोवा का नाम अब और नहीं बोला जा रहा था, और इसके बजाय पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से नया कार्य आरंभ किया था। जो यीशु में विश्वास करते थे उन लोगों की गवाही, यीशु मसीह के लिए थी, और उन्होंने जो कार्य किया वह भी यीशु मसीह के लिए था। पुराने विधान के व्यवस्था के युग का निष्कर्ष यह था कि मुख्य रूप से यहोवा के नाम पर आयोजित किया गया कार्य समापन पर पहुँच गया था। इसके बाद, परमेश्वर का नाम यहोवा अब और नहीं था अब परमेश्वर का नाम यहोवा नहीं रह गया था; इसके बजाय उसे यीशु कहा जाता था, और यहाँ से पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम के अधीन कार्य करना आरंभ किया। इसलिए आज, लोग अभी भी यहोवा के वचनों को खाते और पीते हैं, और अभी भी व्यवस्था के युग के कार्य को लागू करते हैं—क्या तुम विनियम का पालन नहीं कर रहे हो? क्या तुम अतीत में अटके हुए नहीं हो? आज, तुमतुम जानते हो कि अंत के दिन आ चुके हैं। जब यीशु आता है, तो क्या वह अभी भी यीशु कहलाएगा? यहोवा ने इस्राएलियों को बताया था कि एक मसीह आएगा, फिर भी जब वह आया,तो उसे मसीहा नहीं बल्कि यीशु कहा गया था। यीशु ने कहा कि वह पुनः आएगा, और वह वैसे ही आएगा जैसे वह गया था। ये यीशु के वचन थे, किन्तु क्या तुमने देखा कि यीशु कैसे गया? यीशु एक सफेद बादल पर गया, किन्तु क्या वह व्यक्तिगत रूप से एक सफेद बादल पर मनुष्यों के बीच वापस आएगा? यदि ऐसा हुआ,तो क्या उसे तब भी यीशु नहीं कहा जाएगा? जब यीशु पुनः आएगा, तब तक युग पहले से ही बदल चुका होगा, तो क्या उसे तब भी यीशु कहा जाएगा? क्या परमेश्वर केवल यीशु के नाम से ही जाना जाता है? क्या उसे एक नए युग में एक नए नाम से नहीं बुलाया जा सकता है? क्या एक व्यक्ति की छवि और एक विशेष नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता से प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? प्रत्येक युग में,परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है;वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है?वह पुराने सेकैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्यहेतु लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा तो तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा?क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं कि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक ही नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? इस तरह, भिन्न युग में परमेश्वर को भिन्न नाम के द्वारा अवश्य बुलाया जाना चाहिए, उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए नाम का उपयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से परमेश्वर स्वयं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। और प्रत्येक नाम केवल एक निश्चित युग के दौरान परमेश्वर के स्वभाव का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है और प्रत्येक नाम केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए आवश्यक है। इसलिए, समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर अपने स्वभाव के लिए हितकारी किसी भी नाम को चुन सकता है। इस बात की परवाह किए बिना कि क्या यह यहोवा का युग है, या यीशु का युग है, प्रत्येक युग का एक नाम के द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है। अनुग्रह के युग के बाद,अंतिम युग आ गया है और यीशु पहले ही आ चुका है। उसे अब भी यीशु कैसे कहा जा सकता है? वह अब भी मनुष्यों के बीच यीशु के रूप को कैसे अपना सकता है? क्या तुम भूल गए हो कि यीशु केवल एक नाज़री की छवि था? क्या तुम भूल गए कि यीशु केवल मानवजाति को ही छुटकारा दिलाने वाला था? वह अंत के दिनों में मनुष्य को जीतने और पूर्ण करने का कार्य हाथ में कैसे ले सकता था? यीशु एक सफेद बादल पर गया, यह सत्य है, किन्तु वह मनुष्यों के बीच एक सफेद बादल पर कैसे वापस आ सकता है और फिर भी उसे यीशु कहा जा सकता है? यदि वह वास्तव में बादल पर आया, तो क्या वह मनुष्य के द्वारा पहचाना नहीं जाएगा? क्या दुनिया भर के लोग उसे नहीं पहचानेंगे? उस स्थिति में, क्या यीशु एकमात्र परमेश्वर नहीं होगा? उस स्थिति में, परमेश्वर की छवि एक यहूदी का रूप-रंग होगी, और वह हमेशा ऐसी ही रहेगी। यीशु ने कहा था कि वह उसी तरह से आएगा जैसे वह गया था, किन्तु क्या उसके वचनों के सही अर्थ को जानते हो? क्या वह वास्तव में तुमसे कह सका होगा? तुम केवल यही जानते हो कि वह बादल पर उसी तरह से आएगा जैसे वह गया था, किन्तु क्या तुम ठीक-ठीक जानते हो कि परमेश्वर स्वयं अपना कार्य कैसे करता है? यदि तुम वास्तव में देखने में सक्षम होते,तब यीशु के वचनों को कैसे समझाया जाता? उसने कहा, "जब अंत के दिनों में मनुष्य का पुत्र आएगा,तो उसे स्वयं ज्ञात नहीं होगा, फ़रिश्तों को ज्ञात नहीं होगा, स्वर्ग के दूतों को ज्ञात नहीं होगा, और सभी लोगों को ज्ञात नहीं होगा। केवल परमपिता को ज्ञात होगा, अर्थात्, केवल पवित्रात्मा को ही ज्ञात होगा।" यदि तुम जानने और देखने में सक्षम हो, तब क्या ये खोखले वचन नहीं हैं? यहाँ तक कि स्वयं मनुष्य का पुत्र भी नहीं जानता है,फिर भी तुम देखने और जानने में सक्षम हो? यदि तुम स्वयं अपनी आँखों से देख चुके हो, तो क्या वे वचन व्यर्थ में नहीं कहे गए थे? और उस समय यीशु ने क्या कहा? "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।...तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।" जब वह दिन आ जाएगा, तो स्वयं मनुष्य के पुत्र को उसका पता नहीं चलेगा। मनुष्य का पुत्र देहधारी परमेश्वर की देह का संकेत करता है,जो कि एक सामान्य और साधारण व्यक्ति होगा। यहाँ तक कि वह स्वयं नहीं जानता है, तो तुम कैसे जान सकते हो? यीशु ने कहा था कि वह वैसे ही आएगा जैसे वह गया था। जब वह आता है, तो वह स्वयं भी नहीं जानता है, तो क्या वह तुम्हें अग्रिम में सूचित कर सकता है? क्या तुम उसका आगमन देखने में सक्षम हो? क्या यह एक मजाक नहीं है? हर बार जब परमेश्वर पृथ्वी पर आएगा, तो वह अपना नाम, अपना लिंग, अपनी छवि, और अपना कार्य बदल देगा; वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है, और वह हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है। जब वह पहले आया, उसे यीशु कहा गया था; जब वह इस बार फिर से आता है तो क्या उसे अभी भी यीशु कहा जा सकता है? जब वह पहले आया, तो वह पुरुष था; क्या इस बार फिर से पुरुष हो सकता है? जब वह अनुग्रह के युग के दौरान आया तो उसका कार्य, सलीब पर ठोंका जाना था; जब वह फिर से आएगा तो क्या तब भी वह मानव जाति को पाप से छुटकारा दिलाएगा? क्या उसे तब भी सलीब पर ठोंका जाएगा? क्या वह उसके कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होगी? क्या तुम्हें नहीं पता था कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी भी पुराना नहीं पड़ता है? ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किन्तु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता का संकेत करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता है कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य हमेशा वैसा ही बना रहता है, तो क्या वह अपनी छः-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना को पूरा करने में सक्षम होगा? तुम केवल यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा ही अपरिवर्तनीय है, किन्तु क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है? यदि परमेश्वर का कार्य कभी नहीं बदला था, तो क्या वह मानवजाति को आज के दिन तक ला सकता था? यदि परमेश्वर अपरिवर्तशील है, तो ऐसा क्यों है कि उसने पहले ही दो युगों का कार्य कर लिया है? उसका कार्य हमेशा आगे की ओर प्रगति कर रहा है, और इसलिए उसका स्वभाव धीरे-धीरे मनुष्य के लिए प्रकट होता है, और जो प्रकट होता है वह उसका अंतर्निहित स्वभाव है। आरंभ में,परमेश्वर का स्वभाव मनुष्यों से छिपा हुआ था, उसने कभी भी खुल कर मनुष्य को अपना स्वभाव प्रकट नहीं किया था, और मनुष्य को उसका कोई ज्ञान नहीं था, इसलिए उसने धीरे-धीरे मनुष्य के लिए अपना स्वभाव प्रकट करने हेतु अपने कार्य का उपयोग किया, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक युग में उसका स्वभाव बदल जाता है। ऐसा मामला नहीं है कि परमेश्वर का स्वभाव लगातार बदल रहा है क्योंकि उसकी इच्छा हमेशा बदल रही है। बल्कि, क्योंकि उसके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं, उसका अंतर्निहित स्वभाव धीरे-धीरे अपनी समग्रता से मनुष्य के लिए प्रकट होता है, ताकि मनुष्य उसे जानने में सक्षम हो जाए। किन्तु यह किसी भी भाँति इस बात का साक्ष्य नहीं है कि परमेश्वर का मूलतः कोई विशेष स्वभाव नहीं है और युगों के गुजरने के साथ उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल गया है—इस प्रकार की समझ गलत है। युगों के गुजरने के अनुसार परमेश्वर मनुष्य को अपना अंतर्निहित, विशेष स्वभाव—वह जो है—प्रकट करता है। एक ही युग का कार्य परमेश्वर के समग्र स्वभाव को व्यक्त नहीं कर सकता है। और इसलिए, "परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है" वचन उसके कार्य के संदर्भ में हैं, और "परमेश्वर अपरिवर्तशील है" वचन उस संदर्भ में हैं जो परमेश्वर का अंतर्निहित स्वरूप है। इसके बावज़ूद, तुम एक बिंदु में छह-हज़ार-वर्ष के कार्य को परिभाषित नहीं कर सकते हो, या इसे केवल अपरिवर्ती वचनों से चित्रित नहीं कर सकते हो। मनुष्य की मूर्खता ऐसी ही है। परमेश्वर इतना सरल नहीं है जितना मनुष्य कल्पना करता है, और उसका कार्य एक युग में नहीं रुक सकता है। उदाहरण के लिए, यहोवा हमेशा परमेश्वर के नाम का नहीं हो सकता है; परमेश्वर यीशु के नाम के तहत भी अपना कार्य कर सकता है, जो कि इस बात का प्रतीक है कि कैसे परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे की ओर आगे बढ़ रहा है।
परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और कभी भी शैतान नहीं बनेगा;शैतान हमेशा शैतान रहेगा,और कभी भी परमेश्वर नहीं बनेगा। परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर की चमत्कारिकता, परमेश्वर की धार्मिकता, और परमेश्वर का प्रताप कभी नहीं बदलेंगे। उसका सार और उसका स्वरूप कभी नहीं बदलेगा। उसका कार्य, हालाँकि, हमेशा आगे प्रगति कर रहा है और हमेशा गहरा होता जा रहा है, क्योंकि वह हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है। हर युग में परमेश्वर एक नया नाम अपनाता है, हर युग में वह नया कार्य करता है, और हर युग में वह अपने प्राणियों को अपनी नई इच्छा और नए स्वभाव को देखने की अनुमति देता है। यदि लोग नए युग में परमेश्वर के नए स्वभाव की अभिव्यक्ति को नहीं देखते हो, तो क्या वे उसे हमेशा के लिए सलीब पर नहीं ठोंक देंगे? और ऐसा करके, क्या वे परमेश्वर को परिभाषित नहीं करेंगे? यदि वह केवल एक पुरुष के रूप में देहधारण करता, तो लोग उसे पुरुष के रूप में,पुरुषों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित करते,और कभी भी उस पर महिलाओं के परमेश्वर के रूप में विश्वास नहीं करते। तब, पुरुष विश्वास करते कि परमेश्वर पुरुषों के समान लिंग का है, कि परमेश्वर पुरुषों का प्रमुख है—और महिलाओं का क्या होता? यह अनुचित है; क्या यह पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं है? यदि ऐसा मामला होता, तो वे सभी लोग जिन्हें परमेश्व रने बचाया, उसके समान पुरुष होते, और महिलाओं के लिए कोई उद्धार नहीं होता। जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने आदम को बनाया और उसने हव्वा को बनाया। उसने न केवल आदम को बनाया, बल्कि अपनी छवि में पुरुष और महिला दोनों को बनाया। परमेश्वर न केवल पुरुषों का परमेश्वर है—वह महिलाओं का भी परमेश्वर है। परमेश्वर अंत के दिनों में नया कार्य कर रहाहै। वह अपने स्वभाव के बारे में और अधिक प्रकट करेगा, और यह यीशु के समय की करुणा और प्रेम नहीं होगा। चूँकि उसके पास नया कार्य है, इसलिए इस नए कार्य के साथ एक नया स्वभाव होगा। इसलिए यदि यह कार्य आत्मा द्वारा किया जाता—यदि परमेश्वर देहधारी नहीं बना होता, और इसके बजाय आत्मा ने गड़गड़ाहट के माध्यम से सीधे बात की होती ताकि मनुष्य के पास उससे संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं होता,तो क्या मनुष्य उसके स्वभाव को जान पाता? यदि केवल पवित्रात्मा ने कार्य किया होता,तो मनुष्य के पास उसके स्वभाव को जानने का कोई तरीका नहीं होता। लोग केवल तभी परमेश्वर के स्वभाव को अपनी आँखों से देख सकते हैं जब वह देह बनता है,जब वचन देह में प्रकट होता है, और वह अपना संपूर्ण स्वभाव देह के माध्यम से व्यक्त करता है। परमेश्वर वास्तव में मनुष्यों के बीच रहता है। वह मूर्त है; मनुष्य वास्तव में उसके स्वभाव और उसके स्वरूप के साथ संलग्न हो सकता है; केवल इसी तरह से मनुष्य वास्तव में उसे जान सकता है। इसके साथ-साथ, परमेश्वर ने पुरुषों और महिलाओं दोनों का परमेश्वर होने के नाते परमेश्वर का कार्य भी पूरा कर लिया है, और देह में अपने कार्य की समग्रता को प्राप्त कर लिया है। वह प्रत्येक युग में अपने कार्य को दोहराता नहीं है। चूँकि अंत के दिनों का आगमन हो गया है, इसलिए वह अंत के दिनों का कार्य करेगा, और अंत के दिनों में अपने संपूर्ण स्वभाव को प्रकट करेगा। अंत के दिन एक अलग युग है, एक ऐसा युग जिसमें यीशु ने कहा था कि तुम लोगों को अवश्य आपदा का सामना करना चाहिए, और भूकंप, अकाल, और दैवी कोप का सामना अवश्य करना चाहिए, जो यह दर्शाएँगे कि यह एक नया युग है, और अनुग्रह का युग अब और नहीं है। यदि, जैसा कि लोग कहते हैं, कि परमेश्वर हमेशा अपरिवर्तशील है, उसका स्वभाव हमेशा करुणामय और प्रेममय है, वह मनुष्य से ऐसे प्यार करता है जैसे वह स्वयं से करता है, और वह हर मनुष्य का उद्धार करता है और कभी भी मनुष्य से नफरत नहीं करता है, तो क्या वह कभी अपना कार्य पूरा करने में सक्षम होगा? जब यीशु आया, तो उसे सलीब पर ठोंक दिया गया, और उसने अपने आप को सभी पापियों के लिए वेदी पर स्वयं को चढ़ाने के द्वारा बलिदान कर दिया। उसने पहले ही छुटकारे का कार्य पूरा कर लिया था और अनुग्रह के युग को पहले से ही समाप्त कर दिया था, तो उस युग के कार्य को अंतिम दिनों में दोहराए जाने का क्या मतलब होता? क्या वही कार्य करना यीशु के कार्य को इनकार करना नहीं होगा? यदि परमेश्वर जब इस चरण में आता है तब वह सलीब पर चढ़ने का कार्य नहीं करेगा, बल्कि वह प्रेममय और करुणामय रहेगा, तो क्या वह युग का अंत करने में सक्षम होगा? क्या एक प्रेममय और करुणामय परमेश्वर युग का समापन कर सकता है? युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का ताड़ना और न्याय का एक स्वभाव है,जो वह सब कुछ प्रकट करता है जो अधर्मी है, सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय करता है, और उन लोगों को पूर्ण करता है, जो वास्तव में उससे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का एक स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहलेही आ चुके हैं। सभी चीजों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा। यही वह समय है जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल को प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते हैं,तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को प्रकट करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी चीजों का अंत प्रकट हो सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंगों को दिखाता है जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरा बुरे की ओर लौट जाएगा, अच्छा अच्छे की ओर लौट जाएगा, और लोगों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से, सभी चीजों का अंत प्रकट होगा, ताकि बुराई को दंडित किया जाएग और अच्छे को पुरस्कृत किया जाएगा, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन नागरिक बन जाएँगे। सभी कार्य धर्मी ताड़ना और न्याय के माध्यम से अवश्य प्राप्त किया जाना चाहिए। क्योंकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर रही है, केवल परमेश्वर का धर्मी स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय का है और जो अंत के दिनों दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपान्तरित और पूरा कर सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधर्मियों को गंभीर रूप से दण्डित कर सकता है। इसलिए, इस तरह का एक स्वभाव युग के महत्व से सम्पन्न होता है, और उसके स्वभाव का प्रकटन और प्रदर्शन प्रत्येक नए युग के कार्य के वास्ते है। .परमेश्वर अपने स्वभाव को मनमाने ढंग से और महत्व के बिना प्रकट नहीं करता है। यदि, जब अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का अंत प्रकट किया जाता है, परमेश्वर तब भी मनुष्य पर अक्षय करुणा और प्रेम अर्पित करता है, यदि वह अभी भी मनुष्य के प्रति प्रेममय है, और वह मनुष्य को धर्मी न्याय के अधीन नहीं करता है, किन्तु उसके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और माफ़ी दर्शाता है,यदि मनुष्य चाहे कितना ही गंभीर पाप करे वह, किसी धर्मी न्याय के बिना, उसे तब भी माफ़ कर देता है, तब क्या परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का कभी अंत होगा? इस तरह का कोई स्वभाव कब सही मंज़िल में मानव जाति का नेतृत्व करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, ऐसे न्यायाधीश को लें जो हमेशा प्रेममय, उदारहृदय और सौम्य हो। वह लोगों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के बावजूद प्यार करता हो, और चाहे कोई भी हो वह लोगों के लिए प्रेममय और सहिष्णु रहता है। तब वह कब न्यायोचित निर्णय तक पहुँचने में सक्षम हो पाएगा? अंत के दिनों के दौरान, केवल धर्मी न्याय ही मनुष्य का वर्गीकरण कर सकता है और मनुष्य को एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह,परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धर्मी स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में, मेरा नाम आधारहीन नहीं है, किन्तु प्रतिनिधिक महत्व रखता हैः प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है। “यहोवा” व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और यह उस परमेश्वर के लिए सम्मानसूचक है जिसकी आराधना इस्राएल के लोगों के द्वारा की जाती है। "यीशु" अनुग्रह के युग को दर्शाता है, और यह उन सब के परमेश्वर का नाम है जिन्हें अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारा दिया गया था। यदि मनुष्य तब भी अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्त्ता यीशु के आगमन की अभिलाषा करता है, और तब भी उस से अपेक्षा करता है कि वह उस प्रतिरूप में आए जो उसने यहूदिया में धारण किया था, तो छः हज़ार सालों की सम्पूर्ण प्रबन्धन योजना छुटकारे के युग में रूक जाएगी, और थोड़ी सी भी प्रगति करने में अक्षम होगी। इसके अतिरिक्त, अंत के दिन का आगमन कभी नहीं होगा, और युग का समापन कभी नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि उद्धारकर्त्ता यीशु सिर्फ मानवजाति के छुटकारे और उद्धार के लिए है। मैंने अनुग्रह के युग के सभी पापियों के लिए यीशु का नाम अपनाया था, और यह वह नाम नहीं है जिसके द्वारा मैं पूरी मानवजाति को समाप्त करूँगा। यद्यपि यहोवा, यीशु, और मसीहा सभी मेरे पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, किंतु ये नाम मेरी प्रबन्धन योजना में केवल विभिन्न युगों के द्योतक हैं, और मेरी सम्पूर्णता में मेरा प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। ऐसे नाम जिनके द्वारा पृथ्वी के लोग मुझे पुकारते हैं मेरे सम्पूर्ण स्वभाव को और वह सब कुछ जो मैं हूँ उसे स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते हैं। वे मात्र अलग-अलग नाम हैं जिनके द्वारा विभिन्न युगों के दौरान मुझे पुकारा जाता है। और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा, या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं, बल्कि मुझे स्वयं सामर्थ्यवान सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के अंतर्गत मैं समस्त युग को समाप्त करूँगा। एक समय मुझे यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीह भी कहा जाता था, और लोगों ने एक बार मुझे उद्धारकर्त्ता यीशु कहा था क्योंकि वे मुझ से प्रेम करते थे और मेरा आदर करते थे। किन्तु आज मैं वह यहोवा और यीशु नहीं हूँ जिसे लोग बीते समयों में जानते थे—मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आ गया है, वह परमेश्वर जो युग को समाप्त करेगा। वह परमेश्वर मैं स्वयं हूँ जो अपने स्वभाव की परिपूर्णता के साथ, और अधिकार, आदर एवं महिमा से भरपूर होकर पृथ्वी के अंतिम छोर से उदय होता हूँ। लोग कभी भी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और मेरे स्वभाव के प्रति हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक, एक मनुष्य ने भी मुझे नहीं देखा है। यह वह परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है किन्तु वह मनुष्य के बीच में छिपा हुआ है। वह, सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भर हुआ, धधकते हुए सूरज और दहकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसका न्याय मेरे वचनों के द्वारा नहीं किया जाएगा, और कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसे आग की जलती हुई लपटों के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः, मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हों जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्त्ता हूँ जो वापस लौट आया है, मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है, और मैं एक समय मनुष्य के लिए पाप बलि था, किन्तु अंत के दिनों में मैं सूरज की आग की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों का मेरा कार्य ऐसा ही है। मैंने इस नाम को अपनाया है और मेरा यह स्वभाव है ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं धर्मी परमेश्वर हूँ, और धधकता हुआ सूरज हूँ, और दहकती हुई आग हूँ। ऐसा इसलिए है ताकि सभी मेरी, एकमात्र सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें: मैं न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर हूँ, और न मात्र छुटकारा दिलाने वाला हूँ—मैं समस्त आकाश और पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
वर्तमान में किए गए कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना में कार्य आगे बढ़ाया है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने आगे प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? इसका अर्थ है कि आज के दिन का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य का उत्थान है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से सम्बंधित हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु के द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? यदि यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूसीकरण, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को अब भी पूरा किए जाने की आवश्यकता होती। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि यह कि युग आगे बढ़ गया है, और यहाँ तक कि कार्य पहले से भी अधिक ऊँचा हो गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण एक नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना समझा जा सकता है। यह चरण अनुग्रह के युग के कार्य की नींव पर किया जाता है। यदि कार्य के ये दो चरण असम्बंधित हैं, तो इस चरण में सलीब पर चढ़ना क्यों नहीं है? मैं मनुष्य के पापों को क्यों नहीं उठाता हूँ? मैं पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान के माध्यम से नहीं आता हूँ न ही मैं मनुष्य के पापों को उठाने के लिए सलीबसलीब पर चढ़ाया जाऊँगा। बल्कि, मैं यहाँ मनुष्य को प्रत्यक्ष रूप से ताड़ना देने के लिए हूँ। यदि मैंने सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद मनुष्य को ताड़ना नहीं दी, और अब मैं पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण के माध्यम से नहीं आता, तो मैं मनुष्य को ताड़ना देने के योग्य नहीं होता। यह ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि मैं यीशु के साथ एक ही हूँ जो प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को ताड़ना देने और उसका न्याय करने के लिए आता हूँ। कार्य का यह चरण पूरी तरह से पिछले चरण पर ही निर्मित है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा कार्य ही चरण-दर-चरण मनुष्य को उद्धार तक ला सकता है। यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारी देहों का कोई सम्बंध नहीं है, किन्तु हमारी पवित्रात्माएँ एक ही हैं; यद्यपि हम जो करते हैं और जिस कार्य को हम वहन करते हैं वे एक ही नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम सदृश्य हैं; हमारी देहें भिन्न रूप धारण करती हैं, और यह ऐसा युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की आवश्यकता के कारण है; हमारी सेवकाईयाँ सदृश्य नहीं हैं, इसलिए जो कार्य हम लाते और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और प्राप्त करता है वह अतीत के असमान है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनकी देहों के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और यद्यपि वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे थे, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु उनकी पवित्रात्माएँ एक हैं। यद्यपि उनकी देहें किसी भी तरीके से रक्त या शारीरिक सम्बंध साझा नहीं करती हैं, किन्तु इससे यह इनकार नहीं होता है कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि वे परमेश्वर के देहधारी शरीर हैं, यद्यपि वे एक ही व्यक्ति के वंशज या सामान्य मानव भाषा (एक पुरुष था जिसने यहूदियों की भाषा बोली और दूसरी स्त्री है जो सिर्फ चीनी भाषा बोलती है) को साझा नहीं करते हैं। यह इन्हीं कारणों से है कि उन्हें जो कार्य करना चाहिए उसे वे भिन्न-भिन्न देशों में, और साथ ही भिन्न-भिन्न समयावधियों करते हैं। इस तथ्य के बावजूद भी वे एक ही पवित्रात्मा हैं, एक ही सार को धारण किए हुए हैं, उनकी देहों के बाहरी आवरणों के बीच बिल्कुल भी पूर्ण समानताएँ नहीं है। वे मात्र एक ही मानजाति को साझा करते हैं, परन्तु उनकी देहों का प्रकटन और जन्म सदृश्य नहीं हैं। इनका उनके अपने-अपने कार्य या मनुष्य के पास उनके बारे में जो ज्ञान है उस पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि, आखिरकार, वे एक ही पवित्रात्मा हैं और कोई भी उन्हें अलग नहीं कर सकता है। यद्यपि वे रक्त द्वारा सम्बंधित नहीं हैं, किन्तु उनका सम्पूर्ण अस्तित्व उनकी पवित्रात्माओं के द्वारा निर्देशित होता है, जिसकी वजह से, उनकी देह एक ही का वंशज साझा नहीं करने के साथ, वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में भिन्न-भिन्न कार्य का उत्तरदायित्व लेते हैं। उसी तरह, यहोवा का पवित्रात्मा यीशु के पवित्रात्मा का पिता नहीं है, वैसे ही जैसे कि यीशु का पवित्रात्मा यहोवा के पवित्रात्मा का पुत्र नहीं है। वे एक ही आत्मा हैं। ठीक वैसे ही जैसे आज का देहधारी परमेश्वर और यीशु हैं। यद्यपि वे रक्त के द्वारा सम्बंधित नहीं हैं; वे एक ही हैं; ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी पवित्रात्माएँ एक ही हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं" से
यद्यपि दो देहधारणों की देहों के कार्य भिन्न हैं, किन्तु देहों का सार, और उनके कार्यों का स्रोत समरूप है; यह केवल इतना ही है कि वे कार्य के दो विभिन्न चरणों को करने के लिए अस्तित्व में हैं, और दो विभिन्न युगों में सामने आते हैं। कुछ भी हो, देहधारी परमेश्वर के देहें एक ही सार और एक ही स्रोत को साझा करते हैं—यह एक सत्य है जिसे कोई मना नहीं कर सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" से
मैं पहली बार मनुष्यों के बीच छुटाकारे के युग के दौरान आया था। निस्संदेह मैं यहूदी परिवार के बीच आया; इसलिए परमेश्वर को पृथ्वी पर आते हुए देखने वाले सबसे पहले यहूदी लोग थे। मैंने इस कार्य को व्यक्तिगत रूप से किया उसका कारण यह था क्योंकि मैं छुटकारे के अपने कार्य में पापबलि के रूप में अपने देहधारी देह का उपयोग करना चाहता था। इसलिए मुझे सबसे पहले देखने वाले अनुग्रह के युग के यहूदी थे। वह पहली बार था कि मैंने देह में कार्य किया। राज्य के युग में, मेरा कार्य जीतना और पूर्ण बनाना है, इसलिए मैं दोबारा देह में चरवाही का कार्य करता हूँ। देह में यह मेरा दूसरी बार कार्य करना है। कार्य के दो अंतिम चरणों में, लोग जिसके सम्पर्क में आते हैं वह अब और अदृश्य, अस्पर्शनीय पवमत्रात्मा नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति है जो देह के रूप में यथार्थ बना पवित्रात्मा है। इस प्रकार मनुष्य की नज़रों में, मैं एक बार फिर से ऐसा व्यक्ति बन जाता हूँ जिसमें परमेश्वर का रूप और संवेदना नहीं है। इसके अलावा, जिस परमेश्वर को लोग देखते हैं वह न सिर्फ़ पुरुष, बल्कि महिला भी है, जो कि उनके लिए सबसे अधिक विस्मयकाराक और उलझन में डालने वाला है। बार-बार, मेरा असाधारण कार्य, कई-कई वर्षों से धारण की हुई पुरानी धारणाओं को ध्वस्त कर देता है। लोग अवाक रह जाते हैं! परमेश्वर न केवल पवित्रात्मा, वह आत्मा, सात गुना तीव्र पवित्रात्मा, सर्व-व्यापी पवित्रात्मा है, बल्कि एक व्यक्ति, एक साधारण व्यक्ति, अपवादात्मक रूप से एक सामान्य व्यक्ति भी है। वह न सिर्फ़ नर, बल्कि नारी भी है। वे इस बात में एक समान हैं कि वे दोनों ही मानवों से जन्मे हैं, और इस बात पर असमान हैं कि एक का पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण किया गया है और दूसरा, मानव से जन्मा है, परन्तु प्रत्यक्ष रूप से पवित्रात्मा से ही उत्पन्न है। वे इस बात में एक समान हैं कि परमेश्वर के दोनों देहधारी देह परमपिता परमेश्वर पिता का कार्य करते हैं और इस बात में असमान हैं कि एक तो छुटकारे का कार्य करता है और दूसरा जीतने का कार्य करता है। दोनों परमेश्वर पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं, परन्तु एक छुटकारे का प्रभु है जो करुणा और दया से भरा हुआ है और दूसरा धार्मिकता का परमेश्वर है जो क्रोध और न्याय से भरा हुआ है। एक छुटकारे के कार्य को शुरू करने के लिए सर्वोच्च सेनापति है और दूसरा जीतने के कार्य को पूरा करने के लिए धार्मिक परमेश्वर है। एक आरम्भ है और दूसरा अंत है। एक निष्पाप देह है, दूसरा वह देह है जो छुटकारे को पूरा करता है, कार्य को जारी रखता है और कभी भी पाप का नहीं है। दोनों एकही पवित्रात्मा हैं, परन्तु वे भिन्न-भिन्न देहों में निवास करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों में पैदा हुए हैं। और वे कई हज़ार वर्षों द्वारा पृथक्कृत हैं। फिर भी उनका सम्पूर्ण कार्य पारस्परिक रूप से पूरक है, कभी भी विरोधाभासी नहीं है, और एकही साँस में बोला जा सकता है। दोनों ही लोग हैं, परन्तु एक बालक शिशु है और दूसरी एक नवजात बालिका है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जब परमेश्वर की बात आती है, तो तुम्हारी समझ क्या होती है" से
परमेश्वर न केवल एक आत्मा है बल्कि वह देहधारण भी कर सकता है; इसके अलावा, वह महिमा का एक शरीर है। यीशु को यद्यपि तुम लोगों ने नहीं देखा है उसकी गवाही इस्राएलियों के द्वारा, अर्थात्, उस समय के यहूदियों द्वारा दी गई थी। पहले वह एक देह था, परन्तु उसे सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद, वह महिमावान शरीर बन गया। वह व्यापक पवित्रात्मा है और सभी स्थानों में कार्य कर सकता है। वह यहोवा, यीशु और मसीहा हो सकता है; अंत में, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर बन सकता है। वह धार्मिकता, न्याय, और ताड़ना है, श्राप और क्रोध है, परन्तु दया और करुणा भी है। उसके द्वारा किया गया समस्त कार्य उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं" से
यहोवा के कार्य से ले कर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन की पूर्ण परिसीमा को आवृत करते हैं, और यह समस्त एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। जब से उसने दुनिया बनाई, तब से परमेश्वर हमेशा मानव जाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही युग का अंत करता है। कार्य के तीन चरण, विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में, निश्चित रूप से एक ही पवित्रात्मा द्वारा किए जाते हैं। वे सभी जो इन तीन चरणों को पृथक करते हैं, परमेश्वर का विरोध करते हैं। अब, तुम्हें अवश्य समझ जाना चाहिए कि प्रथम चरण से ले कर आज तक का समस्त कार्य एक परमेश्वर का कार्य, एक पवित्रात्मा का कार्य है, जिसके बारे में कोई संदेह नहीं है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
मेरा मानना है कि हमारी पीढ़ी को पिछली पीढ़ियों के लोगों द्वारा छोड़े गए अधूरे रास्ता पर चलने के लिए सक्षम होने का, और कई हज़ार सालों से परमेश्वर के पुन:प्रकटीकरण को देखने में सक्षम होने का आशीष प्राप्त है—परमेश्वर जो हमारे बीच में है, और सभी चीज़ों को भरता है। तुमने कभी नहीं सोचा होगा कि तुम इस राह पर चल सकते हो: क्या तुम ऐसा कर सकते हो? इस पथ को सीधे पवित्र आत्मा द्वारा दिखाया जाता है, इसकी अगुवाई प्रभु यीशु मसीह की सात गुना तेज़ आत्मा करता है, और यह वह पथ है जिसे आज परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए खोला गया है। अपने ऊँचे से ऊँचे स्वप्न में भी तुमने यह कल्पना नहीं की होगी कि हज़ारों साल पहले वाला यीशु एक बार फिर तुम्हारे सामने दिखाई देगा। क्या तुम संतुष्ट नहीं महसूस करते हो? कौन परमेश्वर के आमने-सामने आ सकता है? मैं अक्सर प्रार्थना करता हूं कि हमारे समूह को परमेश्वर से अधिक आशीष प्राप्त हो, परमेश्वर हमारा पक्ष ले और हम उसके द्वारा प्राप्त किए जाएं, लेकिन अनगिनत बार मैंने हम लोगों के लिए कड़वे आँसू बहाए हैं, यह माँगते हुए कि परमेश्वर हमें प्रबुद्ध करे, और हमारे समक्ष अधिक से अधिक प्रकाशन करे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मार्ग... (7)" से
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