अध्याय 2 तुम्हें परमेश्वर के नामों की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।
2. परमेश्वर को भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से क्यों पुकारा जाता है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
प्रत्येक युग में,परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है;वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है?वह पुराने सेकैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्यहेतु लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा तो तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा?क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं कि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक ही नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? इस तरह, भिन्न युग में परमेश्वर को भिन्न नाम के द्वारा अवश्य बुलाया जाना चाहिए, उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए नाम का उपयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से परमेश्वर स्वयं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।और प्रत्येक नाम केवल एक निश्चित युग के दौरान परमेश्वर के स्वभाव का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है और प्रत्येक नाम केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए आवश्यक है। इसलिए, समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर अपने स्वभाव के लिए हितकारी किसी भी नाम को चुन सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
"यहोवा" वह नाम है जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोग) का परमेश्वर जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन दे सकता है। इसका अर्थ है वह परमेश्वर जिसके पास बड़ी सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है।…अर्थात्, केवल यहोवा ही इस्राएल के चुने हुए लोगों का परमेश्वर, इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, मूसा का परमेश्वर, और इस्राएल के सभी लोगों का परमेश्वर है। और इसलिए वर्तमान युग में, यहूदा के कुटुम्ब के अलावा सभी इस्राएली यहोवा की आराधना करते हैं।…यहोवा का नाम इस्राएल के लोगों के लिए एक विशेष नाम है जो व्यवस्था के अधीन जीए थे। प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में, मेरा नाम आधारहीन नहीं है, किन्तु प्रतिनिधिक महत्व रखता हैः प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
व्यवस्था के युग के दौरान, मानव जाति के मार्गदर्शन का कार्य यहोवा के नाम के अधीन किया गया था, और कार्य का पहला चरण पृथ्वी पर किया गया था। इस चरण का कार्य मंदिर और वेदी का निर्माण करना, और इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था का उपयोग करना और उनके बीच कार्य करना था। इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करके, उसने पृथ्वी पर अपने कार्य के लिए एक आधार स्थापित किया। इस आधार से, उसने अपने कार्य का विस्तार इस्राइल से बाहर किया, जिसका अर्थ है, कि इस्राएल से शुरू करके, उसने अपने कार्य का बाहर की ओर विस्तार किया, जिसकी वजह से बाद की पीढ़ियों को धीरे-धीरे पता चला कि यहोवा परमेश्वर था, और यह कि यहोवा ने ही स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का निर्माण किया था, सभी प्राणियों को बनाया था। उसने इस्राएल के लोगों के माध्यम से अपने कार्यको फैलाया। इस्राएल की भूमि पृथ्वी पर यहोवा के कार्य का पहला पवित्र स्थान था, और पृथ्वी पर परमेश्वर का सबसे पहले का कार्य पूरे इस्राएल देश में किया गया था। वह व्यवस्था के युग का कार्य था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
यीशु के नाम ने अनुग्रह के युग की शुरुआत को प्रख्यात किया। जब यीशु ने अपनी सेवकाई आरंभ की, तो पवित्र आत्मा ने यीशु के नाम की गवाही देनी आरंभ कर दी, और यहोवा का नाम अब और नहीं बोला जा रहा था, और इसके बजाय पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से नया कार्य आरंभ किया था। जो यीशु में विश्वास करते थे उन लोगों की गवाही, यीशु मसीह के लिए थी, और उन्होंने जो कार्य किया वह भी यीशु मसीह के लिए था। पुराने विधान के व्यवस्था के युग का निष्कर्ष यह था कि मुख्य रूप से यहोवा के नाम पर आयोजित किया गया कार्य समापन पर पहुँच गया था। इसके बाद, परमेश्वर का नाम यहोवा अब और नहीं था अब परमेश्वर का नाम यहोवा नहीं रह गया था; इसके बजाय उसे यीशु कहा जाता था, और यहाँ से पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम के अधीन कार्य करना आरंभ किया।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
"यीशु" इम्मानुएल है, और इसका मतलब है वह पाप बलि जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा देता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबन्धन योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है।…केवल यीशु ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला है। यीशु वह पाप बलि है जिसने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिलाया है। जिसका अर्थ है, कि यीशु का नाम अनुग्रह के युग से आया, और अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य के कारण विद्यमान रहा। अनुग्रह के युग के लोगों को आध्यात्मिक रूप से पुनर्जीवित किए जाने और उनका उद्धार किए जाने हेतु अनुमति देने के लिए यीशु का नाम विद्यमान था, और यीशु का नाम पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है। और इस प्रकार यीशु का नाम छुटकारे के कार्य को दर्शाता है, और अनुग्रह के युग का द्योतक है।…"यहोवा" व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और यह उस परमेश्वर के लिए सम्मानसूचक है जिसकी आराधना इस्राएल के लोगों के द्वारा की जाती है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
व्यवस्था के युग के दौरान, मानव जाति के मार्गदर्शन का कार्य यहोवा के नाम के अधीन किया गया था, और कार्य का पहला चरण पृथ्वी पर किया गया था। इस चरण का कार्य मंदिर और वेदी का निर्माण करना, और इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था का उपयोग करना और उनके बीच कार्य करना था। इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करके, उसने पृथ्वी पर अपने कार्य के लिए एक आधार स्थापित किया। इस आधार से, उसने अपने कार्य का विस्तार इस्राइल से बाहर किया, जिसका अर्थ है, कि इस्राएल से शुरू करके, उसने अपने कार्य का बाहर की ओर विस्तार किया, जिसकी वजह से बाद की पीढ़ियों को धीरे-धीरे पता चला कि यहोवा परमेश्वर था, और यह कि यहोवा ने ही स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का निर्माण किया था, सभी प्राणियों को बनाया था। उसने इस्राएल के लोगों के माध्यम से अपने कार्यको फैलाया। इस्राएल की भूमि पृथ्वी पर यहोवा के कार्य का पहला पवित्र स्थान था, और पृथ्वी पर परमेश्वर का सबसे पहले का कार्य पूरे इस्राएल देश में किया गया था। वह व्यवस्था के युग का कार्य था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा, या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं, बल्कि मुझे स्वयं सामर्थ्यवान सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के अंतर्गत मैं समस्त युग को समाप्त करूँगा। एक समय मुझे यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीह भी कहा जाता था, और लोगों ने एक बार मुझे उद्धारकर्त्ता यीशु कहा था क्योंकि वे मुझ से प्रेम करते थे और मेरा आदर करते थे। किन्तु आज मैं वह यहोवा और यीशु नहीं हूँ जिसे लोग बीते समयों में जानते थे—मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आ गया है, वह परमेश्वर जो युग को समाप्त करेगा। वह परमेश्वर मैं स्वयं हूँ जो अपने स्वभाव की परिपूर्णता के साथ, और अधिकार, आदर एवं महिमा से भरपूर होकर पृथ्वी के अंतिम छोर से उदय होता हूँ। लोग कभी भी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और मेरे स्वभाव के प्रति हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक, एक मनुष्य ने भी मुझे नहीं देखा है। यह वह परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है किन्तु वह मनुष्य के बीच में छिपा हुआ है। वह, सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भर हुआ, धधकते हुए सूरज और दहकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसका न्याय मेरे वचनों के द्वारा नहीं किया जाएगा, और कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसे आग की जलती हुई लपटों के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः, मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हों जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्त्ता हूँ जो वापस लौट आया है, मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है, और मैं एक समय मनुष्य के लिए पाप बलि था, किन्तु अंत के दिनों में मैं सूरज की आग की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों का मेरा कार्य ऐसा ही है। मैंने इस नाम को अपनाया है और मेरा यह स्वभाव है ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं धर्मी परमेश्वर हूँ, और धधकता हुआ सूरज हूँ, और दहकती हुई आग हूँ। ऐसा इसलिए है ताकि सभी मेरी, एकमात्र सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें: मैं न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर हूँ, और न मात्र छुटकारा दिलाने वाला हूँ—मैं समस्त आकाश और पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से
कुछ कहते हैं कि परमेश्वर का नाम बदलता नहीं है, तो फिर क्यों यहोवा का नाम यीशु हो गया? मसीह के आने की भविष्यवाणी की गई थी, तो फिर क्यों यीशु नाम का एक व्यक्ति आया? परमेश्वर का नाम क्यों बदला गया? क्या इस तरह का कार्य काफी समय पहले नहीं किया गया था? क्या परमेश्वर आज के दिन कोई नया कार्य नहीं कर सकता है? कल का कार्य बदला जा सकता है, और यीशु का कार्य यहोवा के कार्य के बाद नहीं आ सकता है। क्या यीशु के कार्य के बाद कोई अन्य कार्य नहीं हो सकता है? यदि यहोवा का नाम बदल कर यीशु हो सकता है, तो क्या यीशु का नाम भी नहीं बदला जा सकता है? यह असामान्य नहीं है, और लोग ऐसा[क] केवल अपनी नासमझी के कारण सोचते हैं। परमेश्वर हमेशा परमेश्वर ही रहेगा। उसके कार्य और नाम में परिवर्तन की परवाह किए बिना, उसका स्वभाव और विवेक हमेशा अपरिवर्तित रहता है, वह कभी भी नहीं बदलेगा। यदि तुम मानते हो कि परमेश्वर केवल यीशु के नाम से ही पुकारा जा सकता है, तो तुम्हें बहुत कम ज्ञान है। क्या तुम यह दृढ़ता पूर्वक कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर का नाम यीशु हमेशा के लिए है, और परमेश्वर हमेशा और निरंतर यीशु के ही नाम से जाना जाएगा, और कि यह कभी नहीं बदलेगा?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वह मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर के प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है जिसने उसे अपनी ही धारणाओं में परिभाषित किया है?" से
यदि प्रत्येक युग में परमेश्वर का कार्य हमेशा एक ही होता है, और उसे हमेशा उसी नाम से बुलाया जाता है, तो मनुष्य उसे कैसे जान पाता? परमेश्वर को यहोवा अवश्य कहा जाना चाहिए, और यहोवा कहे जाने वाले किसी परमेश्वर के अलावा किसी अन्य नाम से कहा जाने वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर नहीं है। वरना परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है, और परमेश्वर को यीशु के सिवाय किसी भी अन्य नाम से नहीं बुलाया जा सकता है; यीशु के अलावा, यहोवा परमेश्वर नहीं है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी परमेश्वर नहीं है। मनुष्य का मानना है कि यह सत्य है कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, किन्तु परमेश्वर मनुष्य के साथ एक परमेश्वर है; उसे यीशु अवश्य कहा जाना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के साथ है। ऐसा करना सिद्धांत का पालन करना है, और एक दायरे में परमेश्वर को बाधित करना है। इसलिए, जो कार्य परमेश्वर हर युग में करता है, वह नाम जिससे उसे बुलाया जाता है, और वह छवि जिसे वह अपनाता है, और आज तक उसके कार्य का प्रत्येक चरण, एक भी विनियम का पालन नहीं करते हैं, और किसी भी बाध्यता के अधीन नहीं हैं। वह यहोवा है, किन्तु वह यीशु भी है, और साथ ही मसीहा, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी है। उसका कार्य धीरे-धीरे बदल सकता है, और उसके नाम में भी अनुरूपी परिवर्तन होते हैं। कोई भी अकेला नाम पूरी तरह से उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, किन्तु वे सभी नाम जिनसे उसे बुलाया जाता है, उसका प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होते हैं, और प्रत्येक युग में उसके द्वारा किया गया कार्य उसके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
हर बार जब परमेश्वर पृथ्वी पर आएगा, तो वह अपना नाम, अपना लिंग, अपनी छवि, और अपना कार्य बदल देगा; वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है, और वह हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है। जब वह पहले आया, उसे यीशु कहा गया था; जब वह इस बार फिर से आता है तो क्या उसे अभी भी यीशु कहा जा सकता है?… ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किन्तु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता का संकेत करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता है कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य हमेशा वैसा ही बना रहता है, तो क्या वह अपनी छः-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना को पूरा करने में सक्षम होगा? तुम केवल यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा ही अपरिवर्तनीय है, किन्तु क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
और इसलिए, हर बार जब परमेश्वर आता है, तो उसे एक नाम से बुलाया जाता है, वह एक युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह एक नया मार्ग खोलता है; और प्रत्येक नए मार्ग पर, वह एक नया नाम अपनाता है, जो दर्शाता है कि परमेश्वर हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं पड़ता है, और यह कि उसका कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है। इतिहास हमेशा आगे बढ़ रहा है, और परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है। उसकी छः-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना के अंत तक पहुँचने के लिए, इसे अवश्य आगे प्रगति करते रहना चाहिए। प्रत्येक दिन उसे नया कार्य अवश्य करना चाहिए, प्रत्येक वर्ष उसे नया कार्य अवश्य करना चाहिए; उसे नए मार्गों को अवश्य खोलना चाहिए, अवश्य नए युगों को आरंभ करना चाहिए, नया और अधिक बड़ा कार्य आरंभ करना चाहिए और नए नाम और नया कार्य लाना चाहिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
वह दिन आ जाएगा जब परमेश्वर को यहोवा, यीशु या मसीहा नहीं कहा जाएगा—वह केवल सृष्टिकर्ता कहलाएगा। उस समय, वे सभी नाम जो उसने पृथ्वी पर धारण किए थे समाप्त हो जाएँगे, क्योंकि पृथ्वी पर उसका कार्य समाप्त हो गया होगा, जिसके बाद उसका कोई नाम नहीं होगा। जब सभी चीजें सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन आ जाती हैं, तो उसे अत्यधिक उपयुक्त फिर भी अपूर्ण नाम से क्यों बुलाएँ? क्या तुम अभी भी परमेश्वर के नाम की तलाश करते हो? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यहोवा ही कहा जाता है? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है? क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिन्दा का पाप सहन कर सकते हो?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
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