16.8.19

मसीह के कथन "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" (अंश IV)


मसीह के कथन "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" 

(अंश IV)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "देह के उसके कार्य अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, जिसे कार्य के सम्बन्ध में कहा गया है, और वह परमेश्वर जो अंततः कार्य का समापन करता है वह देहधारी परमेश्वर है, और आत्मा नहीं है। कुछ लोग विश्वास करते हैं कि शायद परमेश्वर किसी समय पृथ्वी पर आए और लोगों को दिखाई दे, जिसके बाद वह समस्त मानवजाति का न्याय करेगा, किसी को छोड़े बिना उन्हें एक एक करके जांचेगा। ऐसे लोग जो इस रीति से सोचते हैं वे देहधारण के इस चरण के कार्य को नहीं जानते हैं। परमेश्वर एक एक करके मनुष्य का न्याय नहीं करता है, और एक एक करके मनुष्य की जांच नहीं करता है; ऐसा करना न्याय का कार्य नहीं होगा। क्या समस्त मानवजाति की भ्रष्टता एक समान नहीं है? क्या मनुष्य का मूल-तत्व सब एक जैसा नहीं है? जिसका न्याय किया जाता है वह मनुष्य का भ्रष्ट मूल-तत्व है, मनुष्य का मूल-तत्व जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है, और मनुष्य के समस्त पाप हैं। परमेश्वर मनुष्य की छोटी-मोटी एवं मामूली त्रुटियों का न्याय नहीं करता है। न्याय का कार्य प्रतिनिधिक है, और इसे विशेषकर किसी निश्चित व्यक्ति के लिए क्रियान्वित नहीं किया जाता है। इसके बजाए, यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मानवजाति के न्याय को दर्शाने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को क्रियान्वित करने के द्वारा, देह में प्रगट परमेश्वर समूची मानवजाति के कार्य को दर्शाने के लिए अपने कार्य का उपयोग करता है, जिसके पश्चात् यह धीरे धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य भी इस प्रकार ही है। परमेश्वर किसी निश्चित किस्म के व्यक्ति या लोगों के किसी निश्चित समूह का न्याय नहीं करता है, परन्तु समूची मानवजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है - परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, उदाहरण के लिए, या उसके विरुद्ध मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी डालना, एवं इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वह परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य का मूल-तत्व है, और यह कार्य अंतिम दिनों के विजय का कार्य है। देहधारी परमेश्वर का कार्य एवं वचन जिसकी गवाही मनुष्य के द्वारा दी जाती है वे अंतिम दिनों के दौरान बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय के कार्य हैं, जिसे पिछले समयों के दौरान मनुष्य के द्वारा सोचा विचारा गया था। ऐसा कार्य जिसे वर्तमान में देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया जा रहा है वह बिलकुल उस बड़े श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है। आज का देहधारी परमेश्वर वह परमेश्वर है जो अंतिम दिनों के दौरान समूची मानवजाति का न्याय करता है। यह देह एवं उसका कार्य, वचन, और समूचा स्वभाव वे उसकी सम्पूर्णता हैं। यद्यपि उसके कार्य का दायरा सीमित है, और सीधे तौर पर समूचे विश्व को शामिल नहीं करता है, फिर भी न्याय के कार्य का मूल-तत्व समस्त मानवजाति का प्रत्यक्ष न्याय है; यह ऐसा कार्य नहीं है जिसे केवल चीन के लिए, या कम संख्या के लोगों के लिए आरम्भ किया गया है। देह में परमेश्वर के कार्य के दौरान, यद्यपि इस कार्य का दायरा समूचे विश्व को शामिल नहीं करता है, फिर भी यह समूचे विश्व के कार्य को दर्शाता है, जब वह अपनी देह के कार्य के दायरे के भीतर उस कार्य का समापन करता है उसके पश्चात्, वह तुरन्त ही इस कार्य को समूचे विश्व में फैला देगा, उसी रीति से जैसे यीशु के पुनरूत्थान एवं स्वर्गारोहण के बाद उसका सुसमाचार सारी दुनिया में फैल गया था। इसकी परवाह किए बगैर कि यह आत्मा का कार्य है या देह का कार्य, यह ऐसा कार्य है जिसे एक सीमित दायरे के भीतर सम्पन्न किया गया है, परन्तु जो समूचे विश्व के कार्य को दर्शाता है। अन्त के दिनों के दौरान, परमेश्वर अपनी देहधारी पहचान का उपयोग करते हुए अपने कार्य को करने के लिए प्रगट हुआ है, और देह में प्रगट परमेश्वर वह परमेश्वर है जो बड़े श्वेत सिंहासन के सामने मनुष्य का न्याय करता है। इसकी परवाह किए बगैर कि वह आत्मा है या देह, वह जो न्याय का काम करता है वही ऐसा परमेश्वर है जो अंतिम दिनों के दौरान मनुष्य का न्याय करता है। उसके कार्य के आधार पर इसे परिभाषित किया गया है, परन्तु उसके बाहरी रंग-रूप एवं विभिन्न अन्य कारकों के अनुसार इसे परिभाषित नहीं किया गया है। यद्यपि मनुष्य के पास इन वचनों के विषय में धारणाएं हैं, फिर भी कोई देहधारी परमेश्वर के न्याय एवं समस्त मानवजाति पर विजय के तथ्य को नकार नहीं सकता है। इसकी परवाह किए बगैर कि किस प्रकार इसका मूल्यांकन किया जाता है, तथ्य, आखिरकार, तथ्य ही हैं। कोई यह नहीं कह सकता है कि "यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया है, परन्तु यह देह परमेश्वर नहीं है।" यह बकवास है, क्योंकि इस कार्य को देहधारी परमेश्वर को छोड़कर किसी के भी द्वारा नहीं किया जा सकता है। जबकि इस कार्य को पहले से ही पूरा किया जा चुका है, तो इस कार्य के बाद मनुष्य के विषय में परमेश्वर के न्याय का कार्य दूसरी बार प्रगट नहीं होगा; दूसरे देहधारी परमेश्वर ने पहले से ही समूचे प्रबंधन के सभी कार्यों का समापन कर लिया है, और परमेश्वर के कार्य का चौथा चरण नहीं होगा। क्योंकि वह मनुष्य है जिसका न्याय किया जाता है, मनुष्य जो हाड़-मांस का है और उसे भ्रष्ट किया जा चुका है, और यह शैतान का आत्मा नहीं है जिसका सीधे तौर पर न्याय किया जाता है, न्याय के कार्य को आत्मिक संसार में सम्पन्न नहीं किया जाता है, परन्तु मनुष्यों के बीच किया जाता है। कोई भी मनुष्य की देह की भ्रष्टता का न्याय करने के लिए देह में प्रगट परमेश्वर की अपेक्षा अधिक उपयुक्त, एवं योग्य नहीं है। यदि न्याय सीधे तौर पर परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया गया होता, तो यह सभी के द्वारा स्वेच्छा से स्वीकार्य नहीं होता। इसके अतिरिक्त, ऐसे कार्य को स्वीकार करना मनुष्य के लिए कठिन होगा, क्योंकि आत्मा मनुष्य के साथ आमने-सामने आने में असमर्थ है, और इस कारण से, प्रभाव तत्काल नहीं होंगे, और मनुष्य परमेश्वर के अनुल्लंघनीय स्वभाव को साफ-साफ देखने में बिलकुल भी सक्षम नहीं होगा। यदि देह में प्रगट परमेश्वर मानवजाति की भ्रष्टता का न्याय करे केवल तभी शैतान को पूरी तरह से हराया जा सकता है। मनुष्य के समान होकर जो सामान्य मानवता को धारण करता है, देह में प्रगट परमेश्वर सीधे तौर पर मनुष्य की अधार्मिकता का न्याय कर सकता है; यह उसकी अंतर्निहित पवित्रता, एवं उसकी असाधारणता का चिन्ह है। केवल परमेश्वर ही योग्य है, एवं उस स्थिति में है कि मनुष्य का न्याय करे, क्योंकि वह सत्य एवं धार्मिकता को धारण किए हुए है, और इस प्रकार वह मनुष्य का न्याय करने में सक्षम है। ऐसे लोग जो सत्य एवं धार्मिकता से रहित हैं वे दूसरों का न्याय करने के लायक नहीं हैं। यदि इस कार्य को परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया जाता, तो एक छोटा सा कीड़ा (लीख) भी शैतान पर विजय नहीं पाता। आत्मा स्वभाव से ही नश्वर प्राणियों कहीं अधिक ऊँचा है, और परमेश्वर का आत्मा स्वभाव से ही पवित्र है, और देह के ऊपर जयवंत है। यदि आत्मा ने इस कार्य को सीधे तौर पर किया होता, तो वह मनुष्य की सारी अनाज्ञाकारिता का न्याय करने में सक्षम नहीं होता, और मनुष्य की सारी अधार्मिकता को प्रगट नहीं कर सकता था। क्योंकि परमेश्वर के विषय में मनुष्य की धारणाओं के माध्यम से न्याय के कार्य को भी सम्पन्न किया जाता है, और मनुष्य के पास कभी भी आत्मा के विषय में कोई धारणाएं नहीं है, और इस प्रकार आत्मा मनुष्य की अधार्मिकता को बेहतर तरीके से प्रगट करने में असमर्थ है, और ऐसी अधार्मिकता को पूरी तरह से उजागर करने में तो बिलकुल भी समर्थ नहीं है। देहधारी परमेश्वर उन सब लोगों का शत्रु है जो उसे नहीं जानते हैं। उसके प्रति मनुष्य की धारणाओं एवं विरोध का न्याय करने के माध्यम से, वह मानवजाति की सारी अनाज्ञाकारिता का खुलासा करता है। देह में उसके कार्य के प्रभाव आत्मा के कार्य की अपेक्षा अधिक प्रगट हैं। और इस प्रकार, समस्त मानवजाति के न्याय को आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर सम्पन्न नहीं किया जाता है, बल्कि यह देहधारी परमेश्वर का कार्य है। देह में प्रगट परमेश्वर को मनुष्य के द्वारा देखा एवं छुआ जा सकता है, और देह में प्रगट परमेश्वर पूरी तरह से मनुष्य पर विजय पा सकता है। देहधारी परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में, मनुष्य विरोध से आज्ञाकारिता की ओर, सताव से स्वीकार्यता की ओर, सोच विचार से ज्ञान की ओर, और तिरस्कार से प्रेम की ओर प्रगति करता है। ये देहधारी परमेश्वर के कार्य के प्रभाव हैं। मनुष्य को केवल परमेश्वर के न्याय की स्वीकार्यता के माध्यम से ही बचाया जाता है, मनुष्य केवल परमेश्वर के मुँह के वचनों के माध्यम से ही धीरे धीरे उसे जानने लगता है, परमेश्वर के प्रति उसके विरोध के दौरान उसके द्वारा मनुष्य पर विजय पाया जाता है, और परमेश्वर की ताड़ना की स्वीकार्यता के दौरान वह उससे जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है। यह समस्त कार्य देहधारी परमेश्वर के कार्य हैं, और आत्मा के रूप में उसकी पहचान में परमेश्वर का कार्य नहीं है। देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य सर्वश्रेष्ठ कार्य है, और अति गंभीर कार्य है, और परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों का अति महत्वपूर्ण भाग देहधारण के दो चरणों के कार्य हैं। मनुष्य की अत्यंत गंभीर भ्रष्टता देहधारी परमेश्वर के कार्य में एक बड़ी बाधा है। विशेष रूप में, अंतिम दिनों के लोगों पर क्रियान्वित किया गया कार्य बहुत ही कठिन है, और माहौल प्रतिकूल है, और हर किस्म के लोगों की क्षमता बहुत ही कमज़ोर है। फिर भी इस कार्य के अंत में, यह बिना किसी त्रुटि के अब भी उचित प्रभाव को हासिल करेगा; यह देह के कार्य का प्रभाव है, और यह प्रभाव आत्मा के कार्य की अपेक्षा अधिक रज़ामन्द करने वाला (मनाने वाला) है। देहधारी परमेश्वर के द्वारा तीन चरणों के कार्य का समापन किया जाएगा, और इसे देहधारी परमेश्वर के द्वारा अवश्य पूरा किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण एवं सबसे निर्णायक कार्य को देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया है, और मनुष्य के उद्धार को व्यक्तिगत रूप से देहधारी परमेश्वर के द्वारा अवश्य सम्पन्न किया जाना चाहिए। यद्यपि समस्त मानवजाति को लगता है कि देह में प्रगट परमेश्वर का मनुष्य से कोई सम्बन्ध नहीं है, फिर भी वास्तव में यह देह समूची मानवजाति की नियति एवं अस्तित्व से सम्बन्धित है।" — "वचन देह में प्रकट होता है" से उद्धृत

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