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26.8.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - पच्चीसवाँ कथन"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - पच्चीसवाँ कथन"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मेरी नज़रों में, मनुष्य सभी चीज़ों का शासक है। मैंने उसे कम मात्रा में अधिकार नहीं दिया है, उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों—पहाड़ो के ऊपर की घास, जंगलों के बीच जानवरों, और जल की मछलियों—का प्रबन्ध करने की अनुमति दी है। फिर भी इसकी वजह से खुश होने के बजाए, मनुष्य चिंता से व्याकुल है। उसका पूरा जीवन एक मनस्ताप का, और वह यहाँ-वहाँ भागने का, और खालीपन में कुछ मौज मस्ती जोड़ने का है, और उसके पूरे जीवन में कोई नए अविष्कार और नई रचनाएँ नहीं हैं। कोई भी अपने आप को इस खोखले जीवन से छुड़ाने में समर्थ नहीं है, किसी ने कभी भी सार्थक जीवन की खोज नहीं की है, और किसी ने कभी भी एक वास्तविक जीवन का अनुभव नहीं किया है। यद्यपि आज सभी लोग मेरे चमकते हुए प्रकाश के नीचे जीवन बिताते हैं, फिर भी वे स्वर्ग के जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।

24.8.19

अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II परमेश्वर का धर्मी स्वभाव" (अंश I)


अंतिम दिनों के मसीह के कथन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II परमेश्वर का धर्मी स्वभाव" (अंश I)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मानवजाति के प्रति सृष्टिकर्ता की सच्ची भावनाएं लोग अकसर कहते हैं कि परमेश्वर को जानना सरल बात नहीं है। फिर भी, मैं कहता हूं कि परमेश्वर को जानना बिलकुल भी कठिन विषय नहीं है, क्योंकि वह बार बार मनुष्य को अपने कामों का गवाह बनने देता है। परमेश्वर ने कभी भी मनुष्य के साथ संवाद करना बंद नहीं किया है; उसने कभी भी मनुष्य से अपने आपको गुप्त नहीं रखा है, न ही उसने स्वयं को छिपाया है। उसके विचारों, उसके उपायों, उसके वचनों और उसके कार्यों को मानवजाति के लिए पूरी तरह से प्रकाशित किया गया है। इसलिए, जब तक मनुष्य परमेश्वर को जानने की कामना करता है, वह सभी प्रकार के माध्यमों और पद्धतियों के जरिए उन्हें समझ और जान सकता है। मनुष्य क्यों आँख बंद करके सोचता है कि परमेश्वर ने जानबूझकर उससे परहेज किया है, कि परमेश्वर ने जानबूझकर स्वयं को मानवता से छिपाया है, कि परमेश्वर का मनुष्य को उन्हें समझने या जानने देने का कोई इरादा नहीं है, उसका कारण यह है कि मनुष्य नहीं जानता है कि परमेश्वर कौन है, और न ही वह परमेश्वर को समझने की इच्छा करता है; उससे भी बढ़कर, वह सृष्टिकर्ता के विचारों, वचनों या कार्यों की परवाह नहीं करता है...।

21.8.19

कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" (भाग एक)


कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन "परमेश्वर द्वारा आवासित देह का सार" (भाग एक)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर

कहते हैं: "देहधारण का अर्थ यह है कि परमेश्वर देह में प्रकट होता है, और वह अपनी सृष्टि के मनुष्यों के मध्य देह की छवि में कार्य करने आता है। इसलिए, परमेश्वर को देहधारी होने के लिए, उसे सबसे पहले देह, सामान्य मानवता वाली देह अवश्य होना चाहिए; यह, कम से कम, सत्य अवश्य होना चाहिए। वास्तव में, परमेश्वर का देहधारण का निहितार्थ यह है कि परमेश्वर देह में रह कर कार्य करता है, परमेश्वर अपने वास्तविक सार में देहधारी बन जाता है, एक मनुष्य बन जाता है।

16.8.19

मसीह के कथन "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" (अंश IV)


मसीह के कथन "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" 

(अंश IV)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "देह के उसके कार्य अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, जिसे कार्य के सम्बन्ध में कहा गया है, और वह परमेश्वर जो अंततः कार्य का समापन करता है वह देहधारी परमेश्वर है, और आत्मा नहीं है। कुछ लोग विश्वास करते हैं कि शायद परमेश्वर किसी समय पृथ्वी पर आए और लोगों को दिखाई दे, जिसके बाद वह समस्त मानवजाति का न्याय करेगा, किसी को छोड़े बिना उन्हें एक एक करके जांचेगा। ऐसे लोग जो इस रीति से सोचते हैं वे देहधारण के इस चरण के कार्य को नहीं जानते हैं। परमेश्वर एक एक करके मनुष्य का न्याय नहीं करता है, और एक एक करके मनुष्य की जांच नहीं करता है; ऐसा करना न्याय का कार्य नहीं होगा। क्या समस्त मानवजाति की भ्रष्टता एक समान नहीं है? क्या मनुष्य का मूल-तत्व सब एक जैसा नहीं है? जिसका न्याय किया जाता है वह मनुष्य का भ्रष्ट मूल-तत्व है, मनुष्य का मूल-तत्व जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है, और मनुष्य के समस्त पाप हैं। परमेश्वर मनुष्य की छोटी-मोटी एवं मामूली त्रुटियों का न्याय नहीं करता है। न्याय का कार्य प्रतिनिधिक है, और इसे विशेषकर किसी निश्चित व्यक्ति के लिए क्रियान्वित नहीं किया जाता है। इसके बजाए, यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मानवजाति के न्याय को दर्शाने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को क्रियान्वित करने के द्वारा, देह में प्रगट परमेश्वर समूची मानवजाति के कार्य को दर्शाने के लिए अपने कार्य का उपयोग करता है, जिसके पश्चात् यह धीरे धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य भी इस प्रकार ही है। परमेश्वर किसी निश्चित किस्म के व्यक्ति या लोगों के किसी निश्चित समूह का न्याय नहीं करता है, परन्तु समूची मानवजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है - परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, उदाहरण के लिए, या उसके विरुद्ध मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी डालना, एवं इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वह परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य का मूल-तत्व है, और यह कार्य अंतिम दिनों के विजय का कार्य है। देहधारी परमेश्वर का कार्य एवं वचन जिसकी गवाही मनुष्य के द्वारा दी जाती है वे अंतिम दिनों के दौरान बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय के कार्य हैं, जिसे पिछले समयों के दौरान मनुष्य के द्वारा सोचा विचारा गया था। ऐसा कार्य जिसे वर्तमान में देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया जा रहा है वह बिलकुल उस बड़े श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है। आज का देहधारी परमेश्वर वह परमेश्वर है जो अंतिम दिनों के दौरान समूची मानवजाति का न्याय करता है। यह देह एवं उसका कार्य, वचन, और समूचा स्वभाव वे उसकी सम्पूर्णता हैं। यद्यपि उसके कार्य का दायरा सीमित है, और सीधे तौर पर समूचे विश्व को शामिल नहीं करता है, फिर भी न्याय के कार्य का मूल-तत्व समस्त मानवजाति का प्रत्यक्ष न्याय है; यह ऐसा कार्य नहीं है जिसे केवल चीन के लिए, या कम संख्या के लोगों के लिए आरम्भ किया गया है। देह में परमेश्वर के कार्य के दौरान, यद्यपि इस कार्य का दायरा समूचे विश्व को शामिल नहीं करता है, फिर भी यह समूचे विश्व के कार्य को दर्शाता है, जब वह अपनी देह के कार्य के दायरे के भीतर उस कार्य का समापन करता है उसके पश्चात्, वह तुरन्त ही इस कार्य को समूचे विश्व में फैला देगा, उसी रीति से जैसे यीशु के पुनरूत्थान एवं स्वर्गारोहण के बाद उसका सुसमाचार सारी दुनिया में फैल गया था। इसकी परवाह किए बगैर कि यह आत्मा का कार्य है या देह का कार्य, यह ऐसा कार्य है जिसे एक सीमित दायरे के भीतर सम्पन्न किया गया है, परन्तु जो समूचे विश्व के कार्य को दर्शाता है। अन्त के दिनों के दौरान, परमेश्वर अपनी देहधारी पहचान का उपयोग करते हुए अपने कार्य को करने के लिए प्रगट हुआ है, और देह में प्रगट परमेश्वर वह परमेश्वर है जो बड़े श्वेत सिंहासन के सामने मनुष्य का न्याय करता है। इसकी परवाह किए बगैर कि वह आत्मा है या देह, वह जो न्याय का काम करता है वही ऐसा परमेश्वर है जो अंतिम दिनों के दौरान मनुष्य का न्याय करता है। उसके कार्य के आधार पर इसे परिभाषित किया गया है, परन्तु उसके बाहरी रंग-रूप एवं विभिन्न अन्य कारकों के अनुसार इसे परिभाषित नहीं किया गया है। यद्यपि मनुष्य के पास इन वचनों के विषय में धारणाएं हैं, फिर भी कोई देहधारी परमेश्वर के न्याय एवं समस्त मानवजाति पर विजय के तथ्य को नकार नहीं सकता है। इसकी परवाह किए बगैर कि किस प्रकार इसका मूल्यांकन किया जाता है, तथ्य, आखिरकार, तथ्य ही हैं। कोई यह नहीं कह सकता है कि "यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया है, परन्तु यह देह परमेश्वर नहीं है।" यह बकवास है, क्योंकि इस कार्य को देहधारी परमेश्वर को छोड़कर किसी के भी द्वारा नहीं किया जा सकता है। जबकि इस कार्य को पहले से ही पूरा किया जा चुका है, तो इस कार्य के बाद मनुष्य के विषय में परमेश्वर के न्याय का कार्य दूसरी बार प्रगट नहीं होगा; दूसरे देहधारी परमेश्वर ने पहले से ही समूचे प्रबंधन के सभी कार्यों का समापन कर लिया है, और परमेश्वर के कार्य का चौथा चरण नहीं होगा। क्योंकि वह मनुष्य है जिसका न्याय किया जाता है, मनुष्य जो हाड़-मांस का है और उसे भ्रष्ट किया जा चुका है, और यह शैतान का आत्मा नहीं है जिसका सीधे तौर पर न्याय किया जाता है, न्याय के कार्य को आत्मिक संसार में सम्पन्न नहीं किया जाता है, परन्तु मनुष्यों के बीच किया जाता है। कोई भी मनुष्य की देह की भ्रष्टता का न्याय करने के लिए देह में प्रगट परमेश्वर की अपेक्षा अधिक उपयुक्त, एवं योग्य नहीं है। यदि न्याय सीधे तौर पर परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया गया होता, तो यह सभी के द्वारा स्वेच्छा से स्वीकार्य नहीं होता। इसके अतिरिक्त, ऐसे कार्य को स्वीकार करना मनुष्य के लिए कठिन होगा, क्योंकि आत्मा मनुष्य के साथ आमने-सामने आने में असमर्थ है, और इस कारण से, प्रभाव तत्काल नहीं होंगे, और मनुष्य परमेश्वर के अनुल्लंघनीय स्वभाव को साफ-साफ देखने में बिलकुल भी सक्षम नहीं होगा। यदि देह में प्रगट परमेश्वर मानवजाति की भ्रष्टता का न्याय करे केवल तभी शैतान को पूरी तरह से हराया जा सकता है। मनुष्य के समान होकर जो सामान्य मानवता को धारण करता है, देह में प्रगट परमेश्वर सीधे तौर पर मनुष्य की अधार्मिकता का न्याय कर सकता है; यह उसकी अंतर्निहित पवित्रता, एवं उसकी असाधारणता का चिन्ह है। केवल परमेश्वर ही योग्य है, एवं उस स्थिति में है कि मनुष्य का न्याय करे, क्योंकि वह सत्य एवं धार्मिकता को धारण किए हुए है, और इस प्रकार वह मनुष्य का न्याय करने में सक्षम है। ऐसे लोग जो सत्य एवं धार्मिकता से रहित हैं वे दूसरों का न्याय करने के लायक नहीं हैं। यदि इस कार्य को परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया जाता, तो एक छोटा सा कीड़ा (लीख) भी शैतान पर विजय नहीं पाता। आत्मा स्वभाव से ही नश्वर प्राणियों कहीं अधिक ऊँचा है, और परमेश्वर का आत्मा स्वभाव से ही पवित्र है, और देह के ऊपर जयवंत है। यदि आत्मा ने इस कार्य को सीधे तौर पर किया होता, तो वह मनुष्य की सारी अनाज्ञाकारिता का न्याय करने में सक्षम नहीं होता, और मनुष्य की सारी अधार्मिकता को प्रगट नहीं कर सकता था। क्योंकि परमेश्वर के विषय में मनुष्य की धारणाओं के माध्यम से न्याय के कार्य को भी सम्पन्न किया जाता है, और मनुष्य के पास कभी भी आत्मा के विषय में कोई धारणाएं नहीं है, और इस प्रकार आत्मा मनुष्य की अधार्मिकता को बेहतर तरीके से प्रगट करने में असमर्थ है, और ऐसी अधार्मिकता को पूरी तरह से उजागर करने में तो बिलकुल भी समर्थ नहीं है। देहधारी परमेश्वर उन सब लोगों का शत्रु है जो उसे नहीं जानते हैं। उसके प्रति मनुष्य की धारणाओं एवं विरोध का न्याय करने के माध्यम से, वह मानवजाति की सारी अनाज्ञाकारिता का खुलासा करता है। देह में उसके कार्य के प्रभाव आत्मा के कार्य की अपेक्षा अधिक प्रगट हैं। और इस प्रकार, समस्त मानवजाति के न्याय को आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर सम्पन्न नहीं किया जाता है, बल्कि यह देहधारी परमेश्वर का कार्य है। देह में प्रगट परमेश्वर को मनुष्य के द्वारा देखा एवं छुआ जा सकता है, और देह में प्रगट परमेश्वर पूरी तरह से मनुष्य पर विजय पा सकता है। देहधारी परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में, मनुष्य विरोध से आज्ञाकारिता की ओर, सताव से स्वीकार्यता की ओर, सोच विचार से ज्ञान की ओर, और तिरस्कार से प्रेम की ओर प्रगति करता है। ये देहधारी परमेश्वर के कार्य के प्रभाव हैं। मनुष्य को केवल परमेश्वर के न्याय की स्वीकार्यता के माध्यम से ही बचाया जाता है, मनुष्य केवल परमेश्वर के मुँह के वचनों के माध्यम से ही धीरे धीरे उसे जानने लगता है, परमेश्वर के प्रति उसके विरोध के दौरान उसके द्वारा मनुष्य पर विजय पाया जाता है, और परमेश्वर की ताड़ना की स्वीकार्यता के दौरान वह उससे जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है। यह समस्त कार्य देहधारी परमेश्वर के कार्य हैं, और आत्मा के रूप में उसकी पहचान में परमेश्वर का कार्य नहीं है। देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य सर्वश्रेष्ठ कार्य है, और अति गंभीर कार्य है, और परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों का अति महत्वपूर्ण भाग देहधारण के दो चरणों के कार्य हैं। मनुष्य की अत्यंत गंभीर भ्रष्टता देहधारी परमेश्वर के कार्य में एक बड़ी बाधा है। विशेष रूप में, अंतिम दिनों के लोगों पर क्रियान्वित किया गया कार्य बहुत ही कठिन है, और माहौल प्रतिकूल है, और हर किस्म के लोगों की क्षमता बहुत ही कमज़ोर है। फिर भी इस कार्य के अंत में, यह बिना किसी त्रुटि के अब भी उचित प्रभाव को हासिल करेगा; यह देह के कार्य का प्रभाव है, और यह प्रभाव आत्मा के कार्य की अपेक्षा अधिक रज़ामन्द करने वाला (मनाने वाला) है। देहधारी परमेश्वर के द्वारा तीन चरणों के कार्य का समापन किया जाएगा, और इसे देहधारी परमेश्वर के द्वारा अवश्य पूरा किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण एवं सबसे निर्णायक कार्य को देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया है, और मनुष्य के उद्धार को व्यक्तिगत रूप से देहधारी परमेश्वर के द्वारा अवश्य सम्पन्न किया जाना चाहिए। यद्यपि समस्त मानवजाति को लगता है कि देह में प्रगट परमेश्वर का मनुष्य से कोई सम्बन्ध नहीं है, फिर भी वास्तव में यह देह समूची मानवजाति की नियति एवं अस्तित्व से सम्बन्धित है।" — "वचन देह में प्रकट होता है" से उद्धृत

23.7.19

"केवल वह जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है वही परमेवर में सच में विश्वास करता है" (अंश)



"केवल वह जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है वही परमेवर में सच में विश्वास करता है" (अंश)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "आज, परमेश्वर के पास नया कार्य है। हो सकता है कि तुम इन वचनों को स्वीकार नहीं कर सको, ये तुम्हें अजीब लग सकते हैं, किंतु मैं तुम्हें सलाह देता हूँ कि तुम अपनी स्वाभाविकता प्रकट मत करो क्योंकि केवल वे जो परमेश्वर के समक्ष धार्मिकता के लिये सच्ची भूख-प्यास रखते हैं, सत्य को पा सकते हैं, और केवल वे जो वास्तव में धर्मनिष्ठ हैं, परमेश्वर के द्वारा प्रबुद्ध किए जा सकते हैं और मार्गदर्शन पा सकते हैं। लड़ने-झगड़ने के माध्यम से सत्य की खोज में कुछ नहीं मिलेगा। केवल शांति के साथ खोज करने से ही हम परिणामों को प्राप्त कर सकते हैं। जब मैं यह कहता हूँ कि "आज, परमेश्वर के पास नया कार्य है," तो मैं परमेश्वर के देह में लौटने की बात कर रहा हूँ। शायद तुम इन वचनों पर ध्यान न दो, शायद तुम उनका तिरस्कार करो, या शायद ये तुम्हारे लिए बड़े रुचिकर हों।

16.7.19

"सात गर्जनाएँ – भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य के सुसमाचार पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाएंगे" (अंश)



"सात गर्जनाएँ – भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य के सुसमाचार पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाएंगे" (अंश)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मैं पूरे ब्रह्मांड में अपना कार्य कर रहा हूँ, और पूरब से असंख्य गर्जनायें गूँज रही हैं, जो सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरी वाणी है जिसने वर्तमान में सभी मनुष्यों की अगुवाई की है। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लूंगा, उन्हें इस धारा में बहाऊंगा और अपने सामने समर्पण करवाऊंगा, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा को वापस लेकर इसे नये सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा को देखने के लिए लालायित नहीं है? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं कर रहा है? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता को देखने के लिए तरस नहीं रहा है? कौन प्रकाश में नहीं आना चाहता? कौन कनान की समृद्धि को नहीं देखना चाहता?

10.7.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" (अंश)



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" (अंश)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "इस विशाल ब्रह्मांड में ऐसे कितने प्राणी हैं जो सृष्टि के नियम का बार-बार पालन करते हुए, एक ही निरंतर नियम पर चल रहे हैं और प्रजनन कार्य में लगे हैं। जो लोग मर जाते हैं वे जीवितों की कहानियों को अपने साथ ले जाते हैं और जो जीवित हैं वे मरे हुओं के वही त्रासदीपूर्ण इतिहास को दोहराते रहते हैं। मानवजाति बेबसी में स्वयं से पूछती हैः हम क्यों जीवित हैं? और हमें करना क्यों पडता है? यह संसार किसके आदेश पर चलता है? मानवजाति को किसने रचा है? क्या वास्तव में मानवजाति प्रकृति के द्वारा ही रची गई है? क्या मानवजाति वास्तव में स्वयं के भाग्य के नियंत्रण में है?...हज़ारों सालों से मानवजाति ने बार-बार ये प्रश्न किए हैं। दुर्भाग्य से, मानवजाति जितना अधिक इन प्रश्नों के जूनून से घिरती गई, विज्ञान के लिए उसके भीतर उतनी ही अधिक प्यास उत्पन्न होती गई है।

7.7.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है"(अंश III)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है"(अंश III)



     सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "जैसे-जैसे रात बढ़ती है, मनुष्य अनजान बना रहता है, क्योंकि मनुष्य का हृदय यह नहीं जान पाता कि अंधकार कैसे बढ़ता है और कहां से यह आता है। जैसे चुपचाप रात ढल जाती है, मनुष्य दिन के उजियाले का स्वागत करता है, फिर भी मनुष्य का हृदय बहुत ही कम स्पष्ट या अवगत होता है कि यह उजियाला कहां से और कैसे आया, और इसने रात के अंधियारे को कैसे दूर कर दिया। इस प्रकार के दिन और रात के सतत बदलाव मनुष्य को एक अवधि से दूसरी अवधि में लेकर जाते हैं, समय के साथ आगे बढ़ते हैं, जबकि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि सभी समय और अवधि के दौरान परमेश्वर के कार्य और उसकी योजनाएं पूरी होती रहें। मनुष्य सदियों से परमेश्वर के साथ चलता आया है, फिर भी मनुष्य नहीं जानता है कि परमेश्वर सभी बातों पर, जीवित प्राणियों के भाग्य पर शासन करता है या सभी बातों को परमेश्वर किस प्रकार से आयोजित या निर्देशित करता है।

27.6.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" (भाग दो)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" (भाग दो)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, उसे पृथ्वी पर रखा, और उसकी आज के दिन तक अगुआई की। उसने तब मानवजाति को बचाया और मानवजाति के लिये पापबली के रूप में कार्य किया। अंत में उसे अभी भी अवश्य मानवजाति को जीतना चाहिए, मानवजाति को पूर्णतः बचाना चाहिए और उसे उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना चाहिए। यही वह कार्य है जिसमें वह आरंभ से लेकर अंत तक संलग्न रहा है—मनुष्य को उसकी मूल छवि में और उसकी मूल समानता में पुनर्स्थापित करना। वह अपना राज्य स्थापित करेगा और मनुष्य की मूल समानता पुनर्स्थापित करेगा, जिसका अर्थ है कि वह पृथ्वी पर अपने अधिकार को पुनर्स्थापित करेगा, और समस्त प्राणियों के बीच अपने अधिकार को पुर्नस्थापित करेगा।

22.6.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का प्रकटीकरण एक नया युग लाया है" (अंश)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का प्रकटीकरण एक नया युग लाया है" (अंश)


सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिन्हों को खोज रहे हैं, हमें अवश्य ही परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के कथन की खोज करनी चाहिए; क्योंकि जहां परमेश्वर के नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहां परमेश्वर के पदचिन्ह हैं, वहाँ परमेश्वर के कार्य हैं। जहां परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर का प्रकट होना है, और जहां परमेश्वर का प्रकट होना है, वहाँ मार्ग, सत्य और जीवन का अस्तित्व है।

27.5.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "तीन चेतावनियाँ"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "तीन चेतावनियाँ" | The Warning of God to Man (Hindi)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर में विश्वासी के रूप में, तुम लोगों को सभी बातों में परमेश्वर के अलावा और किसी के प्रति वफादार नहीं होना चाहिए और सभी बातों में उसकी इच्छा के अनुरूप होने में समर्थ होना चाहिए। तथापि, यद्यपि हर कोई इस सिद्धांत को समझता है, फिर भी ये सच्चाइयाँ जो अत्यधिक स्पष्ट और बुनियादी हैं, जहाँ तक मनुष्य का संबंध है, उसकी अज्ञानता, बेहूदगी, और भ्रष्टता जैसी नानाविध मनोव्यथाओं के कारण उसमें पूरी तरह से नहीं देखी जा सकती है। इसलिए, तुम लोगों का अंत निर्धारित करने से पहले, मुझे सबसे पहले तुम लोगों को कुछ चीज़ें बतानी चाहिए, जो तुम लोगों के लिए अत्यधिक महत्व की हैं।

29.4.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "जिन्हें मैं कहता हूँ कि वे परमेश्वर के विरोध में हैं ये वे लोग हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं, वे लोग हैं जो निरर्थक वचनों से परमेश्वर को स्वीकार करते हैं मगर परमेश्वर को नहीं जानते हैं, वे लोग हैं जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं मगर उनकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं, और वे लोग हैं जो परमेश्वर के अनुग्रह में आनंद करते हैं मगर उनकी गवाही नहीं दे सकते हैं। परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य, और मनुष्य में उसके काम को समझे बिना मनुष्य परमेश्वर के हृदय के अनुरूप नहीं हो सकता है, और परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकता है। मनुष्य के द्वारा परमेश्वर का विरोध करने का कारण, एक ओर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव से, और दूसरी ओर, परमेश्वर के प्रति अज्ञानता और परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों की और मनुष्य के प्रति उनकी इच्छा की समझ की कमी से उत्पन्न होता है।

5.4.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर के प्रकटन को उनके न्याय और ताड़ना में देखना"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर के प्रकटन को उनके न्याय और ताड़ना में देखना"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "उसके अलावा अन्य कोई भी हमारे सभी विचारों को नहीं जान सकता है, या हमारे स्वभाव और सार को नहीं समझ सकता है, या मानवजाति के विद्रोहीपन और भ्रष्टता का न्याय कर सकता है, या स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से हमसे बातचीत या हमारे बीच में कार्य कर सकता है। उसके अलावा अन्य कोई परमेश्वर के अधिकार, विवेक और प्रतिष्ठा को धारण नहीं कर सकता है; परमेश्वर का स्वभाव और उसके पास क्या है और जो वह है, अपनी संपूर्णता में, प्रवाहित होते हैं। उसके अलावा कोई अन्य हमें मार्ग दिखा या प्रकाश तक ले जा नहीं सकता है।

24.3.19

कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - तेरहवाँ कथन"


कलिसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - तेरहवाँ कथन"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "वास्तविक अनुभव के बिना, कोई मानव कभी भी मुझे नहीं जान पाएगा, मेरे वचनों के माध्यम से मुझे जानने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकेगा। किन्तु आज मैं व्यक्तिगत रूप से तुम लोगों के बीच आया हूँ: क्या यह मुझे जानना तुम्हारे लिए सुगम नहीं बनाएगा? क्या ऐसा हो सकता है कि मेरा देहधारण भी तुम्हारे लिए उद्धार नहीं है?

26.2.19

मसीह के कथन "छुटकारे के युग में कार्य के पीछे की सच्ची कहानी"



मसीह के कथन "छुटकारे के युग में कार्य के पीछे की सच्ची कहानी" | Jesus' Salvation of the Cross(Hindi)



सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "अनुग्रह के युग में, मनुष्य पहले से ही शैतान की भ्रष्टता से गुज़र चुका था, और इसलिए समस्त मानवजाति को छुटकारा देने के कार्य हेतु, अनुग्रह की भरमार, अनन्त सहनशीलता और धैर्य, और उससे भी बढ़कर, मानवजाति के पापों का प्रयाश्चित करने के लिए पर्याप्त बलिदान की आवश्यकता थी ताकि इसके प्रभाव तक पहुँचा जा सके। अनुग्रह के युग में मानवजाति ने जो देखा वह मानवजाति के पापों के प्रायश्चित के लिए मेरी भेंट मात्र था, अर्थात्, यीशु। वे केवल इतना ही जानते थे कि परमेश्वर दयावान और सहनशील हो सकता है, और उन्होंने केवल यीशु की दया और करूणामय-प्रेम को देखा था। ऐसा पूरी तरह से इसलिए था क्योंकि वे अनुग्रह के युग में रहते थे। और इसलिए, इससे पहले कि उन्हें छुटकारा दिया जा सके, उन्हें कई प्रकार के अनुग्रह का आनन्द उठाना था जो यीशु ने उन्हें प्रदान किए थे; केवल यही उनके लिए लाभदायक था।

24.2.19

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "तीन चेतावनियाँ" |

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर में विश्वासी के रूप में, तुम लोगों को सभी बातों में परमेश्वर के अलावा और किसी के प्रति वफादार नहीं होना चाहिए और सभी बातों में उसकी इच्छा के अनुरूप होने में समर्थ होना चाहिए।


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "तीन चेतावनियाँ" | The Warning of God to Man (Hindi)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर में विश्वासी के रूप में, तुम लोगों को सभी बातों में परमेश्वर के अलावा और किसी के प्रति वफादार नहीं होना चाहिए और सभी बातों में उसकी इच्छा के अनुरूप होने में समर्थ होना चाहिए। तथापि, यद्यपि हर कोई इस सिद्धांत को समझता है, फिर भी ये सच्चाइयाँ जो अत्यधिक स्पष्ट और बुनियादी हैं, जहाँ तक मनुष्य का संबंध है, उसकी अज्ञानता, बेहूदगी, और भ्रष्टता जैसी नानाविध मनोव्यथाओं के कारण उसमें पूरी तरह से नहीं देखी जा सकती है। इसलिए, तुम लोगों का अंत निर्धारित करने से पहले, मुझे सबसे पहले तुम लोगों को कुछ चीज़ें बतानी चाहिए, जो तुम लोगों के लिए अत्यधिक महत्व की हैं।

15.1.19

पवित्र आत्मा का वचन "एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता होना है"


पवित्र आत्मा का वचन "एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता होना है"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मनुष्य का स्वभाव उसके सार के ज्ञान की शुरुआत से बदल जाना चाहिए और उसकी सोच, स्वभाव, और मानसिक दृष्टिकोण के बदल जाने से—मौलिक परिवर्तन के द्वारा। केवल इसी ढंग से मनुष्य के स्वभाव में सच्चे बदलाव आ सकेंगे। मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव शैतान के द्वारा उसे जहर देने और रौंदे जाने के कारण उपजा है, उस प्रबल नुकसान से जिसे शैतान ने उसकी सोच नैतिकता, अंतर्दृष्टि, और समझ पर पहुँचाया है।

4.4.18

Hindi Christian Video "स्वर्गिक राज्य का मेरा स्वप्न" क्लिप 3 - स्वर्ग का राज्य वास्तव में कहां है?


Hindi Christian Video "स्वर्गिक राज्य का मेरा स्वप्न" क्लिप 3 - स्वर्ग का राज्य वास्तव में कहां है?


प्रभु में विश्वास करने वाले हम सबकी सबसे बड़ी इच्छा प्रभु के लौटने का स्वागत करने, स्वर्ग के राज्य में लाये जाने, और परमेश्वर के वचन और आशीष ग्रहण करने की होती है। अधिकतर लोग मानते हैं कि प्रभु के लौटने पर, प्रभु से मिलने के लिए हम आकाश में उठा लिये जायेंगे।परंतु बाइबल में कहा गया है कि नया यरुशलेम स्वर्ग से नीचे आयेगा। “परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है,” “जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया।” स्वर्ग का राज्य आकाश में है या पृथ्वी पर? अपने लौटने पर प्रभु संतों को स्वर्ग के राज्य में कैसे ले जायेंगे?

प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए एक अति महत्वपूर्ण कदम

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