12.1.18

बाइबल के विषय में (2)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा प्रकाशित
बाइबल को पुराना नियम और नया नियम भी कहते हैं। क्या तुम जानते हो कि "नियम" किसे संदर्भित करता है? "पुराने नियम" में "नियम" इस्राएल के लोगों के साथ बांधी गई परमेश्वर की वाचा से आता है जब उसने मिस्रियों को मार डाला था और इस्राएलियों को फिरौन से बचाया था।
हाँ वास्तव में, मेमने का लहू इस वाचा का प्रमाण था जिसे दरवाज़ों की चैखट के ऊपर पोता गया था, जिसके द्वारा परमेश्वर ने मनुष्य के साथ एक वाचा बांधी थी, एक ऐसी वाचा जिसमें कहा गया था कि वे सभी लोग जिनके दरवाज़ों के ऊपर और अगल बगल मेमने का लहू लगा हुआ हो वे इस्राएली हैं, वे परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, और उन सभी को परमेश्वर के द्वारा बख्श दिया जाएगा (क्योंकि यहोवा उस समय मिस्र के पहिलौठे पुत्रों और भेड़ों और पशुओं के पहिलौठों को मारने ही वाला था)। इस वाचा में दो स्तर के अर्थ हैं। मिस्र के लोगों और पशुओं में से किसी को भी यहोवा के द्वारा छुटकारा नहीं दिया जाएगा; वह उनके सभी पहिलौठे पुत्रों और पहिलौठे भेड़ों और पशुओं को मार डालेगा। इस प्रकार भविष्यवाणी की अनेक पुस्तकों में इसके विषय में भविष्यवाणी की गई थी कि यहोवा की वाचा के परिणामस्वरूप मिस्रियों को बहुत अधिक ताड़ना मिलेगी। यह प्रथम स्तर का अर्थ है। यहोवा ने मिस्र के पहिलौठे पुत्रों और उसके पशुओं के सभी पहिलौठों को मार डाला, और उसने सभी इस्राएलियों को छोड़ दिया, जिसका अर्थ था कि वे सभी जो इस्राएल की भूमि के थे उन्हें यहोवा के द्वारा पालन पोषण किया गया था, और उन सभी को छोड़ दिया जाएगा; वह उन में लम्बे समय का कार्य करना चाहता था, और उसने मेमने के लहू का उपयोग करके उनके साथ वाचा स्थापित की थी। उस समय के पश्चात, यहोवा इस्राएलियों को नहीं मारेगा, और उसने कहा कि वे सदाकाल के लिए उसके चुने हुए लोग हैं। इस्राएल के बारह गोत्रों के बीच में, समूचे व्यवस्था के युग के लिए वह अपने कार्य की शुरूआत करेगा, वह इस्राएलियों पर अपनी सारी व्यवस्थाओं को प्रकट करेगा, और उनके बीच में से भविष्यवक्ताओं और न्यायियों को चुनेगा, और वे उसके कार्य के केन्द्र में होंगे। उसने उनके साथ एक वाचा बांधी थीः जब तक युग परिवर्तित नहीं होता है, वह सिर्फ चुने हुए लोगों के बीच में ही कार्य करेगा। यहोवा की वाचा अपरिवर्तनीय थी, क्योंकि वह लहू में बनी थी, और वह उसके चुने हुए लोगों के साथ स्थापित की गई थी। अधिक महत्वपूर्ण रूप से, उसने उचित दायरे और लक्ष्य को चुना था जिसके जरिए उसने समूचे युग के लिए अपने कार्य की शुरूआत की, और इस प्रकार लोगों ने इस वाचा को विशेष तौर पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण वाचा के रूप में देखा था। यह वाचा का दूसरे स्तर का अर्थ है। उत्पत्ति को छोड़कर, जो वाचा की स्थापना के पहले था, पुराने नियम में अन्य सभी पुस्तकें वाचा की स्थापना के बाद इस्राएलियों के बीच किए गए कार्यों का लेखा जोखा रखती हैं। वास्तव में, अन्यजातियों के विषय में यदा-कदा ही लेखा जोखा पाया जाता है, किन्तु, कुल मिलाकर, पुराना नियम इस्राएल में किए गए परमेश्वर के कार्य का आलेख है। इस्राएलियों के साथ यहोवा की वाचा के कारण, वे पुस्तकें जिन्हें व्यवस्था के युग के दौरान लिखा गया था उन्हें "पुराना नियम" कहते हैं। उनका नाम इस्राएलियों के साथ बांधी गई यहोवा की वाचा के अनुसार रखा गया है।
क्रूस पर यीशु के द्वारा बहाए गए लहू और उन सभी के साथ उसकी वाचा के अनुसार, जो उस पर विश्वास करते हैं, नए नियम का नाम रखा गया है। यीशु की वाचा यह थीः लोगों को उसके लहू बहाने के द्वारा अपने पापों की क्षमा के लिए सिर्फ उस पर विश्वास करना था, और इस प्रकार वे उद्धार पाएँगे, और उसके जरिए नया जन्म प्राप्त करेंगे, और आगे से पापी न होंगे; उसके अनुग्रह को प्राप्त करने के लिए लोगों को सिर्फ उस पर विश्वास करना था, और मरने के बाद उन्हें नरक में कष्ट नहीं भोगना होगा। अनुग्रह के युग के दौरान लिखी गई सभी पुस्तकें इस वाचा के बाद आईं, और वे सभी उस कार्य और उन कथनों को दर्ज करती हैं जो उसमें थीं। वे प्रभु यीशु के क्रूसारोहण या उस वाचा से प्राप्त उद्धार से आगे नहीं गए; वे सभी ऐसी पुस्तकें हैं जिन्हें प्रभु में हमारे भाईयों द्वारा लिखा गया था,जिनके पास अनुभव थे। इस प्रकार, इन पुस्तकों का नाम भी एक वाचा के अनुसार रखा गया हैः उन्हें नया नियम कहा जाता है। इन दोनों नियमों में सिर्फ अनुग्रह का युग एवं व्यवस्था का युग शामिल है, और इनका अंतिम युग के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार, वर्तमान में लोगों के लिए जो अंतिम दिनों में रहते हैं बाइबल की बहुत ज़्यादा उपयोगिता नहीं है। सब से बढ़कर, यह सामयिक संकेत के रूप में कार्य करता है, किन्तु मुख्य रूप से इसकी उपयोगिता बहुत कम मूल्य रखती है। फिर भी धार्मिक लोग इसे अभी भी बहुत अधिक संजोकर रखते हैं। वे बाइबल को नहीं जानते हैं, वे सिर्फ बाइबल की व्याख्या करना जानते हैं, और वे बुनियादी तौर पर उसके मूलस्रोत से अनजान हैं। बाइबल के प्रति उनकी मनोवृत्तियाँ यह हैः बाइबल की हर चीज़ सही है, उस में कोई भ्रम या त्रुटि नहीं है। उसके बाद वे उसका अध्ययन करना प्रारम्भ करते हैं। क्योंकि उन्होंने पहले ही निर्धारित कर लिया है कि बाइबल सही है, और उस में कोई त्रुटि नहीं है, इसलिए वे बड़ी रूचि के साथ उसका अध्ययन और परीक्षण करते हैं। आज के कार्य की अवस्था को बाइबल में पहले से बताया नहीं गया था। सब से घने अंधकार में विजय के कार्य का कभी भी जिक्र नहीं किया गया था, क्योंकि यह नवीनतम कार्य है। क्योंकि कार्य का युग अलग अलग है, यहाँ तक कि स्वयं यीशु भी अनजान था कि कार्य की इस अवस्था को इन अंतिम दिनों के दौरान किया जाएगा - और इस प्रकार अंतिम दिनों के लोग कार्य की इस अवस्था का पता लगाने के लिए जाँच कैसे कर सकते थे?
उनमें से बहुत से लोग जो बाइबल की व्याख्या करते हैं वे तार्किक अनुमान लगाते हैं, और उनके पास कोई वास्तविक पृष्ठभूमि नहीं होती है। वे अनेक चीज़ों का अनुमान लगाने के लिए मात्र तर्क का उपयोग करते हैं। क्योंकि साल दर साल, किसी ने भी बाइबल को खण्ड विखण्ड करने, या बाइबल को न कहने की हिम्मत नहीं की है, क्योंकि यह पुस्तक एक पवित्र पुस्तक है, और लोग ईश्वर के रूप में इसकी आराधना करते हैं। कई हज़ारों सालों तक ऐसा ही होता रहा है। परमेश्वर ने कोई ध्यान नहीं दिया, और किसी ने भी बाइबल के भीतर की कहानियों की खोज नहीं की। हम कहते हैं कि बाइबल को संजोकर रखना मूर्ति पूजा है, फिर भी उन में से कोई भक्त विश्वासी इस रीति से देखने की हिम्मत नहीं करता है, और वे तुम से कहते हैं: "भाई! ऐसा मत कहिए, यह बहुत भयानक है! तुम परमेश्वर की निन्दा कैसे कर सकते हो?" उसके आगे वे बड़े दर्द भरे अन्दाज में कहते हैं: "हे दयावान यीशु, उद्धार के प्रभु, मैं तुझ से विनती करता हूँ कि तू इसके पापों को क्षमा कर, क्योंकि तू वह प्रभु है जो मनुष्य से प्रेम करता है, और हम सभी ने पाप किया है, कृपया हम पर बड़ी करूणा दिखा, आमीन।" तुमने देखा कि वे कितने धर्मपरायण हैं; उनके लिए सच्चाई को स्वीकार करना आसान कैसे हो सकता है? तुमतुम्हारे कथन उन को अत्यधिक डरा देंगे। कोई भी यह सोचने की हिम्मत नहीं करेगा कि बाइबल को मानवीय विचारों और मानवीय धारणाओं से दागदार किया जा सकता है, और कोई भी इस त्रुटि को नहीं देख सकता है। बाइबल में कुछ मानवीय अनुभव और ज्ञान हैं, और इस में से कुछ पवित्र आत्मा का प्रकाशन है, और उसमें मानवीय बुद्धिमत्ता और विचार का सम्मिश्रण भी है। परमेश्वर ने इन चीज़ों में कभी भी हस्तक्षेप नहीं किया है, किन्तु इस में एक सीमा हैः वे सामान्य लोगों की सोच से आगे नहीं बढ़ सकते हैं, और यदि वे आगे बढ़ते भी हैं, तो वे परमेश्वर के काम में हस्तक्षेप करते हैं और बाधा डालते हैं। वह जो सामान्य लोगों की सोच से आगे बढ़ जाता है वह शैतान का काम है, क्योंकि वह लोगों को उनक कर्तव्यों से विहीन कर देता है, यह शैतान का कार्य है, और इसे शैतान के द्वारा निर्देशित किया जाता है, और इस घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें इस रीति से काम करने की अनुमति नहीं देगा। कई बार कुछ भाई और बहन पूछते हैं: "क्या इस प्रकार से काम करना ठीक है?" मैं उनकी स्थिति को देखता हूँ और कहता हूँ: "ठीक है!" कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं: "यदि मैं इस प्रकार से काम करता हूँ, तो क्या मेरी स्थिति सामान्य है?" और मैं कहता हूँ: "हाँ! यह सामान्य है, यह विशेष रूप से सामान्य है!" अन्य कहते हैं: "क्या इस रीति से काम करना ठीक है?" और मैं कहता हूँ: "नहीं!" वे कहते हैं: "यह उसके लिए तो ठीक है परन्तु मेरे लिए ठीक क्यों नहीं है?" और मैं कहता हूँ: "क्योंकि जो तुम कर रहे हो वह शैतान से आता है, तथा यह परेशान करता है, और तुम्हारे प्रोत्साहन का स्रोत दिगभ्रमित करने वाला है।" ऐसे भी समय होते हैं जब कार्य काफी आगे बढ़ नहीं पाता है, और भाईयो और बहनो को पता ही नहीं चल पाता है। कुछ लोग मुझ से कहते हैं कि उस प्रकार से काम करना ठीक है कि नहीं, और जब मैं देखता हूँ कि उनके काम भविष्य के कार्य में बाधा नहीं डालेंगे, तो मैं कहता हूँ: "यह अच्छा है।" पवित्र आत्मा का कार्य लोगों को एक दायरा देता है; लोगों को अक्षरत: पवित्र आत्मा की इच्छाओं का अनुसरण नहीं करना है, क्योंकि लोगों के पास सामान्य विचार और कमज़ोरियाँ होती हैं, और उनकी कुछ शारीरिक जरूरतें हैं, उनके पास वास्तविक समस्याएँ होती हैं, और उनके मस्तिष्क में ऐसे विचार होते हैं जिन्हें नियन्त्रित करने के लिए उनके पास मूल रूप से वे माध्यम नहीं होते हैं। जो कुछ मैं लोगों से मांगता हूँ उसकी एक सीमा है। कुछ लोग विश्वास करते हैं कि मेरे शब्दों में अस्पष्टता (अनेक अर्थ) है, यह कि मैं लोगों को किसी भी तरीके से कार्य करने को कह रहा हूँ - यह इसलिए है क्योंकि तुम नहीं समझते हो कि मेरी अपेक्षाओं में एक उपयुक्त दायरा है। यदि यह वैसा होता जैसा तुम कल्पना करते हो - यदि मैं बिना किसी अपवाद के सभी लोगों से वही मांग करता, और सभी से यही अपेक्षा करता कि उसी स्थिति को प्राप्त करें - तो यह काम नहीं करेगा। यह असंभव की मांग करना है, और यह मानवीय कार्य का सिद्धांत है, तथा परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत नहीं है। लोगों की वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार परमेश्वर अपने कार्य को अंजाम देता है, और यह उनकी स्वाभाविक योग्यता पर आधारित होता है। साथ ही यह सुसमाचार को फैलाने का भी सिद्धांत हैः तुम्हें धीरे धीरे आगे बढ़ना होगा, और जब तक तुम किसी से स्पष्ट रूप से सच नहीं कहते हो, तुम्हें प्रकृति को अपना पथक्रम लेने की अनुमति देना होगा। केवल तभी वे समझेंगे, और केवल उसी समय वे बाइबल को अलग रखने में सक्षम होंगे। यदि परमेश्वर ने कार्य की इस अवस्था को नहीं किया होता, तो कौन परम्पराओं से अलग होने के योग्य हो पाता? कौन नया कार्य करने के योग्य हो पाता? कौन बाइबल के बाहर एक नया पथ ढूँढ़ने के योग्य हो पाता? क्योंकि लोगों की पारम्परिक धारणाएँ और जागीरदारी सम्बन्धी नैतिक मूल्य इतने विचित्र हैं, कि उनके पास स्वयं इन चीज़ों को दूर हटाने के लिए कोई योग्यता नहीं है, और न ही उनके पास ऐसा करने का साहस है। यह इसके बारे में कुछ नहीं कहता है कि किस प्रकार आज बाइबल के कुछ वचनों के द्वारा लोगों को जकड़ लिया गया है, ऐसे वचन जिन्होंने उनके हृदयों में कब्जा कर लिया है। वे बाइबल को छोड़ने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं? वे इतनी आसानी से किसी ऐसे मार्ग को स्वीकार कैसे कर सकते हैं जो बाइबल से बाहर है? यह तब तक नहीं होता है जब तक तुम बाइबल के भीतर की कहानियों को और पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से नहीं बोल सकते हो, ताकि सभी लोग पूरी तरह आश्वस्त हो जाएँ - जिसकी सब से ज़्यादा जरूरत है। यह इसलिए है क्योंकि वे सभी जो धर्म के अन्तर्गत हैं वे बाइबल का बहुत आदर करते हैं, और परमेश्वर के रूप में उसकी आराधना करते हैं, साथ ही वे बाइबल के अन्तर्गत परमेश्वर को कैद करने की कोशिश भी करते हैं, और मामला यह भी है कि वे अपने लक्ष्य को तभी हासिल करते हैं जब वे एक बार फिर से परमेश्वर को क्रूस पर कीलों से ठोंक देते हैं।





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