29.8.19

5. परमेश्वर पर विश्वास केवल शान्ति और आशीषों को खोजने के लिए ही नहीं होना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आज, आपको सही रास्ते पर नियत अवश्य होना चाहिए क्योंकि तुम व्यावहारिक परमेश्वर में विश्वास करते हो। परमेश्वर में विश्वास करके, तुम्हें सिर्फ़ आशीषों को ही नहीं खोजना चाहिए, बल्कि परमेश्वर को प्रेम करने और परमेश्वर को जानने की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रबुद्धता और तुम्हारी स्वयं की खोज के माध्यम से, तुम उसके वचन को खा और पी सकते हो, परमेश्वर के बारे में एक सच्ची समझ को विकसित कर सकते हो, और परमेश्वर के लिए एक सच्चा प्रेम रख सकते हो जो तुम्हारे हृदय से आता है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम सबसे अधिक सच्चा है, इतना कि उसके लिए तुम्हारे प्रेम को कोई नष्ट नहीं कर सकता है या उसके लिए तुम्हारे प्रेम के मार्ग में कोई खड़ा नहीं हो सकता है।तब तुम परमेश्वर में विश्वास के सही रास्ते पर होते हो। यह साबित करता है कि तुम परमेश्वर से संबंध रखते हो, क्योंकि तुम्हारे हृदय पर परमेश्वर द्वारा कब्जा कर लिया गया है और तब दूसरा कोई तुम पर कब्जा नहीं कर सकता है। तुम्हारे अनुभव, तुमने जो मूल्य चुकाया है, और परमेश्वर के कार्य के कारण, तुम परमेश्वर के लिए एक स्वेच्छापूर्ण प्रेम को विकसित करने में समर्थ हो जाते हो। फिर तुम शैतान के प्रभाव से मुक्त कर दिए जाते हो और परमेश्वर के वचन के प्रकाश में जीते हो। सिर्फ़ जब तुम अंधकार के प्रभाव को तोड़ कर मुक्त हो जाते हो तभी तुमने परमेश्वर प्राप्त कर लिया समझे जा सकते हो। परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास में, तुम्हें इस लक्ष्य को अवश्य खोजना चाहिए। यह तुम लोगों में से हर एक का कर्तव्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "तुम्हें सत्य के लिए जीना चाहिए क्योंकि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है" से
परमेश्वर का अनुभव करना अनुग्रह का आनन्द लेने के बारे में नहीं है, बल्कि उसके प्रति तुम्हारे प्रेम के कारण कष्ट के बारे में अधिक है। चूँकि तुम परमेश्वर के अनुग्रह का आनन्द लेते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की ताड़ना का भी आनन्द अवश्य लेना चाहिए—तुम्हें इन सभी चीजों का अनुभव अवश्य करना चाहिए। तुम परमेश्वर द्वारा प्रबुद्धता को अपने अंदर अनुभव कर सकते हो, और तुम अपने साथ उसे व्यवहार करते हुए तथा उसके न्याय का अनुभव भी कर सकते हो। इस प्रकार, तुम सभी पहलुओं का अनुभव करते हो। परमेश्वर ने तुम पर न्याय का काम किया है, और उसने तुम पर ताड़ना का काम भी किया है। परमेश्वर के वचन ने तुम्हारे साथ व्यवहार किया है, बल्कि इसने तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन भी किया है। जब तुम भागना चाहते हो, तो परमेश्वर का हाथ तब भी तुम्हें झटके से खींचता है। यह सब तुम्हें यह ज्ञात कराने के लिए है कि मनुष्य के बारे में सब कुछ परमेश्वर की दया पर है। तुम सोच सकते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना कष्ट सहने के बारे में है, या उसके लिए कई चीजें करना है, या तुम्हारी देह की शान्ति के लिए है, या इसलिए है कि तुम्हारे साथ सब कुछ ठीक रहे, सब कुछ आरामदायक रहे—परन्तु इनमें से कोई भी ऐसा उद्देश्य नहीं है जिसे परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए लोगों में होना चाहिए। यदि तुम ऐसा विश्वास करते हो, तो तुम्हारा दृष्टिकोण गलत है और तुम्हें मात्र पूर्ण नहीं बनाया जा सकता है। परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर की धार्मिक स्वभाव, उसकी बुद्धि, उसके वचन, और उसकी अद्भुतता और अगाधता इन सभी बातों को मनुष्यों को अवश्य समझना चाहिए। इस समझ का उपयोग व्यक्तिगत अनुरोधों, और साथ ही व्यक्तिगत आशाओँ और तुम्हारे हृदय की अवधारणाओं से छुटकारा पाने के लिए करो। केवल इन इन्हें दूर करके ही तुम परमेश्वर के द्वारा माँग की गई शर्तों को पूरा कर सकते हो। केवल इसी के माध्यम से ही तुम जीवन प्राप्त कर सकते हो और परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हो। परमेश्वर पर विश्वास करना उसे संतुष्ट करने के वास्ते औरउस स्वभाव को जीवन बिताने के लिए है जो वह अपेक्षा करता है, इन अयोग्य लोगों के समूह के माध्यम से परमेश्वर के कार्य और उसकी महिमा को प्रदर्शित किया जा सके। परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए और उन लक्ष्यों के लिए जिन्हें तुम्हें खोजना चाहिए, यही सही दृष्टिकोण है। परमेश्वर पर विश्वास करने का तुम्हारा सही दृष्टिकोण होना चाहिए और तुम्हें परमेश्वर के वचनों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, और सत्य को जीने, और विशेष रूप से उसके व्यवहारिक कर्मों को देखने, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उनके अद्भुत कर्मों को देखने, और साथ ही देह में उसके द्वारा किए जाने वाले व्यवहारिक कार्य को देखने में सक्षम होने की आवश्यकता है। अपने वास्तविक अनुभवों के द्वारा, लोग बस इस बात की सराहना कर सकते हैं कि कैसे परमेश्वर उन पर अपना कार्य करता है, उनके प्रति उसकी क्या इच्छा है। यह सब उनके भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर करने के लिए है। अपने भीतर की अशुद्धता और अधार्मिकता से मुक्ति पाओ, अपने गलत इरादों को उतार फेंको, और तुम परमेश्वर में सच्चा विश्वास उत्पन्न कर सकते हो। केवल सच्चा विश्वास रख कर ही तुम परमेश्वर को सच्चा प्रेम कर सकते हो। तुम केवल अपने विश्वास की बुनियाद पर ही परमेश्वर से सच्चा प्रेम कर सकते हो। क्या तुम परमेश्वर पर विश्वास किए बिना उसके प्रति प्रेम को प्राप्त कर सकते हैं? चूँकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, इसलिए तुम इसके बारे में नासमझ नहीं हो सकते हो। कुछ लोगों में जोश भर जाता है जैसे ही वे देखते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करना उनके लिए आशीषें लाएगा, परन्तु सम्पूर्ण ऊर्जा को खो देते है जैसे ही वे देखते हैं कि उन्हें शुद्धिकरणों को सहना पड़ेगा। क्या यह परमेश्वर पर विश्वास करना है? अंत में, परमेश्वर पर विश्वास करना उसके सामने पूर्ण और अतिशय आज्ञाकारिता है। तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो परन्तु फिर भी उससे माँगें करते हो, तुम्हारी कई धार्मिक अवधारणाएँ हैं जिन्हें तुम नीचे नहीं रख सकते हो, तुम्हारे व्यक्तिगत हित हैं जिन्हें तुम जाने नहीं दे सकते हो, और तब भी देह में आशीषों को खोजते हो और चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हारी देह को बचाए, तुम्हारी आत्मा की रक्षा करे—ये सब गलत दृष्टिकोण वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं। यद्यपि धार्मिक विश्वास वाले लोगों का परमेश्वर पर विश्वास होता है, तब भी वे स्वभाव-संबंधी बदलाव का प्रयास नहीं करते हैं, परमेश्वर के ज्ञान की खोज नहीं करते हैं, और केवल अपने देह के हितों की ही तलाश करते हैं। तुम में से कई लोगों के विश्वास हैं जो धार्मिक आस्थाओं की श्रेणी से सम्बन्धित हैं। यह परमेश्वर पर सच्चा विश्वास नहीं है। परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए लोगों पास उसके लिए पीड़ा सहने वाला हृदय और स्वयं को त्याग देने की इच्छा होनी चाहिए। जब तक वे इन दो शर्तों को पूरा नहीं करते हैं तब तक यह परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं माना जाता है, और वे स्वभाव संबंधी परिवर्तनों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे। केवल वे लोग जो वास्तव में सत्य को खोजते हैं, परमेश्वर के ज्ञान की तलाश करते हैं, और जीवन की खोज करते हैं ऐसे लोग हैं जो वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पूर्ण बनाए जाने वालों को शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" से
स्पष्ट करने के लिए: यह परमेश्वर में विश्वास है जिसकी वजह से तुम परमरेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकते हो, उससे प्रेम कर सकते हो, और उस कर्तव्य को कर सकते हो जो एक परमेश्वर के प्राणी द्वारा की जानी चाहिए। यही परमेश्वर पर विश्वास करने का लक्ष्य है। तुम्हें परमेश्वर के प्रेम का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए है, या यह ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए कि परमेश्वर कितने आदर के योग्य हैं, कैसे अपने सृजन किए गए प्राणियों में परमेश्वर उद्धार का कार्य करता है और उन्हें पूर्ण बनाता है—यह वह न्यूनतम है जो तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास में धारण करना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास मुख्यतः देह के जीवन से परमेश्वर से प्रेम करने वाले जीवन में बदलना है, प्राकृतिकता के भीतर जीवन से परमेश्वर के अस्तित्व के भीतर जीवन में बदलना है, यह शैतान के अधिकार क्षेत्र से बाहर आना और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में जीवन जीना है, यह परमेश्वर की आज्ञाकारिता को, और न कि देह की आज्ञाकारिता को, प्राप्त करने में समर्थ होना है, यह परमेश्वर को तुम्हारा संपूर्ण हृदय प्राप्त करने की अनुमति देना है, परमेश्वर को तुम्हें पूर्ण बनाने और तुम्हें भ्रष्ट शैतानिक स्वभाव से मुक्त करने की अनुमति देना है। परमेश्वर में विश्वास मुख्यतः इस वजह से है ताकि परमेश्वर की सामर्थ्य और महिमा तुममें प्रकट हो सके, ताकि तुम परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण कर सको, और परमेश्वर की योजना को संपन्न कर सको, और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दे सको। परमेश्वर पर विश्वास संकेतों और चमत्कारों को देखने के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए, न ही यह तुम्हारी व्यक्तिगत देह के वास्ते होना चाहिए। यह परमेश्वर को जानने की तलाश के लिए, और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने, और पतरस के समान, मृत्यु तक परमेश्वर का आज्ञापालन करने में सक्षम होने के लिए, होना चाहिए। यही वह सब है जो मुख्यतः प्राप्त करने के लिए है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" से
अधिकांश लोग जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं वे केवल इस बात को ज्यादा महत्व देते हैं कि आशीषों को किस प्रकार प्राप्त किया जाए या आपदा से कैसे बचा जाए। परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन का उल्लेख करने पर वे चुपचाप हो जाते हैं और उनकी रुचि समाप्त हो जाती है। उन्हें लगता है कि वे इस प्रकार के कुछ उबाऊ प्रश्नों को जानने से वे अपने जीवन में बढ़ नहीं सकते हैं या किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और इसलिए हालांकि वे परमेश्वर के प्रबंधन के संदेश के बारे में सुन चुके होते हैं, वे उन्हें बहुत ही लापरवाही से लेते हैं। उन्हें वे इतने मूल्यवान नहीं लगते कि उन्हें स्वीकारा जाए और वे अपने जीवन का अंग तो उन्हें बिल्कुल नहीं लगते। ऐसे लोगों के पास परमेश्वर का अनुसरण करने का बहुत ही साधारण लक्ष्य होता हैः आशीषें प्राप्त करने का और वे इस लक्ष्य से मतलब न रखने वाली किसी भी बात पर ध्यान देने में बहुत ही आलस दिखाते हैं। उनके लिए, करने का अर्थ आशीषें प्राप्त करने के लिये परमेश्वर पर विश्वास करना सबसे तर्कसंगत लक्ष्य और उनके विश्वास का आधारभूत मूल्य है। और जो चीज़ें इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता प्रदान नहीं करतीं वे उनसे प्रभावित नहीं होते हैं। आज जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं उनके साथ ऐसी ही समस्या है। उनके लक्ष्य और प्रेरणा तर्कसंगत दिखाई देते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर पर विश्वास भी करते हैं, और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते भी हैं, परमेश्वर के प्रति समर्पित भी होते हैं और अपने कर्तव्य को भी निभाते हैं। वे अपनी जवानी लगा देते हैं, परिवार और भविष्य को त्याग देते हैं, और यहां तक कि सालों अपने घर से दूर व्यस्त रहते हैं। अपने परम के लिये,वे अपनी रूचियों को बदल डालते हैं, अपने जीवन के दृष्टिकोण को परिवर्तित कर देते हैं, और यहां तक कि अपनी खोज की दिशा तक को बदल देते हैं, फिर भी वे परमेश्वर पर अपने विश्वास के लक्ष्य को नहीं बदल सकते। वे अपने ही आदर्शों के लिये भाग-दौड़ करते हैं; चाहे मार्ग कितना ही दूर हो, और मार्ग मेंकितनी भी कठिनाइयां और अवरोध क्यों न आएं, वे डटे रहते हैं और मृत्यु के सामने निडर खड़े रहते हैं। इस प्रकार से अपने आप को समर्पित बनाए रखने के लिए उन्हें किस बात से शक्ति प्राप्त होती है? क्या यह उनका विवेक है? क्या यह उनका महान और कुलीन चरित्र है? क्या यह उनका अटल इरादा है जो उन्हें दुष्ट शक्तियों से अंत तक युद्ध करतेरहने की प्रेरणा देता है?क्या यह उनका विश्वास है जिसमें वे बिना हर्जाने के परमेश्वर की गवाही देते हैं?क्या यह उनकी वफादारी है जिसके लिए वे परमेश्वर की इच्छा को प्राप्त करने के लिए सब कुछ देने के लिए भी तैयार रहते हैं? या यह उनकी भक्ति है जिसमें वे हमेशा व्यक्तिगत असाधारण मांगों को त्याग देतेहैं? उन लोगों के लिये जिन्होंने कभी भी परमेश्वर के प्रबंधन को जानने के लिए कभी भी इतना कुछ नहीं दिया, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं! कुछ देर के लिये आइए इस पर चर्चा न करें कि इन लोगों ने कितना कुछ दिया है। फिर भी उनका व्यवहार इस योग्य है कि हम उसका विश्लेषण करें। उन लाभों के अतिरिक्त जो उनके साथ इतनीनिकटतासे जुड़ेहैं, क्या इन लोगों के लिए जो कभी भी परमेश्वर को नहीं समझ पाते हैं, उसे इतना कुछ देने का क्या कोई अन्य कारण हो सकता है? इसमें, हम एक पहले से ही अज्ञात समस्या को देखते हैं: मनुष्य का परमेश्वर के साथ सम्बन्ध केवल एक नग्न स्वार्थ है। यह आशीष देने वाले और लेने वाले के मध्य का सम्बन्ध है। सीधे-सीधे, यह कर्मचारी और नियोक्ता के मध्य के सम्बन्ध के समान है। कर्मचारी नियोक्ता के द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने के लिए ही कार्य करता है। इस प्रकार के सम्बन्ध में, यहां पर कोई स्नेह नहीं होता है, केवल एक सौदा होता है; यहां परप्रेम करने और प्रेम पाने जैसी कोई बता नहीं होती, केवल दान और दया होता है; कोई आपसी समझ नहीं होती केवल अधीनता और धोखा होता है; कोई अंतरंगता नहीं होती, केवल एक खाई जो कभी भी भरी नहीं जा सकती। जब चीज़ें इस बिन्दु तक आ जाती हैं, तो कौन इस प्रकार की प्रवृत्ति को बदलने में सक्षम है? और कितने लोग इसे वास्तव में समझने के योग्य हैं कि यह सम्बन्ध कितना निराशजनक बन चुका है? मैं मानता हूं कि जब लोग आशीषित होने के आनन्द में अपने आप को लगा देंगे, तो कोई भी यह कल्पना नहीं कर सकता कि परमेश्वर के साथ इस प्रकार का सम्बन्ध कितना ही शर्मनाक और भद्दा होगा।
परमेश्वर पर मानवजाति की आस्था का सबसे दुखद पहलू यह है कि मनुष्य परमेश्वर के कार्य के मध्य में अपना प्रबंधन चलाता है और परमेश्वर के प्रबंधन के प्रति बेपरवाह रहता है। मनुष्य का सबसे बड़ी असफलता इस बात में है कि किस प्रकार से एक ही समय मेंपरमेश्वर के प्रति समर्पण को खोजते हुए और उसकी आराधना करते हुए, वह कैसे अपने आदर्श गंतव्य का निर्माण करता है और इस गणित में लगा रहता है कि किस प्रकार से बड़ी से बड़ी आशीष और उत्तम गंतव्य को प्राप्त कर सके।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" से
मेरे कार्यों की संख्या समुद्र के किनारे के रेत के कणों से भी बहुत ज़्यादा है, मेरी बुद्धि सुलैमान के सभी पुत्रों से बढ़कर है, फिर भी मनुष्य सोचता है कि मैं कम महत्व का मात्र एक चिकित्सक हूँ और मनुष्य का अज्ञात शिक्षक हूँ! कितने लोग केवल इसलिए मुझ पर विश्वास करते हैं कि मैं उनको चंगा करूँगा? कितने लोग सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास करते हैं कि मैं उनके शरीरों से अशुद्ध आत्माओं को निकालने के लिए अपनी सामर्थ्य का इस्तेमाल करूँगा? और कितने लोग बस मुझ से शांति और आनन्द प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं? कितने लोग सिर्फ और अधिक भौतिक सम्पत्ति मांगने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं, और कितने लोग सिर्फ इस जीवन को सुरक्षित गुज़ारने के लिए और आनेवाले संसार में सुरक्षित और अच्छे से रहने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं? जब मैंने अपने क्रोध को नीचे मनुष्यों के ऊपर भेजा और सारे आनन्द और शांति को ले लिया जो उसके पास पहले से था, तो मनुष्य सन्देहास्पद हो गया। जब मैंने मनुष्य को नरक का कष्ट दिया और स्वर्ग की आशीषों को वापस ले लिया, तो मनुष्य की लज्जा क्रोध में बदल गई। जब मनुष्य ने मुझ से कहा कि मैं उसको चंगा करूँ, फिर भी मैंने उसको नहीं स्वीकारा और उसके लिए घृणा का एहसास किया, तो मनुष्य मेरे सामने से चला गया और तांत्रिक और जादू टोने के मार्ग को खोजा। जब मैं ने मनुष्य का सबकुछ ले लिया जिसको उसने मुझ से मांगा था, तो सभी बिना किसी नामो निशान के गायब हो गए। इसलिए, मैं कहता हूँ कि मनुष्य मुझ पर विश्वास करता है क्योंकि मैं बहुत ज़्यादा अनुग्रह करता हूँ, और प्राप्त करने के लिए और भी बहुत कुछ है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "तुम विश्वास के विषय में क्या जानते हो?" से
आप परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करने के योग्य होने के लिए अनुसरण करते हैं-अपनी सन्तानों के लिए कि वे बीमारी से आज़ाद हों, अपने पति के लिए कि उसके पास एक अच्छी नौकरी हो, अपने बेटे के लिए कि उसके पास एक अच्छी पत्नी हो, आपकी बेटी के लिए कि वह एक सज्जन पति ढूँढ़ पाए, अपने बैल और घोड़े के लिए कि वे अच्छे से जमीन की जुताई करें, और अपनी फसलों के लिए सालभर अच्छे मौसम के लिए अनुसरण करते हैं। आप इन्हीं चीज़ों की खोज करते हैं। आपका कार्य केवल सुकून के साथ जीवन बिताना है, क्योंकि आपके परिवार में कोई दुर्घटना नहीं होती है, क्योंकि हवा आपके पास से होकर गुज़र जाती है, क्योंकि धूल मिट्टी आपके चेहरे को छूती नहीं है, क्योंकि आपके परिवार की फसलें बाढ़ में बहती नहीं हैं, क्योंकि आप किसी भी विपत्ति से प्रभावित नहीं होते हैं, इसलिए कि आप परमेश्वर की बांहों में रहते हैं, इसलिए कि आप आरामदायक घोंसले में रहते हैं। आपके जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा शरीर के पीछे पीछे चलता है-क्या आपके पास एक हृदय है, क्या आपके पास एक आत्मा है? क्या आप एक पशु नहीं हैं? बदले में बिना कुछ मांगते हुए मैं ने आपको एक सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी आप अनुसरण नहीं करते हैं। क्या आप उनमें से एक हैं जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? मैं ने आपको वास्तविक मानवीय जीवन दिया है, फिर भी आप अनुसरण नहीं करते हैं। क्या आप कुत्ते और सुअर से अलग नहीं हैं? सूअर मनुष्य के जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं, वे शुद्ध किए जाने का प्रयास नहीं करते हैं, और वे नहीं समझते हैं कि जीवन है क्या? प्रति दिन, जी भरकर खाने के बाद, वे बस सो जाते हैं। मैं ने आपको सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी आपने उसे प्राप्त नहीं किया हैः आपके हाथ खाली हैं। क्या आप इस जीवन में, सूअर के जीवन में,निरन्तर बने रहना चाहते हैं? ऐसे लोगों के ज़िन्दा रहने का क्या महत्व है? आपका जीवन घृणित और नीच है, आप गन्दगी और लुचपन के मध्य रहते हैं, और आप किसी उद्देश्य का पीछा नहीं करते हैं; क्या आपका जीवन सब से अधिक निम्न नहीं है? क्या आपके पास परमेश्वर की ओर देखने की कठोरता है? यदि आप लगातार इस तरह अनुभव करते रहे, तो क्या आपको शून्यता प्राप्त नहीं होगी? सच्चा मार्ग आपको दे दिया गया है, किन्तु अंततः आप उसे प्राप्त कर सकते हैं कि नहीं यह आपके व्यक्तिगत अनुसरण पर निर्भर है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पतरस के अनुभवः ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" से
शांतिमय पारिवारिक जीवन या भौतिक आशीषों के साथ, यदि तुम केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते हैं, तो तुमने परमेश्वर को प्राप्त नहीं किया है, और परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पराजित हो गया है। परमेश्वर ने शरीर में अनुग्रह के कार्य के एक चरण को पहले ही पूरा कर लिया है, और मनुष्य को भौतिक आशीषें प्रदान कर दी हैं - परंतु मनुष्य को केवल अनुग्रह, प्रेम और दया के साथ सिद्ध नहीं किया जा सकता। मनुष्य के अनुभवों में वह परमेश्वर के कुछ प्रेम का अनुभव करता है, और परमेश्वर के प्रेम और उसकी दया को देखता है, फिर भी कुछ समय तक इसका अनुभव करने के बाद वह देखता है कि परमेश्वर का अनुग्रह और उसका प्रेम और उसकी दया मनुष्य को सिद्ध बनाने में असमर्थ हैं, और उसे प्रकट करने में भी असमर्थ है जो मनुष्य में भ्रष्ट है, और न ही वे मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव से उसे आज़ाद कर सकते हैं, या उसके प्रेम और विश्वास को सिद्ध बना सकते हैं। परमेश्वर का अनुग्रह का कार्य एक अवधि का कार्य था, और मनुष्य परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाने पर निर्भर नहीं रह सकता।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" से
वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? तुमने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण तुम कितने बदले हो? अब तुम सभी जानते हो कि परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह उसके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए, इत्यादि है। जैसा यह है, यदि तुम परमेश्वर को सिर्फ़ देह के कल्याण के लिए या क्षणिक आनंद के लिए प्रेम करते हो, तो भले ही, अंत में, परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम इसके शिखर पर पहुँचता है और तुम कुछ भी नहीं माँगते, यह "प्रेम" जिसे तुम खोजते हो अभी भी अशुद्ध प्रेम होता है, और परमेश्वर को भाने वाला नहीं होता। वे लोग जो परमेश्वर के लिए प्रेम का उपयोग अपने बोझिल जीवन को सम्पन्न बनाने और अपने हृदय के एक शून्य को भरने के लिए करते हैं, ये वे हैं जो अपने जीवन को आसानी से जीना चाहते हैं, ना कि वे जो सचमुच में परमेश्वर को प्रेम करना चाहते हैं। इस प्रकार का प्रेम व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध होता है, भावनात्मक आनंद की खोज होता है, और परमेश्वर को इस प्रकार के प्रेम की आवश्यकता नहीं है। तो फिर, तुम्हारा प्रेम कैसा है? तुम परमेश्वर को किस लिए प्रेम करते हो? तुम में परमेश्वर के लिए कितना सच्चा प्रेम है? तुम में से अधिकतर का प्रेम वैसा ही है जिसका पहले जिक्र किया गया था। इस प्रकार का प्रेम सिर्फ़ यथापूर्व स्थिति को बरकरार रख सकता है; अनन्त स्थिरता को प्राप्त नहीं कर सकता, न ही मनुष्य में जड़ें जमा सकता है। इस प्रकार का प्रेम एक ऐसा फूल है जिसमें नहीं होता, यह खिला और मुरझा गया। दूसरे शब्दों में, तुमने जब एक बार परमेश्वर को इस ढंग से प्रेम कर लिया और तुम्हें इस मार्ग पर आगे ले जाने वाला कोई ना हो, तो तुम गिर जाओगे। यदि तुम परमेश्वर को सिर्फ़ प्रेमी परमेश्वर के समय ही प्रेम कर सकते हो और उसके बाद तुम अपने जीवन स्वभाव में कोई बदलाव नहीं लाते, तो फिर तुम अंधकार में निरंतर घिरते चले जाओगे, तुम बच नहीं पाओगे, और शैतान द्वारा छले जाने और मूर्ख बनाये जाने से मुक्त होने में असमर्थ होगे। ऐसा कोई भी मनुष्य परमेश्वर को पूरी तरह से प्राप्त नहीं हो सकता; अंत में, उनकी आत्मा, प्राण, और शरीर शैतान के ही होंगे। यह असंदिग्ध है। वे सभी जो पूरी तरह से परमेश्वर को प्राप्त नहीं हो पाएँगे अपने मूल स्थान में वापस लौट जायेंगे, अर्थात, वापस शैतान के पास, और वे परमेश्वर के दंड के अगले चरण को स्वीकार करने के लिये, उस झील में जायेंगे जो आग और गन्धक से जलती रहती है। जो परमेश्वर के हो चुके हैं, वो वे होते हैं जो शैतान के खिलाफ विद्रोह करते हैं और उसके शासन से बच जाते हैं। ऐसे मनुष्य राज्य के लोगों में आधिकारिक रूप से गिने जायेंगे। इस तरह से राज्य के लोग अस्तित्व में आते हैं। क्या तुम इस प्रकार के व्यक्ति बनने को तैयार हो? तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किये जाने के लिए तैयार हो? क्या तुम शैतान के शासन से बचना और वापस परमेश्वर के पास जाना चाहते हो? क्या तुम अब शैतान के हो या तुम राज्य के लोगों में गिने जाते हो? ऐसी सारी चीज़ें स्पष्ट होनी चाहिए और आगे किसी भी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए" से
यदि तुम जो चाहते हो वह परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाना और बिल्कुल अंत में धन्य किए जाना है, तो परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास का परिप्रेक्ष्य शुद्ध नहीं है। तुम्हें खोज करनी चाहिए कि वास्तविक जीवन में परमेश्वर के कर्मों को कैसे देखें, उसे कैसे संतुष्ट करें जब वह अपनी इच्छा को तुम्हारे सामने प्रकट होता है; तलाश करनी चाहिए कि उसकी अद्भुतता और बुद्धि की कैसे गवाही दें, और तुम पर उनके अनुशासन और व्यवहार को कैसे प्रदर्शित करें। अब तुम्हें इन सभी बातों को समझने का प्रयास करना चाहिए। यदि परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्यार एकमात्र इसलिए है ताकि तुम परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने के बाद उसकी महिमा को साझा कर सको, तब भी यह अपर्याप्त है और परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता है। तुम्हें परमेश्वर के कार्यों की गवाही देने में समर्थ होने, उनकी माँगों को संतुष्ट करने और एक व्यावहारिक तरीके से उसके द्वारा लोगों पर किए गए कार्य का अनुभव करने की आवश्यकता है। चाहे यह पीड़ा, आँसू या दुःख हो, तुम्हें अभ्यास में इस सभी का अनुभव अवश्य करना चाहिए। यही सब कुछ है ताकि तुम परमेश्वर के गवाह बन सको। वास्तव में किस शासन के अधीन अब तुम कष्ट को सह रहे हो और पूर्णता की खोज कर रहे हो? क्या यह परमेश्वर के लिए गवाही देना है? क्या यह देह के आशीषों के लिए है या भविष्य की संभावना के लिए है? खोज करने के तुम्हारे सभी इरादे, प्रेरणाएँ और व्यक्तिगत लक्ष्य अवश्य सही तरह से रखे जाने चाहिए और तुम्हारी स्वयं की इच्छा से मार्गदर्शित नहीं होने चाहिए। यदि एक व्यक्ति आशीषें प्राप्त करने और सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए पूर्ण होने की तलाश करता है, जबकि दूसरा परमेश्वर को संतुष्ट करने, परमेश्वर के कर्मों का वास्तव में गवाह बनने के लिए पूर्ण होने की खोज करता है, को खोज के इन दोनों उपायों में से तुम किसे चुनोगे? यदि तुम पहले वाले को चुनते हो, तो तुम अभी भी परमेश्वर के मानकों से बहुत दूर हो। मैंने पहले कहा है कि मेरे कार्यों को ब्रह्माण्ड भर में मुक्त रूप से ज्ञात होने दो और कि मैं बह्माण्ड में एक सम्राट के रूप में शासन करूँगा। दूसरी ओर, जो तुम लोगों को सौंपा गया है वह है परमेश्वर के कार्यों के लिए गवाह बनना, न कि तुम्हें राजा बनना और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में दिखाई देना। समस्त ब्रह्माण्ड को परमेश्वर के कर्मों से भर जाने दो। हर एक को उन्हें देखने दो और उन्हें स्वीकार करने दो। यह परमेश्वर स्वयं के सम्बन्ध में कहा जाता है और मानवजाति को जो करना चाहिए वह है परमेश्वर की गवाही देना। अब तुम परमेश्वर के बारे में कितना जानते हो? तुम परमेश्वर के बारे में कितनी गवाही दे सकते हो? परमेश्वर का मनुष्यों को पूर्ण बनाने का उद्देश्य क्या है? एक बार जब तुम परमेश्वर की इच्छा को समझ जाते हो, तो तुम्हें उनकी इच्छा के प्रति किस प्रकार से विचार करना चाहिए? यदि तुम पूर्ण बनाए जाने की इच्छा रखते हो और जो जीवन तुम बिताते हो उसके माध्यम से परमेश्वर के कर्मों के लिए गवाह बनने की इच्छा रखते हो, यदि तुम्हारे पास यह प्रेरक शक्ति है, तो कुछ भी कठिन नहीं है। लोगों को अब सिर्फ आत्मविश्वास की आवश्यकता है। यदि तुम्हारे पास यह प्रेरक शक्ति है, तो किसी भी नकारात्मकता, निष्क्रियता, आलस्य और देह की अवधारणाओं, जीवन के दर्शनों, विद्रोही स्वभाव, भावनाओं इत्यादि को जाने देना आसान है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "पूर्ण बनाए जाने वालों को शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" से
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