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29.8.19

5. परमेश्वर पर विश्वास केवल शान्ति और आशीषों को खोजने के लिए ही नहीं होना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आज, आपको सही रास्ते पर नियत अवश्य होना चाहिए क्योंकि तुम व्यावहारिक परमेश्वर में विश्वास करते हो। परमेश्वर में विश्वास करके, तुम्हें सिर्फ़ आशीषों को ही नहीं खोजना चाहिए, बल्कि परमेश्वर को प्रेम करने और परमेश्वर को जानने की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रबुद्धता और तुम्हारी स्वयं की खोज के माध्यम से, तुम उसके वचन को खा और पी सकते हो, परमेश्वर के बारे में एक सच्ची समझ को विकसित कर सकते हो, और परमेश्वर के लिए एक सच्चा प्रेम रख सकते हो जो तुम्हारे हृदय से आता है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम सबसे अधिक सच्चा है, इतना कि उसके लिए तुम्हारे प्रेम को कोई नष्ट नहीं कर सकता है या उसके लिए तुम्हारे प्रेम के मार्ग में कोई खड़ा नहीं हो सकता है।

25.8.19

4. पवित्र शिष्टता जो परमेश्वर के विश्वासियों को धारण करनी चाहिए

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने से पहले, मनुष्य स्वभाविक रूप से परमेश्वर का अनुसरण करता था और उसके वचनों का आज्ञापालन करता था। वह स्वभाविक रूप से सही समझ और सद्विवेक का था, और सामान्य मानवता का था। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने के बाद, उसकी मूल समझ, सद्विवेक, और मानवता मंदी हो गईं और शैतान के द्वारा खराब हो गईं। इस प्रकार, उसने परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता और प्रेम को खो दिया है। मनुष्य की समझ धर्मपथ से हट गई है, उसकी समझ एक जानवर के समान हो गई है, और परमेश्वर के प्रति उसकी विद्रोहशीलता और भी अधिक लगातार और गंभीर हो गई है। अभी तक मनुष्य इसे न तो जानता है और न ही पहचानता है, और केवल आँख बंद करके विरोध और विद्रोह करता है।… "सामान्य समझ" आज्ञापालन और परमेश्वर के प्रति विश्वास योग्य बने रहने को, परमेश्वर के प्रति तड़प, परमेश्वर के प्रति स्पष्ट, और परमेश्वर के प्रति सद्सद्विवेक होने को संदर्भित करती है। यह परमेश्वर के प्रति एक हृदय और मन होने को संदर्भित करती है, और जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करने को नहीं। वे जो धर्मपथ से हटनेवाली समझ के हैं वे ऐसे नहीं हैं। मनुष्य शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया था इसिलिए, उसने परमेश्वर के बारे में धारणाओं का उत्पादन किया है, और परमेश्वर के लिए उसके पास निष्ठा या चाहत नहीं है, और परमेश्वर के प्रति कुछ भी कहने के लिए सद्विवेक नहीं है।

22.8.19

3. परमेश्वर पर विश्वास में, तुम्हें परमेश्वर के साथ सामान्य सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर में विश्वास करने में तुम्हें कम से कम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध रखने के विषय का समाधान करना चाहिए। परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध के बिना परमेश्वर में विश्वास करने का महत्व खो जाता है। परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध को स्थापित करना परमेश्वर की उपस्थिति में अपने हृदय को शांत करने के द्वारा ही किया जा सकता है। परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध को स्थापित करने का अर्थ है परमेश्वर के किसी भी कार्य पर संदेह न करना या उसका इनकार न करना, बल्कि उसके प्रति समर्पित रहना, और इससे बढ़कर इसका अर्थ है परमेश्वर की उपस्थिति में सही इरादों को रखना, स्वयं के बारे में न सोचते हुए हमेशा परमेश्वर के परिवार की बातों को सबसे महत्वपूर्ण विषय के रूप में सोचना, फिर चाहे तुम कुछ भी क्यों न कर रहे हो, परमेश्वर के अवलोकन को स्वीकार करना और परमेश्वर के प्रबंधनों के प्रति समर्पण करना। परमेश्वर की उपस्थिति में तुम जब भी कुछ करते हो तो तुम अपने हृदय को शांत कर सकते हो; यदि तुम परमेश्वर की इच्छा को नहीं भी समझते, फिर भी तुम्हें अपनी सर्वोत्तम योग्यता के साथ अपने कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए।

18.8.19

2. सच्चे मार्ग की खोज में तुम्हें तर्कशक्ति से सम्पन्न अवश्य होना चाहिए




परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर और मनुष्य को बराबर नहीं कहा जा सकता। उसका सार और उसका कार्य मनुष्य के लिये सर्वाधिक अथाह और समझ से परे है। यदि परमेश्वर व्यक्तिगत रूप में अपना कार्य न करे, और मनुष्यों के संसार में अपने वचन न कहें, तो मनुष्य कभी भी परमेश्वर की इच्छा को समझ नहीं सकता है, और इसलिए, यहाँ तक कि जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भी परमेश्वर को समर्पित कर दिया है, वे भी उसके अनुमोदन को पाने में सक्षम नहीं हैं। परमेश्वर के कार्य के बिना, चाहे मनुष्य कितना भी अच्छा करे, उसका कोई मूल्य नहीं होगा, क्योंकि परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचार से सदैव ऊँचे होंगे, और परमेश्वर की बुद्धि मनुष्यों के लिये अपरिमेय है। और इसीलिये मैं कहता हूँ कि जिन्होंने परमेश्वर और उसके काम की "वास्तविक प्रकृति का पता लगाया" है कि प्रभावहीन है, वे अभिमानी और अज्ञानी हैं। मनुष्य को परमेश्वर के कार्य को परिभाषित नहीं करना चाहिए; साथ ही, मनुष्य परमेश्वर के कार्य को परिभाषित नहीं कर सकता है।

14.8.19

1. परमेश्वर पर विश्वास में नए कार्य के प्रति लोगों के विरोध का स्रोत तुम्हें अवश्य मालूम होना चाहिए।

अध्याय 7 सत्य के अन्य पहलू जो कि न्यूनतम हैं जिन्हें नए विश्वासियों द्वारा समझा जाना चाहिए

1. परमेश्वर पर विश्वास में नए कार्य के प्रति लोगों के विरोध का स्रोत तुम्हें अवश्य मालूम होना चाहिए।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मनुष्य के द्वारा परमेश्वर का विरोध करने का कारण, एक ओर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव से, और दूसरी ओर, परमेश्वर के प्रति अज्ञानता और परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों की और मनुष्य के प्रति उनकी इच्छा की समझ की कमी से उत्पन्न होता है। इन दोनों पहलुओं का, परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध के इतिहास में विलय होता है। नौसिखिए विश्वासी परमेश्वर का विरोध करते हैं क्योंकि ऐसा विरोध उनकी प्रकृति में होता है, जबकि कई वर्षों से विश्वास वाले लोगों में परमेश्वर का विरोध, उनके भ्रष्ट स्वभाव के अलावा, परमेश्वर के प्रति उनकी अज्ञानता का परिणाम है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं" से

10.8.19

7. बाहरी अच्छे कर्मों और स्वभाव में परिवर्तनों के बीच अंतर

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
धर्म के दायरे में, बहुत से लोग सारा जीवन निरर्थकता से कष्ट भोगते हैं, अपने शरीर को नियंत्रित करते हुए या अपना बोझ उठाते हुए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम सांस तक पीड़ा सहते हुए! कुछ लोग अपनी मृत्यु की सुबह में भी उपवास रखते हैं। वे अपने पूर्ण जीवन के दौरान स्वयं को अच्छे भोजन और अच्छे कपड़े से दूर रखते हैं, और केवल पीड़ा पर ज़ोर देते हैं। वे अपने शरीर को वश में कर पाते हैं और अपने शरीर को त्याग पाते हैं। पीड़ा सहन करने की उनकी भावना सराहनीय है। लेकिन उनकी सोच, उनकी धारणाएं, उनका मानसिक रवैया, और वास्तव में उनका पुराना स्वभाव—इनमें से किसी के साथ बिल्कुल भी निपटा नहीं गया है। उनकी स्वयं के बारे में कोई सच्ची समझ नहीं है।

2.8.19

6. तुम सच्चे और झूठे अगुवों और सच्चे और झूठे चरवाहों के बीच अंतर कैसे बताते हो?



परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है, और चाहे वे कितना भी काम करें, या उनकी पीड़ा कितनी भी बड़ी हो, या वे कितनी ही भाग-दौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं है, और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज, जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों का पालन करते हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा में हैं; जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों से अनभिज्ञ हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, और परमेश्वर की सराहना ऐसे लोगों के लिए नहीं है। वह सेवा जो पवित्र आत्मा की वास्तविक उक्तियों से विभाजित हो, वह देह की और धारणाओं की सेवा है, और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होने में असमर्थ है। यदि लोग धार्मिक अवधारणाओं में रहते हैं, तो वे ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं जो परमेश्वर की इच्छा के लिए उपयुक्त हो, और भले ही वे परमेश्वर की सेवा करें, वे अपनी कल्पना और अवधारणाओं के घेरे में सेवा करते हैं, और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं वे परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते। परमेश्वर ऐसी सेवा चाहता है जो उसके दिल के मुताबिक हो; वह ऐसी सेवा नहीं चाहता है जो कि धारणाओं और देह की हो।

29.7.19

5. परमेश्वर का अनुसरण करने और लोगों का अनुसरण करने में अंतर

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर का अनुसरण करने में प्रमुख महत्व इस बात का है कि हर चीज परमेश्वर के वास्तविक वचनों के अनुसार होनी चाहिए: चाहे तुम जीवन में प्रवेश कर रहे हो या परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति, सब कुछ परमेश्वर के वास्तविक वचनों के आस-पास ही केंद्रित होना चाहिए। यदि तुम्हारा समागम और अनुसरण परमेश्वर के वास्तविक शब्दों के आसपास केंद्रित नहीं होते हैं, तो तुम परमेश्वर के शब्दों के लिए एक अजनबी हो, और पवित्र आत्मा के कार्य से पूरी तरह से वंचित हो।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और परमेश्वर के चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" से

26.7.19

4. तुम सच्चे और झूठे मार्गों में, और सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर कैसे बता सकते हो?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
सच्चे मार्ग की तलाश करने में सबसे बुनियादी सिद्धान्त क्या है? तुम्हें देखना होगा कि क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है कि नहीं, क्या ये वचन सत्य की अभिव्यक्ति हैं या नहीं, किसके लिए गवाही देनी है, और यह तुम्हारे लिए क्या ला सकता है। सच्चे मार्ग और गलत मार्ग के मध्य अंतर करने के लिए बुनियादी ज्ञान के कई पहलुओं की आवश्यकता होती है, जिनमें सबसे बुनियादी है यह बताना कि क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं। क्योंकि परमेश्वर पर विश्वास का मनुष्य का सार पवित्र आत्मा पर विश्वास है, और यहाँ तक कि देहधारी परमेश्वर पर उसका विश्वास इसलिए है क्योंकि यह देह परमेश्वर के आत्मा का मूर्तरूप है, जिसका अर्थ यह है कि ऐसा विश्वास पवित्र आत्मा पर विश्वास है। आत्मा और देह के मध्य अंतर हैं, परन्तु क्योंकि यह देह पवित्रात्मा से आता है और वचन देहधारी होता है, इसलिए मनुष्य जिस में विश्वास करता है वह अभी भी परमेश्वर का अन्तर्निहित सार है। और इसलिए, इस बात का विभेद करने में कि यह सच्चा मार्ग है या नहीं, सर्वोपरि तुम्हें यह अवश्य देखना चाहिए कि क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं, जिसके बाद तुम्हें अवश्य देखना चाहिए कि क्या इस मार्ग में सत्य है अथवा नहीं।

22.7.19

3. तुम सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच अंतर को कैसे बता सकते हो?

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-परमेश्वर का देहधारण,प्रभु यीशु की वापसी,परमेश्वर का कार्य,परमेश्वर को जानना

3. तुम सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच अंतर को कैसे बता सकते हो?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर देहधारी हुआ और मसीह कहलाया, और इसलिए वह मसीह, जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसके बारे में और कुछ भी अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर के तत्व को स्वयं में धारण किए रहता है, और अपने कार्य में परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि को धारण करता है, और ये चीजें मनुष्य के लिये अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, फिर भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे सभी धोखेबाज़ हैं। मसीह पृथ्वी पर केवल परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि वह देह है जिसे धारण करके परमेश्वर लोगों के बीच रहकर कार्य पूर्ण करता है। यह वह देह नहीं है जो किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिस्थापित कियाजा सके, बल्कि वह देह है, जो परमेश्वर के कार्य को पृथ्वी पर अच्छी तरह से करता है और परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करता है, और अच्छी प्रकार से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, और मनुष्य को जीवन प्रदान करता है। कभी न कभी, उन धोखेबाज़ मसीह का पतन होगा, हालांकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें किंचितमात्र भी मसीह का सार-तत्व नहीं होता। इसलिए मैं कहता हूं कि मसीह की प्रमाणिकता मनुष्य के द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती है, परन्तु स्वयं परमेश्वर के द्वारा उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है" से

18.7.19

2. तुम्हें पवित्र आत्मा के और दुष्ट आत्माओं के कार्य के बीच में कैसे विभेद करना चाहिए?



परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
पवित्र आत्मा का कार्य कुल मिलाकर लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे लाभ प्राप्त कर सकें; यह कुल मिलाकर लोगों की उन्नति के विषय में है; ऐसा कोई कार्य नहीं है जो लोगों को लाभान्वित न करता हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सत्य गहरा है या उथला, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन लोगों की क्षमता किसके समान है जो सत्य को स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी पवित्र आत्मा करता है, यह सब लोगों के लिए लाभदायक है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से

13.7.19

1.तुम्हें परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य में कैसे विभेद करना चाहिए?

अध्याय 6 विभेदन के कई रूप जिन्हें परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास में तुम्हें धारण करना चाहिए

1.तुम्हें परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य में कैसे विभेद करना चाहिए?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अनुग्रह के युग में, यीशु ने भी काफ़ी बातचीत की और काफ़ी कार्य किया। वह यशायाह से किस प्रकार भिन्न था? वह दानिय्येल से किस प्रकार भिन्न था? क्या वह कोई भविष्यद्वक्ता था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह मसीहा है? उनके मध्य क्या भिन्न्ताएँ हैं? वे सभी मनुष्य थे जिन्होंने वचन बोले थे, और मनुष्य को उनके वचन लगभग एक से प्रतीत होते थे। उन सभी ने बातें की और कार्य किए। पुराने विधान के भविष्यवद्क्ताओं ने भविष्यवाणियाँ की, और उसी तरह से, यीशु भी वैसा ही कर सका। ऐसा क्यों है? यहाँ कार्य की प्रकृति के आधार पर भिन्नता है। इस मामले को समझने के लिए, तुम देह की प्रकृति पर विचार नहीं कर सकते हो और तुम्हें किसी व्यक्ति के वचनों की गहराई या सतहीपन पर विचार नहीं करना चाहिए। तुम्हें अवश्य हमेशा सबसे पहले उसके कार्य पर और उन प्रभावों पर विचार करना चाहिए जिसे उसका कार्य मनुष्य में प्राप्त करता है। उस समय यशायाह के द्वारा कही गई भविष्यवाणियों ने मनुष्य का जीवन प्रदान नहीं किया, और दानिय्येल जैसे लोगों द्वारा प्राप्त किए गए संदेश मात्र भविष्यवाणियाँ थीं न कि जीवन का मार्ग थीं।

9.7.19

5.देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं।

अध्याय 5 तुम्हें परमेश्वर के देहधारण के बारे में सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए

5.देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
देहधारण का महत्व यह है कि वह साधारण, सामान्य मनुष्य परमेश्वर स्वयं के कार्यों को करता है; अर्थात्, कि परमेश्वर अपने दिव्य कार्य को मानवता में करता है और उसके द्वारा शैतान को परास्त करता है। देहधारण का अर्थ है कि परमेश्वर का आत्मा देह बन जाता है, अर्थात्, परमेश्वर देह बन जाता है; जो कार्य वह देह में करता है वह पवित्रात्मा का कार्य होता है, जो देह में प्राप्त होता है, देह द्वारा अभिव्यक्त होता है। परमेश्वर को छोड़कर कोई भी अन्य देहधारी परमेश्वर की सेवकाई को पूर्ण नहीं कर सकता है; अर्थात्, केवल परमेश्वर की देहधारी देह, यह सामान्य मानवता—और कोई अन्य नहीं—दिव्य कार्य को व्यक्त कर सकता है। यदि, उसके पहले आगमन के दौरान, उनतीस वर्ष की उम्र से पहले परमेश्वर में सामान्य मानवता नहीं होती—यदि जैसे ही उसने जन्म लिया था वह अचम्भे कर सकता, यदि जैसे ही उसने बोलना आरम्भ किया वह स्वर्ग की भाषा बोल सकता, यदि जिस क्षण उसने सबसे पहले पृथ्वी पर कदम रखा वह सभी संसारिक मामलों को समझ सकता, हर व्यक्ति के विचारों और इरादों को समझ सकता—तो वह एक सामान्य मनुष्य नहीं कहलाया जा सकता था, और उसकी देह मानवीय देह नहीं कहलायी जा सकती थी।

5.7.19

4.भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है


अध्याय 5 तुम्हें परमेश्वर के देहधारण के बारे में सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए

स-र्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसियाभ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है

4.भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)
भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है
परमेश्वर देहधारी इसलिए बना क्योंकि उसके कार्य का लक्ष्य शैतान की आत्मा, या कोई अभौतिक चीज़ नहीं, बल्कि मनुष्य है, जो माँस से बना है और जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है। ऐसा निश्चित रूप से मनुष्य की देह को भ्रष्ट कर देने की वजह से है कि परमेश्वर ने हाड़-माँस के मनुष्य को अपने कार्य का लक्ष्य बनाया है; इसके अतिरिक्त, क्योंकि मनुष्य भ्रष्टता का लक्ष्य है, इसलिए उसने उद्धार के अपने कार्य के समस्त चरणों के दौरान मनुष्य को अपने कार्य का एकमात्र लक्ष्य बनाया है। मनुष्य एक नश्वर प्राणी है, और वह हाड़-माँस तथा लहू से बना है, और एकमात्र परमेश्वर ही है जो मनुष्य को बचा सकता है। इस तरह से, परमेश्वर को अपना कार्य करने के लिए ऐसा देह बनना होगा जो मनुष्य के समान ही गुणों को धारण करता हो, ताकि उसका कार्य बेहतर प्रभावों को प्राप्त कर सके। परमेश्वर को अपने कार्य को ठीक तरह से करने के लिए निश्चित रूप से इसलिए देहधारण करना होगा क्योंकि मनुष्य हाड़-माँस से बना है, और पाप पर विजय पाने में या स्वयं को शरीर से वंचित करने में अक्षम है।

30.6.19

3. देहधारी परमेश्वर के कार्य और पवित्रात्मा के कार्य के बीच में क्या अंतर है?

अध्याय 5 तुम्हें परमेश्वर के देहधारण के बारे में सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए

3. देहधारी परमेश्वर के कार्य और पवित्रात्मा के कार्य के बीच में क्या अंतर है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि देह में किए गए परमेश्वर के कार्य में अनेक अकल्पनीय मुश्किलें शामिल होती हैं, फिर भी वे प्रभाव जिन्हें वह अंततः हासिल करता है वे उन कार्यों से कहीं बढ़कर होते हैं जिन्हें आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है। देह के कार्य में काफी कठिनाईयां साथ में जुड़ी होती हैं, और देह आत्मा के समान वैसी ही बड़ी पहचान को धारण नहीं कर सकता है, और आत्मा के समान उन्हीं अलौकिक कार्यों को क्रियान्वित नहीं कर सकता है, और वह आत्मा के समान उसी अधिकार को तो बिलकुल भी धारण नहीं कर सकता है। फिर भी इस साधारण देह के द्वारा किए गए कार्य का मूल-तत्व आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किए गए कार्य से कहीं अधिक श्रेष्ठ है, और यह देह स्वयं ही मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं का उत्तर है।

26.6.19

2. तुम्हें परमेश्वर देह बना के महत्व को अवश्य जानना चाहिए।

अध्याय 5 तुम्हें परमेश्वर के देहधारण के बारे में सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए

2. तुम्हें परमेश्वर देह बना के महत्व को अवश्य जानना चाहिए।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
इस बार, परमेश्वर कार्य करने आत्मिक देह में नहीं, बल्कि एक एकदम साधारण देह में आया है। यह न केवल परमेश्वर के दूसरी बार देहधारण की देह है, बल्कि यह वही देह है जिसमें वह लौटकर आया है। यह बिलकुल साधारण देह है। इस देह में दूसरों से अलग कुछ भी नहीं है, परंतु तुम उससे वह सत्य ग्रहण कर सकते हो जिसके विषय में तुमने पहले कभी नहीं सुना होगा। यह तुच्छ देह, परमेश्वर के सभी सत्य-वचन का मूर्त रूप है, जो अंत के दिनों में परमेश्वर का काम करती है, और मनुष्यों के जानने के लिये यही परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव की अभिव्यक्ति है।

23.6.19

1.देहधारण क्या है? देहधारण का सार क्या है?

अध्याय 5 तुम्हें परमेश्वर के देहधारण के बारे में सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए

1.देहधारण क्या है? देहधारण का सार क्या है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
पहला देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर साढ़े तैंतीस साल रहा, फिर भी उसने अपनी सेवकाई को उन सालों में से केवल साढ़े तीन साल तक ही किया। अपना कार्य करने के दौरान और अपना कार्य आरम्भ करने से पहले, इन दोनों समयों में, वह अपनी सामान्य मानवता को धारण किए हुए था। वह अपनी साधारण मानवता में साढ़े तैंतीस साल तक रहा। पूरे साढ़े तीन साल तक उसने अपने आप को देहधारी परमेश्वर के रूप में प्रकट किया। अपनी सेवकाई का कार्य प्रारम्भ करने से पहले, अपनी दिव्यता का कोई भी चिन्ह प्रकट नहीं करते हुए, वह अपनी साधारण और सामान्य मानवता के साथ प्रकट हुआ, और यह केवल उसकी सेवकाई को औपचारिक तौर पर प्रारम्भ करने के बाद ही हुआ कि उसकी दिव्यता प्रदर्शित की गई थी।

21.6.19

5. बचाए जाने एवं सिद्ध बनाए जाने के लिए तुम्हें परमेश्वर पर किस प्रकार विश्वास करना चाहिए?

अध्याय 4 तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

5. बचाए जाने एवं सिद्ध बनाए जाने के लिए तुम्हें परमेश्वर पर किस प्रकार विश्वास करना चाहिए?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि बहुत से लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, किंतु बहुत कम लोग समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ क्या है, और परमेश्वर के मन के अनुरूप बनने के लिये उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यद्यपि लोग "परमेश्वर" शब्द और "परमेश्वर का कार्य" जैसे वाक्यांश से परिचित हैं, किंतु वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं, और उससे भी कम वे उसके कार्य को जानते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि तब वे सभी जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं, वे दुविधायुक्त विश्वास रखते हैं। लोग परमेश्वर पर विश्वास करने को गंभीरता से नहीं लेते हैं, क्योंकि परमेश्वर पर विश्वास करना उनके लिये अत्यधिक अनजाना और अजीब है। इस प्रकार, वे परमेश्वर की माँग से कम पड़ते हैं।

18.6.19

4. परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरण के कार्य का महत्व।

अध्याय 4 तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

4. परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरण के कार्य का महत्व।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
लोगों की कौन सी आंतरिक स्थिति पर यह सब परीक्षणों को लक्ष्य किया जाता है? ये लोगों के विद्रोही स्वभाव को लक्षित करती हैं जो परमेश्वर को संतुष्ट करने के अयोग्य है। लोगों के भीतर बहुत सी अशुद्ध बातें हैं, और बहुत सा पांखड भरा हुआ है, और इसलिए परमेश्वर उन्हें परीक्षाओं के आधीन करता है ताकि उन्हें शुद्ध बना सके।… परमेश्वर का सच्चा प्रेम उसके सम्पूर्ण स्वभाव में निहित है, और जब परमेश्वर का सम्पूर्ण स्वभाव तेरे ऊपर प्रकट होता है, तो यह तेरे देह पर क्या लेकर आता है? जब परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव तुझे दिखाया जाता है, तेरा देह अनिवार्य रूप से अत्याधिक कष्ट सहेगा।

15.6.19

3.परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य का महत्व।

अध्याय 4 तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

3.परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य का महत्व।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अंत के दिनों का कार्य, सभी को उनके स्वभाव के आधार पर अलग करना, परमेश्वर की प्रबंधन योजना का समापन करना है, क्योंकि समय निकट है और परमेश्वर का दिन आ पहुँचा है। जिन्होंने उसके राज्य में प्रवेश कर लिया है अर्थात्, वे सभी लोग जो अंत तक उसके वफादार रहे हैं, परमेश्वर उन सभी को स्वयं परमेश्वर के युग में ले जाता है। हालाँकि स्वयं परमेश्वर के युग के आने से पहले परमेश्वर जो कार्य करने की इच्छा रखता है वह मनुष्य के कर्मों को देखना या मनुष्य जीवनों के बारे में पूछताछ करना नहीं है, बल्कि उनके विद्रोह का न्याय करना है, क्योंकि परमेश्वर अपने सिंहासन के सामने आने वाले सभी लोगों को शुद्ध करेगा।

प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए एक अति महत्वपूर्ण कदम

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