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20.6.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा कैसे करें"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा कैसे करें"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "यदि तुम लोग परमेश्वर की इच्छा की सेवा करना चाहते हो, तो तुम लोगों को पहले यह अवश्य समझना चाहिए कि किस प्रकार के लोगों को परमेश्वर प्यार करता है, किस प्रकार के लोगों से परमेश्वर घृणा करता है, किस प्रकार के लोग परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाते हैं, और किस प्रकार के लोग परमेश्वर की सेवा करने के लिए योग्य होते हैं। यह सब से छोटी चीज़ है जिससे तुम लोगों को सज्जित होना चाहिए।

8.6.18

Warnings of the Last Days From God | "देहधारियों में से कोई भी कोप के दिन से नहीं बच सकता है"(Hindi)


Warnings of the Last Days From God | "देहधारियों में से कोई भी कोप के दिन से नहीं बच सकता है"(Hindi)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मैं तुम लोगों को सत्य कहता हूँ: मेरी सहनशीलता तुम लोगों की बुरी करतूतों के लिए तैयार थी, और उस दिन पर तुम लोगों की ताड़ना के लिए विद्यमान है। एक बार जब मैं अपनी सहनशीलता के अंत में पहुँच गया तो क्या तुम लोग वह नहीं होंगे जो कुपित न्याय को भुगतोगे। क्या सभी बातें मुझ सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं हैं? मैं कैसे इस प्रकार से आकाश के नीचे तुम लोगों को अपनी अवज्ञा की अनुमति दे सकता हूँ?

7.6.18

The Word of the Holy Spirit | परमेश्वर के कथन "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" (Hindi)


The Word of the Holy Spirit | परमेश्वर के कथन "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" (Hindi)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "तुम लोग केवल स्वर्ग के अनदेखे परमेश्वर को चाहते हो और भय मानते हो और धरती पर जीते-जागते मसीह के लिए कोई सम्मान नहीं है। क्या यह भी तुम्हारा अविश्वास नहीं है? तुम सब केवल अतीत में कार्य करने वाले परमेश्वर के लिए लालायित रहते हो परन्तु आज के मसीह का सामना तक नहीं करते।

6.6.18

मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना (भाग दो)


मनुष्य के सामान्य जीवन को पुनःस्थापित करना और उसे एक बेहतरीन मंज़िल पर ले चलना (भाग दो)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "जब एक बार विजय के कार्य को पूरा कर लिया जाता है, तब मनुष्य को एक सुन्दर संसार में पहुंचाया जाएगा। निश्चित रूप से, यह जीवन तब भी पृथ्वी पर ही होगा, परन्तु यह मनुष्य के आज के जीवन से पूरी तरह से भिन्न होगा। यह वह जीवन है जो मानवजाति के तब पास होगा जब सम्पूर्ण मानवजाति पर विजय प्राप्त कर लिया जाता है, यह पृथ्वी पर मनुष्य के लिए, और मानवजाति के लिए एक नई शुरुआत होगी कि उसके पास ऐसा जीवन हो जो इस बात का सबूत होगा कि मानवजाति ने एक नए एवं सुन्दर आयाम में प्रवेश कर लिया है।

4.6.18

परमेश्वर के कथन "तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई" भाग एक


परमेश्वर के कथन "तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई" भाग एक

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "उसका समस्त कार्य सर्वाधिक वास्तविक कार्य है। वह समयों के विकास के अनुसार अपने कार्य को सम्पन्न करता है, और वह अपना सबसे अधिक वास्तविक कार्य चीज़ों के परिवर्तनों के अनुसार करता है। उसके लिए, कार्य को सम्पन्न करना किसी बीमारी के लिए दवा देने के सदृश है; वह अपना कार्य करते समय अवलोकन करता है; और अपने अवलोकनों के अनुसार कार्य करता है।

2.6.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "शैतान के समस्त कार्य और कर्म मनुष्य में व्यक्त होते हैं। अब मनुष्य के समस्त कार्य और कर्म शैतान की अभिव्यक्ति हैं और इसलिए परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। मनुष्य शैतान का मूर्त रूप है, और मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर के स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है।

28.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग तीन)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग तीन)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक उदाहरण में ऐसे दर्शन हैं जिन्हें मनुष्य के द्वारा पहचाना जाना चाहिए, ऐसे दर्शन जिनका अनुसरण मनुष्य के प्रति परमेश्वर की उचित अपेक्षाओं के द्वारा किया जाता है। बुनियाद के रूप में इन दर्शनों के बिना, मनुष्य साधारण तौर पर रीति व्यवहार में असमर्थ होगा, और न ही मनुष्य बिना लड़खड़ाए परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य होगा। यदि मनुष्य परमेश्वर को नहीं जानता या परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझता, तो वह सब कुछ जो मनुष्य करता है वह व्यर्थ है, और परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाने के योग्य नहीं है।

27.5.18

परमेश्वर पर विश्वास करना वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, न कि धार्मिक रीति-रिवाजों पर


परमेश्वर पर विश्वास करना वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, न कि धार्मिक रीति-रिवाजों पर

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "कुछ लोगों में अपनी ओर ध्यान खींचने की विशेष प्रवृत्ति होती है। अपने भाई-बहनों की उपस्थिति में, वह कहता है कि वह परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ है, परंतु उनकी पीठ पीछे, वह सत्य का अभ्यास नहीं करता है और पूरी तरह से अन्यथा करता है। क्या यह उन धार्मिक फरीसियों जैसा नहीं है?

23.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग दो)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग दो)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक उदाहरण में ऐसे दर्शन हैं जिन्हें मनुष्य के द्वारा पहचाना जाना चाहिए, ऐसे दर्शन जिनका अनुसरण मनुष्य के प्रति परमेश्वर की उचित अपेक्षाओं के द्वारा किया जाता है। बुनियाद के रूप में इन दर्शनों के बिना, मनुष्य साधारण तौर पर रीति व्यवहार में असमर्थ होगा, और न ही मनुष्य बिना लड़खड़ाए परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य होगा।

22.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग एक)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग एक)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक उदाहरण में ऐसे दर्शन हैं जिन्हें मनुष्य के द्वारा पहचाना जाना चाहिए, ऐसे दर्शन जिनका अनुसरण मनुष्य के प्रति परमेश्वर की उचित अपेक्षाओं के द्वारा किया जाता है। बुनियाद के रूप में इन दर्शनों के बिना, मनुष्य साधारण तौर पर रीति व्यवहार में असमर्थ होगा, और न ही मनुष्य बिना लड़खड़ाए परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य होगा।

11.5.18

परमेश्वर के कथन "अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए"


 परमेश्वर के कथन "अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मेरी दया उन पर व्यक्त होती है जो मुझसे प्रेम करते हैं और अपने आपको नकारते हैं। और दुष्टों को मिला दण्ड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध का साक्षी है। जब आपदा आएगी, तो उन सभी पर अकाल और महामारी आ पड़ेगी जो मेरा विरोध करते हैं और वे विलाप करेंगे।

9.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "सर्वशक्तिमान का आह भरना” | God's waiting of love


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "सर्वशक्तिमान का आह भरना” | God's waiting of love

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "मनुष्य, जिन्होंने सर्वशक्तिमान के जीवन की आपूर्ति को त्याग दिया, नहीं जानते हैं आखिर वे क्यों अस्तित्व में हैं, और फिर भी मृत्यु से डरते रहते हैं। इस दुनिया में, जहां कोई सहारा नहीं है, सहायता नहीं है, वहाँ बहादुरी के साथ, बिन आत्माओं की चेतना के शरीरों में एक अशोभनीय अस्तित्व को दिखाते हुए मनुष्य, अपनी आंखों को बंद करने में, अभी भी अनिच्छुक है। तुम इनके समान जीते हो, आशाहीन; उसका अस्तित्व इसी प्रकार का, बिना किसी लक्ष्य का है।

7.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग दो)"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग दो)"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने, और संपूर्ण युग में काम करने के लिये अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है।

5.5.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग एक)"



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "राज्य का युग वचन का युग है (भाग एक)"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने, और संपूर्ण युग में काम करने के लिये अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, और उसकी बुद्धि और आश्चर्य को जान सके।

26.4.18

परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 1)


 परमेश्वर के कथन "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर भाग एक" (भाग 1)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "चाहे देहधारी परमेश्वर बोले, कार्य करे, या चमत्कार प्रकट करे, वह अपने प्रबंधन के अंतर्गत महान कार्य कर रहा है, और इस प्रकार का कार्य उसके बदले मनुष्य नहीं कर सकता है। मनुष्य का कार्य केवल सृजन किए गए प्राणी के रूप में परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के किसी दिए गए चरण में सिर्फ़ अपना कर्तव्य करना है। इस प्रकार के प्रबंधन के बिना, अर्थात्‌, यदि देहधारी परमेश्वर की सेवकाई खो जाती है, तो सृजित प्राणी का कर्तव्य भी खो जायेगा।

25.4.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग 2)"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग 2)"


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करता और उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करता है, प्रत्येक एक ओहदे और आत्मा के साथ है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है?

22.4.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है?" (भाग 1)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या त्रित्व का अस्तित्व है?" (भाग 1)


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करता और उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करता है, प्रत्येक एक ओहदे और आत्मा के साथ है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ, आकाश और पृथ्वी, और उसके भीतर की सारी चीज़ें क्या पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा के द्वारा बनाई गई थीं?

21.4.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या परमेश्वर का कार्य इतना सरल है, जितना मनुष्य कल्पना करता है?"



सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "क्या परमेश्वर का कार्य इतना सरल है, जितना मनुष्य कल्पना करता है?"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "तुम सबों को देखना चाहिये कि परमेश्वर की इच्छा और कार्य आकाश और पृथ्वी के सृजन और अन्य सब वस्तुओं के सृजन के समान आसान नहीं हैं। आज का कार्य उन लोगों का रूपांतरण करना है जो भ्रष्ट हो चुके हैं, और अत्यधिक सुन्न हो चुके हैं, और उन्हें शुद्ध करना है जो सृजे जाने के बाद शैतान के अनुसार चले हैं, आदम और हव्वा के सृजन करना नहीं, ज्योति की सृष्टि या अन्य सभी पेड़ पौधों और पशुओं के सृजन की तो बात ही दूर है।

13.4.18

अपनी धारणाओं में परमेश्वर को परिभाषित करने वाला मनुष्य कैसे उसके प्रकटनों को पा सकता है।


अपनी धारणाओं में परमेश्वर को परिभाषित करने वाला मनुष्य कैसे उसके प्रकटनों को पा सकता है।


सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं "इतिहास आगे प्रगति करता है, इसलिए परमेश्वर का कार्य भी बढ़ता है, और परमेश्वर की इच्छा निरंतर बदलती रहती है। यह परमेश्वर के लिए अव्यवहारिक होगा कि वह कार्य के एक ही चरण को छः हज़ार साल तक बनाए रखे, क्योंकि मनुष्य यही जानता है कि परमेश्वर हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता है। वह सम्भवतः सलीब पर चढ़ाने के समान कार्य को बनाए रखना और एक बार, दो बार, तीन बार.....

31.3.18

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है"


 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है"
   सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं "परमेश्वर के जीवन की महानता और सामर्थ्य किसी भी प्राणी के द्वारा मापी नहीं जा सकती। यह ऐसा ही है, ऐसा ही था और आने वाले समय में भी इसी प्रकार से रहेगा। और दूसरा रहस्य है: सभी प्राणियों के लिये परमेश्वर के द्वारा ही जीवन का स्रोत आता है, चाहे वह किसी भी रूप या स्वरूप में हो।

प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए एक अति महत्वपूर्ण कदम

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